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    'जज को राजनीति पर पड़ने वाले फैसले के असर की समझ जरूरी', जस्टिस चंद्रचूड़ ने ऑक्सफोर्ड में क्यों कही ये बात?

    भारत में आम चुनाव को लेकर पूछे गए सवाल पर उन्होंने कहा कि चुनाव भारत के लोकतंत्र का मूल आधार है। हालांकि भारत में जजों का चुनाव नहीं होता जज परिस्थितियों और संविधानिक मूल्यों की निरंतरता की भावना को दर्शाते हैं जो व्यवस्था की रक्षा करते हैं। इसके साथ ही उन्होंने कहा कि न्यायिक व्यवस्था में प्रौद्योगिकी की भूमिका से पारदर्शिता को बढ़ावा मिला है।

    By Agency Edited By: Babli Kumari Updated: Wed, 05 Jun 2024 08:26 PM (IST)
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    भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ (फाइल फोटो)

    आक्सफोर्ड, पीटीआई। भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि उन्होंने जज के रूप में 24 वर्ष के कार्यकाल में कभी राजनीतिक दबाव का सामना नहीं करना पड़ा। कहा, हम सरकार और राजनीति से अलग जीवन जीते हैं। लेकिन एक जज को निश्चित रूप से अपने निर्णय का राजनीति पर पड़ने वाले असर की समझ होना चाहिए। यह राजनीतिक दबाव नहीं है, बल्कि कोर्ट के निर्णय के असर की समझ है। सीजेआइ जस्टिस चंद्रचूड़ मंगलवार को ऑक्सफोर्ड यूनियन सोसायटी में 'समाज में निर्णायकों की मानवीय भूमिका' विषय पर अपना संबोधन दे रहे थे।

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    इस दौरान भारत में आम चुनाव को लेकर पूछे गए सवाल पर उन्होंने कहा कि चुनाव भारत के लोकतंत्र का मूल आधार है। हालांकि, भारत में जजों का चुनाव नहीं होता, जज परिस्थितियों और संविधानिक मूल्यों की निरंतरता की भावना को दर्शाते हैं, जो व्यवस्था की रक्षा करते हैं। इसके साथ ही उन्होंने कहा कि न्यायिक व्यवस्था में प्रौद्योगिकी की भूमिका से पारदर्शिता को बढ़ावा मिला है।

    इंटरनेट मीडिया पर जजों की आलोचना

    इंटरनेट मीडिया पर जजों की आलोचना पर कहा कि प्रौद्योगिकी के प्रभाव से न्यायपालिका को समाज के बड़े वर्ग तक पहुंचने में मदद मिली है। जस्टिस चंद्रचूड़ से भारत में स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत पिछले वर्ष समलैंगिक विवाह पर रोक के सुप्रीम कोर्ट के निर्णय को लेकर भी सवाल किए गए। उन्होंने कहा, मैं यहां पर किसी निर्णय के बचाव के लिए नहीं आया हूं।

    मेरे तीन साथी मुझसे सहमत नहीं

    मेरा विश्वास है कि एक बार निर्णय दे देने पर वह न केवल राष्ट्र की, बल्कि वैश्विक मानवता की संपत्ति हो जाती है। कहा, निर्णय के समय मेरे तीन साथी मुझसे सहमत नहीं थे। उनका मानना था कि समलैंगिक विवाह को मान्यता देना कोर्ट का कार्य नहीं है। स्पेशल मैरिज एक्ट संसद द्वारा बनाया गया है, वही इस पर निर्णय ले सकती है।

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