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यदि भारत को मिल गया श्रीलंका का मत्ताला एयरपोर्ट तो चीन की बढ़ जाएगी परेशानी

भारत को यदि श्रीलंका के मत्ताला एयरपोर्ट पर कामयाबी मिल गई तो यह चीन पर निगाह रखने में बड़ा उपयोगी साबित हो सकता है।

By Kamal VermaEdited By: Published: Sun, 12 Aug 2018 02:14 PM (IST)Updated: Sun, 12 Aug 2018 04:23 PM (IST)
यदि भारत को मिल गया श्रीलंका का मत्ताला एयरपोर्ट तो चीन की बढ़ जाएगी परेशानी
यदि भारत को मिल गया श्रीलंका का मत्ताला एयरपोर्ट तो चीन की बढ़ जाएगी परेशानी

नई दिल्‍ली [जागरण स्‍पेशल]। श्रीलंका के मत्ताला हवाई अड्डे को वैसे तो दुनिया के वीरान हवाई अड्डों में गिना जाता है, लेकिन इसके रणनीतिक महत्व को देखते हुए भारत इसको लेकर श्रीलंका सरकार के साथ लगातार संपर्क में है। विश्वस्त सूत्रों की मानें तो इसके इस्तेमाल को लेकर दोनों देशों के बीच बातचीत काफी आगे बढ़ चुकी है। इसके लिए प्रस्तावित समझौते के तमाम बिंदुओं को अंतिम रूप दिया जा रहा है। सूत्रों के अनुसार, दोनों देशों के बीच बातचीत एकदम सही दिशा में आगे बढ़ रही है।

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भारत के लिए इसलिए अहम मत्ताला
मत्ताला एयरपोर्ट की भारत के लिए उपयोगिता इसलिए है कि यहां से महज 30 मिनट की दूरी पर हंबनटोटा बंदरगाह है। यह बंदरगाह अभी चीन की कंपनी के अधिकार में है। चीन इसके करीब ही एक बड़ा आर्थिक क्षेत्र भी विकसित कर रहा है, लेकिन कूटनीतिक जानकार मानते हैं कि इसे हासिल करने के पीछे चीन का असली मकसद भारत को हिंद महासागर में चारों तरफ से घेरना है। ऐसे में यहां से 39 किलोमीटर की दूरी पर स्थित मत्ताला एयरपोर्ट का अपना रणनीतिक महत्व होगा। अगर हंबनटोटा से चीन भारत पर नजर रखने की मंशा रखता है, तो मत्ताला से भारत हंबनटोटा में उसकी गतिविधियों पर नजर रख सकेगा।

बेहद संवेदनशील मामला
पिछले हफ्ते भारत के नागरिक उड्डयन राज्य मंत्री जयंत सिन्हा ने संसद में बताया था कि भारत के पास मत्ताला पोर्ट में हिस्सेदारी खरीदने का कोई प्रस्ताव नहीं है। इस बारे में पूछे जाने पर सूत्रों का कहना है कि यह तकनीकी तौर पर सच भी है। भारत इसमें हिस्सेदारी खरीदने की कोशिश नहीं कर रहा है। वैसे भी यह बेहद संवेदनशील मामला है। दोनों देश इस एयरपोर्ट के संयुक्त संचालन का फामरूला तैयार कर रहे हैं। इस बारे में एक समझौता होगा, जो इक्विटी खरीदने से बिल्कुल अलग होगा।

लंबी अवधि के लिए मिल सकता है संचालन 
समझौते के तहत इस एयरपोर्ट का संचालन लंबी अवधि तक भारतीय नियंत्रण में हो सकता है। श्रीलंका के नागरिक उड्डयन मंत्री निमल श्रीपाला डि सिल्वा ने संसद में कहा था कि सरकार ने भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण (एएआइ) से संचालन को लेकर विस्तृत प्रस्ताव मांगा है। वैसे भारत मत्ताला की जरूरत को समझ रहा है, लेकिन श्रीलंका में इस पर हो रही राजनीति के चलते फूंक फूंक कर कदम आगे बढ़ा रहा है। भारतीय अधिकारी स्वीकार करते हैं कि श्रीलंका सरकार इस बारे में जल्द फैसला करना चाहती है। दूसरी तरफ वहां के विपक्षी दल धमकी दे रहे हैं कि अगर सरकार किसी विदेशी कंपनी को हवाई अड्डा देती है, तो वे सत्ता में आने पर सौदे की समीक्षा करेंगे।

चीन को साधने के लिए बढ़े कदम 
यहां पर आपको बता दें कि चीन नेपाल, म्‍यांमार, बांग्‍लादेश, श्रीलंका, मालदीव और पाकिस्‍तान में अपनी रणनीतिक पैंठ बना चुका है। इन सभी जगहों पर उसने ऋण देने की नीति के तहत अपने कदम मजबूती से जमाए हैं। अब भारत ने भी इस तरह कदम बढ़ाने शुरू कर दिए हैं। भारत के लिए इस दिशा में सबसे पहला पड़ाव सेशेल्‍स बना था जहां पर भारत ने रणनीतिक तौर पर बड़ी सफलता हासिल की है। इसके तहत भारत एजंप्‍शन द्वीप पर नौसेना अड्डा बनाने के लिए राजी हो गया। इसके अलावा भारत ने सेशेल्स को प्रतिरक्षा क्षमताओं और समुद्री बुनियादी ढांचे को मजबूत बनाने के लिए 10 करोड़ डॉलर ऋण प्रदान करने की घोषणा की। भारत ने इस समझौतों के साथ ही साफ कर दिया कि हम एक दूसरे के हितों के अधार पर साथ-साथ काम करने को तैयार हैं। जहां तक सेशेल्‍स की बात है तो आपको बता दें कि वर्ष 2015 में पीएम मोदी ने यहां की यात्रा की थी। उसी वक्‍त इन समझौतों की भी आधारशीला रखी गई थी। 

बेहद छोटा सा देश है सेशेल्‍स
आपको यहां ये भी बता दें कि सेशेल्‍स की आबादी महज 84 हजार है। यह बेहद छोटा तो है लेकिन भारत के लिए सामरिक दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण है। सेशेल्स का जल सीमा क्षेत्र 1.3 मिलियन वर्ग किमी से भी ज्यादा विस्तृत अनन्य आर्थिक क्षेत्र (एक्सक्लूसिव इकोनॉमिक जोन- ईईजेड) भी रखता है। सेशेल्‍स के आसपास करीब 115 द्वीप हैं। ताजा समझौते के बाद भारत चीन पर निगाह रख सकेगा।

रवांडा पर भारत की निगाह 
भारत रवांडा को पूर्वी अफ्रीका के प्रवेश-द्वार के रूप में देख रहा है और इसी को ध्यान में रखते हुए पिछले साल जनवरी में भारत ने रवांडा के साथ रणनीतिक साझेदारी की थी। दोनों देशा के बीच हुए समझौतों के महत भारत ने रवांडा को मिल रही क्रेडिट लाइन को 200 मिलियन डॉलर करने की सहमति दी। इनमें 100 मिलियन डॉलर रवांडा में इंडस्टियल पार्कों और किगाली विशेष आर्थिक क्षेत्र के विकास के लिए है, जबकि शेष रकम आधारभूत कृषि संरचना का निर्माण करने के लिए रखी गई है।

रणनीतिक ही नहीं सामरिक महत्‍व भी 
अफ्रीका के पास दुनिया की कृषि भूमि का 60 फीसदी हिस्सा है। लेकिन, कृषि उत्पादन में उसकी भागीदारी महज 10 फीसदी है। लिहाजा भारत की नजर अफ्रीका की उपजाऊ जमीन पर भी है। आपको बता दें कि भारत मौजूदा वक्त में अनुबंधित कृषि के तहत अफ्रीका में दाल की खेती कर रहा है तथा इसे और विस्तार देना चाहता है। अफ्रीका से बढ़ता मेलजोल इस लिहाज से भी बेहद खास है क्‍योंकि यहां से तेल आयात कर भारत अपनी ऊर्जा जरूरतों के लिए पश्चिम एशिया पर निर्भरता कम कर सकता है। तीसरा सकारात्मक पहलू यह है कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में स्थाई सदस्यता की मांग के साथ-साथ अन्य मंचों पर भी भारत को अफ्रीका से व्यापक सहयोग मिलने की उम्मीद है। चौथा यह कि हिंद महासागर का भारत और अफ्रीका के लिए समान सामरिक, सुरक्षात्मक और रणनीतिक महत्व है।

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