#Union Budget 2019: बजट को समझने के लिए इन सात शब्दावलियों को जानना जरूरी है
बजट से उम्मीदें भी बहुत होती हैं और इसका इंतजार भी लोगों को बेसब्री से होता है। ज्यादातर लोगों को बजट के तकनीक शब्द समझ नहीं आते, जिससे वह इसकी बारिकी समझ नहीं पाते हैं।
नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। अबसे कुछ देर में केंद्र सरकार संसद में बजट पेश करने वाली है। मौजूदा भाजपा सरकार के पांच वर्ष के कार्यकाल का ये अंतिम बजट है और चुनाव से ठीक पहले आ रहा है। लिहाजा इस चुनाव से लोगों को काफी उम्मीदे हैं। लिहाजा लोग बेसब्री से बजट पेश होने का इंतजार कर रहे हैं। अगर आप भी इसी इंतजार में बैठे हैं तो पहले इन सात शब्दावलियों को समझ लें, जिनके बिना बजट को समझना बहुत मुश्किल है।
31 जनवरी से बजट सत्र की शुरुआत हो चुकी है जो कि 13 फरवरी तक चलेगा। गौरतलब है कि केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली स्वास्थ्य कारणों से फिलहाल अमेरिका में हैं और इस वजह से दूसरी बार पीयूष गोयल को वित्त मंत्रालय का अतरिक्त प्रभार दिया गया है। लिहाजा वही संसद में मौजूदा सरकार का अंतिम बजट पेश करेंगे।
वित्तीय वर्ष का मतलब
वित्तीय वर्ष वह पीरियड है जिसके लिए सरकार सालाना बजट तैयार करती है। भारत में वित्तीय वर्ष एक अप्रैल से शुरू होकर 31 मार्च तक चलता है। इसी अवधि के लिए सरकार बजट पेश करती है। एक वित्तीय वर्ष खत्म होने पर सरकार संसद में बजट सत्र के दौरान उस वित्तीय वर्ष का लेखा-जोखा और आने वाले वित्तीय वर्ष के अनुमानित खर्चों का ब्यौरा बजट में प्रस्तुत करती है।
अंतरिम, पूरक व पूर्ण बजट में अंतर
चुनावी साल में सरकार द्वारा केवल शुरूआती चार महीनों के लिए बजट पेश करने की परंपरा है, ताकि इसी बजट से चुनाव संपन्न करा नई सरकार चुने जाने तक खर्च चलाया जा सके। इसलिए इसे अंतरिम बजट भी कहा जाता है। नई सरकार बनने के बाद वह बचे हुए वित्तीय वर्ष के लिए बजट पेश करती है, जिसे पूरक बजट कहा जाता है। हालांकि चुनावी वर्ष में मौजूद सरकार वोटरों को लुभाने के लिए लोक लुभावन बजट पेश करती है और कई बार परंपरा के विपरीत पूरे वर्ष का बजट पेश कर देती है, जिसे पूर्ण बजट कहते हैं। चुनाव के समय पर पेश होने वाले बजट को आम बोलचाल की भाषा में चुनावी बजट भी कहा जाता है।
इनकम टैक्स स्लैब और कर मुक्त आय
अभी देश में इनकम टैक्स स्लैब ढाई लाख रुपये सालाना कमाई का है। मतलब सालाना ढाई लाख रुपये कमाने वाले को आयकर (इनकम टैक्स) में छूट प्रदान की गई है। चुनावी बजट होने के कारण लोगों को उम्मीद है कि सरकार इस बार टैक्स स्लैब को ढाई लाख रुपये की जगह पांच लाख रुपये सालाना कर सकती है। इसके अलावा आयकर की धारा 80सी के तहत कर मुक्त आय को भी डेढ़ लाख रुपये से तीन लाख रुपये करने का अनुमान लगाया जा है।
प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष कर
देश में दो प्रकार की टैक्स व्यवस्था है, पहली प्रत्यक्ष और दूसरी अप्रत्यक्ष कर प्रणाली। प्रत्यक्ष कर देश के नागरिकों से सीधे तौर पर वसूला जाता है। इसमें इनकम टैक्स, वेल्थ टैक्स और कॉरपोरेट टैक्स आते हैं। ये टैक्स व्यक्तिगत होते हैं और व्यक्ति या संस्था विशेष से ही वसूले जाते हैं। इसके विपरीत अप्रत्यक्ष कर किसी भी व्यक्ति को ट्रांसफर किया जा सकता है। अप्रत्यक्ष कर का मतलब जीएसटी से है, जो किसी सर्विस प्रोवाइडर द्वारा सेवा पर लगने वाला टैक्स या उत्पाद पर वसूला जाने वाला टैक्स होता है।
शॉर्ट टर्म और लॉग टर्म गेन
शेयर मार्केट में एक साल से कम समय के लिए निवेश कर कमाए गए लाभ को शॉर्ट टर्म कैपिटल गेन या अल्पकालिक पूंजीगत लाभ कहते हैं। एक साल से ज्यादा समय के लिए निवेश को लॉग टर्म कैपिटल गेन अर्थात दीर्घकालिक पूंजीगत लाभ कहा जाता है। शॉर्ट टर्म गेन पर वर्तमान में 15 फीसद का टैक्स वसूला जाता है। वहीं लॉग टर्म गेन पर पहले कोई टैक्स नहीं लगता था। मौजूदा सरकार ने वित्तीय वर्ष 2018-19 के बजट में लॉग टर्म गेन के जरिए एक लाख रुपये से ज्यादा की कमाई पर 10 फीसद का टैक्स लगाया है। एक लाख रुपये या कम पर की टैक्स नहीं है। लोगों को लॉग टर्म कैपिटल गेन में भी राहत मिलने की उम्मीद है।
राजकोषीय घाटा
राजकोषीय घाटे का मतलब है सरकार को हुई कुल सालाना कमाई के सापेक्ष ज्यादा खर्च होना। इसमें सरकार द्वारा लिए गए कर्जे भी शामिल हैं। विशेषज्ञों के अनुसार लोगों को उम्मीद है कि सरकार इस बजट में कर पर ज्यादा से ज्यादा छूट दे और पहले के मुकाबले सब्सिडी आदि पर ज्यादा खर्च करे। अगर ऐसा हुआ तो आगामी वित्तीय वर्ष में राजकोषीय घाटा बढ़ सकता है।
जीडीपी क्या है
जीडीपी मतलब ग्रॉस डोमेस्टिक प्रोडक्ट होता है। ये किसी भी देश की आर्थिक सेहत को मापने का जरिया होता है। भारत में जीडीपी की गणना प्रत्येक तिमाही पर होती है। जीडीपी, अर्थव्यवस्था के प्रमुख उत्पादन क्षेत्रों में उत्पादन की वृद्धि दर पर आधारित होता है। कृषि, उद्योग व सेवा जीडीपी के तीन मुख्य घटक हैं। इन क्षेत्रों में उत्पादन बढ़ने या घटने के औसत पर जीडीपी दर तय होती है।
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