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धरती से महज 16 मिनट की दूरी पर हुए हादसे ने चावला को ‘कल्पना’ बना दिया

कल्पना चावला की मौत जिस हादसे में हुई थी, उसे लेकर अब भी सवाल उठते रहते हैं। ज्यादातर लोगों के लिए ये महज एक हादसा था, लेकिन बहुत से लोग इसे बहुत बड़ी लापरवाही मानते हैं।

By Amit SinghEdited By: Published: Thu, 31 Jan 2019 06:13 PM (IST)Updated: Fri, 01 Feb 2019 07:56 AM (IST)
धरती से महज 16 मिनट की दूरी पर हुए हादसे ने चावला को ‘कल्पना’ बना दिया
धरती से महज 16 मिनट की दूरी पर हुए हादसे ने चावला को ‘कल्पना’ बना दिया

नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। कुछ लोगों का जन्म ही दूसरों को राह दिखाने के लिए होता है। उनकी जिंदगी तो मिसाल बनती ही है, उनकी मौत भी लोगों की आंखों में कल्पनाओं की एक चमक छोड़ जाती है। ऐसी ही थीं भारतीय मूल की पहली महिला अंतरिक्ष यात्री कल्पना चावला। 16 साल पहले आज ही के दिन (1 फरवरी 2003) को हुई अंतरिक्ष इतिहास की एक मनहूस दुर्घटना ने उन्हें और उनके दल के छह अन्य साथियों को कभी खत्म न होने वाले मिशन पर भेज दिया।

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ये दर्दनाक हादसा उस वक्त हुआ था, जब कल्पना का अंतरिक्ष यान कोलंबिया शटल STS-107 धरती से महज 16 मिनट की दूरी पर था। उस वक्त यान की धरती से दूरी थी करीब दो लाख फीट और उसकी रफ्तार थी 20 हजार किलोमीटर प्रति घंटा। कल्पना और उनके दल की वापसी का अमेरिका के टैक्सास शहर में बेसब्री से इंतजार किया जा रहा था। कामयाब अंतरिक्ष मिशन से लौटने पर इनके भव्य स्वागत की तैयारी थी।

कल्पना चावला की वजह से अमेरिका ही नहीं भारत और दुनिया के कई देश इस मिशन पर नजरें गड़ाए हुए थे। तभी एक बुरी खबर आयी कि नासा का इस यान से संपर्क टूट गया है। इसी दौरान अचानक विमान में आग लगी और धमाके के साथ वह कई टुकड़ों में बंट गया। कल्पना समेत दल के सभी सदस्य इस हादसे में मारे गए। हालांकि, आज भी चावला और उनके दल के सदस्य लोगों की कल्पना में जिंदा हैं। अंतरिक्ष यान का मलबा टैक्सास के डैलस इलाके में लगभग 160 किलोमीटर क्षेत्रफल में फैल गया था।

कई लड़कियों के सपनों को दिए 'कल्पना' के पंख
कल्पना चावला एक ऐसी लड़की थीं जिन्होंने भारत और पूरी दुनिया में लड़कियों के सपनों को पंख लगा दिए थे। उनको देखकर लोग अपनी बेटियों पर गर्व करते थे और आज भी करते हैं। हर लड़की की चाहत कल्पना चावला जैसा बनने की होती है। माता-पिता भी अपनी बेटियों को कल्पना चावला जैसा ऊंचा नाम करने को प्रेरित करते हैं। वह भारत की पहली महिला अंतरिक्ष यात्री थीं। भारत ही नहीं आज पूरी दुनिया में कल्पना चावला सहित उन सभी सात अंतरिक्षयात्रियों की पुण्यतिथि मनायी जा रही है।

करनाल से अंतरिक्ष तक का सफर
भारत की इस बेटी का जन्म 17 मार्च 1962 को हरियाणा के करनाल में एक मध्यवर्गीय परिवार में हुआ था। उनकी शुरुआती पढ़ाई करनाल के ही टैगोर बाल निकेतन में हुई थी। हरियाणा के पारंपरिक समाज में कल्पना जैसी लड़की के ख्वाब अकल्पनीय थे। शायद उन्होंने बचपन में जब पहली बार आसमान की तरफ देखा होगा, उसी समय तय कर लिया था कि एक दिन उन्हें तारों को छूना है। आगे चलकर अपने इसी सपने को पूरा करने के लिए उन्होंने चंडीगढ़ के पंजाब इंजीनियरिंग कॉलेज में एयरोनॉटिकल इंजीनियरिंग में बी.टेक की पढ़ाई के लिए एडमिशन लिया।

सपना पूरा करने की ओर दूसरा कदम
जिस समय कल्पना चावला ने तारों के पार जाने का सपना देखा था उस समय अंतरिक्ष विज्ञान में भारत काफी पीछे था। अपने इस सपने को पूरा करने के लिए उनका नासा जाना जरूरी था। इस सपने का पीछा करते हुए वह साल 1982 में अमेरिका चली गईं और यहां टैक्सस यूनिवर्सिटी से एयरोस्पेस इंजीनियरिंग में एम.टेक की पढ़ाई पूरी की। उन्होंने यूनिवर्सिटी ऑफ कोलोराडो से डॉक्टरेट की डिग्री भी हासिल की। इसके बाद साल 1988 में कल्पना चावला के सपनों को पंख तब लगे जब उन्होंने नासा ज्वाइन किया। यहां उनकी नियुक्ति नासा के रिसर्च सेंटर में हुई थी।

...और अमेरिकी नागरिक बन गई कल्पना
एम.टेक की पढ़ाई के दौरान ही कल्पना को जीन-पियरे हैरिसन से प्यार हो गया। बाद में दोनों ने शादी भी कर ली। इसी दौरान उन्हें 1991 में अमेरिका की नागरिकता भी मिल गई। इस तरह भारत की बेटी अमेरिका की होकर रह गई, लेकिन उनका भारत से संबंध हमेशा बना रहा।

जब चावला ने भरी 'कल्पना' की उड़ान
मार्च 1995 में कल्पना चावला की जिंदगी का सबसे बड़ा सपना पूरा हुआ। उन्हें पहली अंतरिक्ष उड़ान के लिए चुन लिया गया और इस खुशी में उनके पैर जमीन पर नहीं टिक रहे थे। उड़ान के लिए चुने जाने के करीब 8 महीने बाद उनका पहला अंतरिक्ष मिशन 19 नवंबर 1997 को शुरू हुआ। उन्होंने 6 अंतरिक्ष यात्रियों के साथ स्पेस शटल कोलंबिया STS-87 से उड़ान भरी। अपने पहले मिशन के दौरान कल्पना ने 1.04 करोड़ मील सफर तय करते हुए करीब 372 घंटे अंतरिक्ष में बिताए और इस दौरान धरती के कुल 252 चक्कर भी लगाए।

...जब दूसरी और अंतिम बार अंतरिक्ष में गई कल्पना
साल 2000 में कल्पना को दूसरे अंतरिक्ष मिशन के लिए भी चुन लिया गया। यह अंतरिक्ष यात्रा उनकी जिंदगी का आखिरी मिशन भी साबित हुआ। उनके इस मिशन की शुरुआत ही तकनीकि गड़बड़ियों के साथ हुई थी और इसकी वजह से इस उड़ान में विलंब भी होता रहा। आखिरकार 16 जनवरी 2003 को कल्पना सहित 7 यात्रियों ने कोलंबिया STS-107 से उड़ान भरी। अंतरिक्ष में 16 दिन बिताने के बाद वह अपने 6 अन्य साथियों के साथ 3 फरवरी 2003 को धरती पर वापस लौट रही थीं। लेकिन उनकी यह यात्रा कभी खत्म ही नहीं हुई।

मिशन कमांडर रिक हसबैंड के नेतृत्व में कोलंबिया शटल यान STS-107 ने उड़ान भरी थी। टीम में एक इसराइली वैज्ञानिक आइलन रैमन भी शामिल थे। रैमन अंतरिक्ष में जाने वाले पहले इजरायली थे। उनके अलावा इस टीम में विलियम मैकोल, लॉरेल क्लार्क, आइलन रैमन, डेविड ब्राउन और माइकल एंडरसन शामिल थे।

मैं अंतरिक्ष के लिए बनी हूं
कहा जाता है कि कल्पना अक्सर कहा करती थीं कि मैं अंतरिक्ष के लिए ही बनीं हूं, हर पल अंतरिक्ष के लिए बिताया और इसी के लिए मरूंगी। आखिरकार यह बात उनके लिए सच भी साबित हो गई। सिर्फ 41 साल की उम्र में उन्होंने अपनी दूसरी अंतरिक्ष यात्रा की जिससे लौटते वक्त वह एक हादसे का शिकार हो गईं।

चार भाई-बहनों में सबसे छोटी थीं मोंटू
कल्पना का घर का नाम मोंटू था और वह अपने चार भाई-बहनों में सबसे छोटी थीं। कल्पना के बारे में एक खास बात यह भी है कि उन्होंने 8वीं कक्षा में ही अपने पिता से इंजीनियर बनने की इच्छा जाहिर कर दी थी। लेकिन उनके पिता चाहते थे कि कल्पना एक डॉक्टर या टीचर बनें।

...और यूं हमें छोड़कर चली गईं कल्पना
आज से ठीक 15 साल पहले एक फरवरी 2003 को हर किसी को इंतजार था जब भारत की बेटी कल्पना चावला सहित 7 अंतरिक्ष यात्री वापस धरती पर लौट रहे थे, लेकिन जो खबर आयी उसने सभी को हिलाकर रख दिया और भारत से लेकर इजरायल और अमेरिका तक दुख व आंसू थे। वैज्ञानिकों के मुताबिक- जैसे ही कोलंबिया ने पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश किया, वैसे ही उसकी उष्मारोधी परतें फट गईं और यान का तापमान बढ़ने से यह हादसा हो गया, जिसमें सभी अंतरिक्ष यात्रियों की मौत हो गई।

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