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    हार्ट अटैक के बाद मानसिक तनाव एक और दिल के दौरे की बन सकती है वजह, रिपोर्ट में हुआ खुलासा

    Updated: Mon, 22 Sep 2025 10:00 PM (IST)

    एक रिपोर्ट के अनुसार दिल का दौरा पड़ने के बाद 12 महीनों तक रहने वाला मनोवैज्ञानिक तनाव हृदय रोगों के खतरे को बढ़ा सकता है। हार्ट अटैक के बाद मानसिक स्वास्थ्य पर ध्यान देना ज़रूरी है क्योंकि इससे तनाव और अवसाद बढ़ सकता है। मानसिक तनाव कम करने के लिए थेरेपी दवाओं और तनाव कम करने की तकनीक अपनाई जा सकती हैं।

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    हार्ट अटैक के बाद मानसिक तनाव एक और दिल के दौरे की बन सकती है वजह (फाइल फोटो)

    डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। एक रिपोर्ट में दावा किया गया है कि दिल का दौरा पड़ने के बाद अगले 12 महीने तक रहनेवाला मनोवैज्ञानिक तनाव हृदय संबंधी तमाम अन्य बीमारियों के जोखिम को 1.3 गुना तक बढ़ा सकता है।

    विशेषज्ञों का कहना है कि हार्ट अटैक के बाद शारीरिक स्वास्थ्य पर तो ध्यान दिया जाता है, लेकिन मानसिक स्वास्थ्य को उतना महत्व नहीं दिया जाता। जबकि हार्ट अटैक के बाद मस्तिष्क में हार्मोनल और केमिकल बदलाव होते हैं, जिससे तनाव और अवसाद बढ़ सकता है।

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    मानसिक तनाव दूर करने के लिए काग्निटिव बिहैवियर थेरेपी, अवसादरोधी दवाओं और तनाव कम करने की तकनीक अपनाकर जीवन की गुणवत्ता में सुधार किया जा सकता है। अमेरिकन हार्ट एसोसिएशन के मुताबिक दिल का दौरा झेलनेवाले 33 से 50 प्रतिशत तक लोग मनोवैज्ञानिक परेशानी से जूझते हैं।

    रिसर्च टीम ने क्या पता लगाया

    वे अवसाद, चिंता या पोस्ट ट्रामेटिक स्ट्रेस डिसआर्डर (पीटीएसडी) से गुजर सकते हैं। रिसर्च टीम ने हार्ट अटैक, एक्यूट कोरोनरी सिंड्रोम, अवसाद, तनाव, ¨चता, स्ट्रेस और पीटीएसडी पर पूर्व में प्रकाशित शोधों की समीक्षा करके रिपोर्ट तैयार की।

    समूह के लेखक और प्रमुख शोधकर्ता अमेरिका के बेयरल कालेज आफ मेडिसिन के प्रोफेसर ग्लेन ए लेविन ने कहा कि दिल के दौरे के बाद मनोवैज्ञानिक परेशानी काफी आम है लेकिन इस पर गौर कम किया जाता है। हम ज्यादातर हृदय रोग के भौतिक पहलू पर ध्यान केंद्रित करते हैं, जबकि मनोवैज्ञानिक सेहत भी शारीरिक स्वास्थ्य से जुड़ी हुई है।

    शोधकर्ताओं ने बताया कि दिल के दौरे के बाद हृदय मांसपेशियों में इंफ्लेमेशन ट्रिगर हो सकता है, जिससे मस्तिष्क में हार्मोन और रासायनिक स्तर पर बदलाव हो सकते हैं। इससे अवसाद, चिंता या पीटीएसडी के लक्षण उभर सकते हैं। गंभीर मनोवैज्ञानिक तनाव से हृदय की धमनियों में सिकुड़न हो सकती है, हृदय में खून का बहाव घट सकता है और धड़कनों में उतार-चढ़ाव भी बढ़ सकती है।

    हार्ट अटैक के बाद महीनों तक रह सकता है मानसिक तनाव

    अध्ययन में पाया गया कि मनोवैज्ञानिक परेशानी की वजह से भविष्य में हार्ट अटैक का खतरा 28 प्रतिशत तक बढ़ सकता है। वहीं अगर ये तनाव ज्यादा हो तो दोबारा हार्ट अटैक का खतरा 60 प्रतिशत तक बढ़ सकता है। हृदयाघात से बचे 50 प्रतिशत लोगों को अस्पताल में भर्ती होने के दौरान चिंता और तनाव प्रभावित कर सकता है, जबकि 20-30 प्रतिशत लोगों में अस्पताल से छुट्टी मिलने के बाद भी यह कई महीनों या उससे अधिक समय तक बना रहता है।