अमेरिका को पूर्व राजदूत की फटकार; कहा- 'अब लद चुके हैं वर्चस्व के दिन'
पूर्व राजदूत तलमीज अहमद ने पीएम मोदी और रूसी राष्ट्रपति पुतिन की मुलाकात पर अमेरिकी प्रतिक्रिया की आलोचना की। उन्होंने कहा कि अमेरिका का दबदबा अब खत्म ...और पढ़ें
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अमेरिका को पूर्व राजदूत की फटकार कहा- अब लद चुके हैं वर्चस्व के दिन
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। सऊदी अरब, ओमान और संयुक्त अरब अमीरात में भारत के राजदूत रह चुके तलमीज अहमद ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से मुलाकात पर अमेरिका की प्रतिक्रिया की आलोचना करते हुए कहा कि अमेरिकी आधिपत्य का युग अब समाप्त हो गया है।
उन्होंने भारत की बढ़ती मुखरता और अपने आंतरिक मामलों में कथित अमेरिकी हस्तक्षेप के प्रति प्रतिरोध पर प्रकाश डाला और कहा कि अफगानिस्तान, इराक और लीबिया में अपनी विफलताओं के कारण अमेरिका ने अपनी विश्वसनीयता खो दी है।
तलमीज अहमद ने बताया, ''शीत युद्ध समाप्त होने के बाद केवल एकध्रुवीय विश्व व्यवस्था थी, और अमेरिका आधिपत्य वाला देश था। लेकिन, तब से बहुत कुछ घटित हो चुका है। अफगानिस्तान, इराक और लीबिया में अपने दुस्साहस के कारण अमेरिका ने विश्वसनीयता खो दी है। वे अब वह विश्वसनीय जनशक्ति नहीं रहे जो वे तब हुआ करते थे जब वे आधिपत्य का दावा करते थे।
इस बीच, अन्य देशों ने भी वैश्विक परि²श्य में प्रवेश कर लिया है।'' गौरतलब है कि यह बयान रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की हाल ही में संपन्न भारत और अमेरिका यात्रा के बाद आया है..ऐसे भी आरोप लगाए गए कि भारत ने एक युद्ध अपराधी के लिए लाल कालीन बिछा दिया है।
पूर्व भारतीय राजनयिक ने कहा कि दुनिया अब बहुध्रुवीय हो गई है, जहां चीन और भारत जैसे देश अपनी रणनीतिक स्वायत्तता का दावा कर रहे हैं। चीन विभिन्न क्षेत्रों में विशेष रूप से अर्थव्यवस्था, प्रौद्योगिकी और रसद संपर्क के मामले में अमेरिकियों को चुनौती दे रहा है। अमेरिकी आधिपत्य के दिन अब लद गए हैं।
यह परिदृश्य कोई नया शीत युद्ध नहीं है, बल्कि बहुध्रुवीय व्यवस्था का उदय है। अहमद ने कहा, ''अमेरिका का शीर्ष नेतृत्व अराजकता, अव्यवस्था और अनिश्चितता का उदाहरण है। यूरोपीय संघ का एक बड़ा हिस्सा रूस के साथ जुड़ा हुआ है। उनमें से कई रूसी ऊर्जा खरीद रहे हैं।
अमेरिकी रूस और चीन के साथ वार्ता कर रहे हैं और मजबूत व्यापारिक संबंध बना रहे हैं। पुतिन ने हमें याद दिलाया है कि अमेरिकी रूस से परमाणु ईंधन खरीद रहे हैं। विभिन्न देश लगातार रेअर अर्थ खरीद रहे हैं। उनकी हिम्मत कैसे हुई कि वे भारत या किसी अन्य देश को यह बताएं कि हमें क्या करना चाहिए और क्या नहीं करना चाहिए? हम तो किसी को कुछ नहीं कहते।''

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