ट्रंप की दादागीरी पर अमेरिकी कोर्ट का डंडा, हार्वर्ड की फंडिंग में कटौती का फैसला पलटा
अमेरिका की एक संघीय अदालत ने हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के पक्ष में फैसला सुनाते हुए ट्रम्प प्रशासन के रिसर्च फंडिंग रोकने के कदम को गैरकानूनी बताया। जज एलिसन बरोज ने यहूदी-विरोधी (एंटी-सेमिटिज्म) का हवाला देकर यूनिवर्सिटी को निशाना बनाने को गलत बताया। कोर्ट ने कहा कि ट्रम्प प्रशासन का यह कदम कई कानूनों का उल्लंघन करता है। यह फैसला हार्वर्ड के लिए राहत और एकेडमिक आजादी की जीत है।

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। अमेरिका की एक संघीय अदालत ने हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के पक्ष में बड़ा फैसला सुनाया है। कोर्ट ने ट्रंप प्रशासन के उस कदम को गैरकानूनी बताया है जिसमें उन्होंने हार्वर्ड की अरबों डॉलर की रिसर्च फंडिंग रोक दी थी।
जज एलिसन बरोज ने अपने फैसले में कहा कि ट्रंप प्रशासन ने यहूदी-विरोधी (एंटी-सेमिटिज्म) का हवाला देकर देश की शीर्ष यूनिवर्सिटी पर निशाना साधा है। ये कदम पूरी तरह गलत था। यह फैसला न सिर्फ हार्वर्ड के लिए राहत है, बल्कि यह अमेरिका में एकेडमिक आजादी और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को लेकर भी एक बड़ी जीत मानी जा रही है।
11 अप्रैल को ट्रंप प्रशासन ने हार्वर्ड को एक पत्र भेजा था। इस पत्र में यूनिवर्सिटी से यहूदी-विरोधी गतिविधियों को खत्म करने और कुछ अल्पसंख्यक समूहों को फायदा पहुंचाने वाली डाइवर्सिटी इनिसिएटिव को बंद करने की मांग की गई थी।
पत्र में 10 मांगें थीं, जिनमें अंतरराष्ट्रीय छात्रों के दाखिले पर पाबंदी, थर्ड-पार्टी ऑडिट और डाइवर्सिटी, इक्विटी व इनक्लूजन (DEI) प्रोग्राम्स को खत्म करना शामिल था। हार्वर्ड ने इन मांगों को ठुकरा दिया था। इसके बाद 14 अप्रैल को ट्रंप प्रशासन ने यूनिवर्सिटी के 2.2 अरब डॉलर के मल्टी-ईयर ग्रांट्स और 60 मिलियन डॉलर के कॉन्ट्रैक्ट्स पर रोक लगा दी।
अदालत ने क्या दिया फैसला?
जज बरोज ने अपने फैसले में साफ कहा कि ट्रंप प्रशासन का यह कदम कई कानूनों का उल्लंघन करता है। इस फैसले में एडमिनिस्ट्रेटिव प्रोसीजर एक्ट, अमेरिकी संविधान का पहला संशोधन और सिविल राइट्स एक्ट 1964 का टाइटल VI शामिल हैं।
उन्होंने कहा कि प्रशासन ने यहूदी-विरोधी का बहाना बनाकर हार्वर्ड पर वैचारिक हमला किया। जज ने यह भी माना कि हार्वर्ड ने भले ही पहले कुछ नफरती व्यवहार को बर्दाश्त किया, लेकिन अब वह इसे रोकने के लिए कदम उठा रहा है और जरूरत पड़ने पर और सख्ती करने को तैयार है।
जज ने हार्वर्ड की ओर से दायर समरी जजमेंट की मांग को मंजूर कर लिया, यानी बिना ट्रायल के यूनिवर्सिटी के पक्ष में फैसला सुना दिया। उन्होंने कहा कि कोर्ट का काम है कि वह एकेडमिक आजादी और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की हिफाजत करे। इसके साथ ही, यह सुनिश्चित करे कि अहम रिसर्च को मनमाने ढंग से रोका न जाए, भले ही सरकार अपनी मर्जी थोपने की कोशिश करे।
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ट्रंप सरकार फैसले को मानने से किया इनकार
ट्रंप प्रशासन ने इस फैसले को मानने से इनकार कर दिया। व्हाइट हाउस की प्रवक्ता लिज ह्यूस्टन ने कहा कि हार्वर्ड को टैक्सपेयर्स के पैसे का कोई संवैधानिक हक नहीं है और वह भविष्य में ग्रांट्स के लिए अयोग्य रहेगा। उन्होंने दावा किया कि हार्वर्ड ने सालों तक अपने कैंपस में छात्रों को उत्पीड़न से बचाने में नाकाम रहा और भेदभाव को बढ़ने दिया।
शिक्षा विभाग की प्रवक्ता मैडी बीडरमैन ने भी फैसले को खारिज करते हुए कहा कि यह फैसला हैरान करने वाला नहीं है।
उन्होंने जज बरोज पर निशाना साधते हुए कहा कि वही जज, जिन्होंने पहले हार्वर्ड की गैरकानूनी रेस-बेस्ड एडमिशन नीतियों का समर्थन किया था (जिसे सुप्रीम कोर्ट ने पलट दिया), अब ट्रंप प्रशासन के कदमों को गलत ठहरा रही हैं। उन्होंने कहा कि देश की यूनिवर्सिटीज को सुधारने का रास्ता लंबा है, लेकिन यह जरूरी है।
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