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    दुनिया में हर वर्ष एक अरब बच्‍चे होते हैं शारीरिक, मानसिक समेत दूसरी तरह की हिंसा के शिकार

    संयुक्‍त राष्‍ट्र की एक रिपोर्ट में बच्‍चों के खिलाफ होने वाली हिंसा की बेहद भयावह तस्‍वीर पेश की गई है। इसमें कहा गया है कि पूरी दुनिया में एक अरब बच्‍चे हिंसा का शिकार होते हैं।

    By Kamal VermaEdited By: Updated: Sat, 20 Jun 2020 08:46 AM (IST)
    दुनिया में हर वर्ष एक अरब बच्‍चे होते हैं शारीरिक, मानसिक समेत दूसरी तरह की हिंसा के शिकार

    न्‍यूयॉर्क (संयुक्‍त राष्‍ट्र)। संयुक्‍त राष्‍ट्र की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि दुनिया में कुल बच्चों की आधी आबादी हर वर्ष शारीरिक, यौन और मनोवैज्ञानिक हिंसा का शिकार होती है। यदि संख्‍या की बात करें तो ये करीब एक अरब है। संयुक्‍त राष्‍ट्र ने इसकी वजह बच्‍चों की सुरक्षा को लेकर बनाई गई नीतियों का विफल होना बताया है। संयुक्त राष्ट्र की तरफ से जारी Global Status Report on Preventing Violence Against Children 2020’ अपनी तरह का पहला दस्तावेज़ है जिसमें INSPIRE फ्रेमवर्क के तहत 155 से ज्‍यादा देशों में इस ओर हुई प्रगति का आकलन किया गया है। यूएन के मुताबिक ये फ्रेमवर्क बच्चों के खिलाफ होने वाली हिंसा और उनकी रोकथाम को बनाए गए सात अहम बिंदुओं का दस्‍तावेज है।

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    इस रिपोर्ट को विश्व स्वास्थ्य संगठन, संयुक्त राष्ट्र बाल कोष, संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन और बच्चों के खिलाफ हिंसा के खत्‍म करने के लिए बनाए गए विशेष यूएन प्रतिनिधि ने संयुक्त रूप से तैयार किया है। इसमें कहा गया है कि वैसे तो लगभग सभी देशों में नाबालिगों के संरक्षण के लिए कानून बनाए गए हैं, लेकिन आधे से भी कम देश उन्हें कड़ाई से लागू करते हैं। इन नियमों की सच्‍चाई की यदि बात की जाए तो करीब 88 फीसद देशों ने बच्‍चों की सुरक्षा को कानून बनाए हैं लेकिन इन्‍हें कड़ाई से केवल 47 फीसद देशों में ही लागू किया गया है। यूएन की इस रिपोर्ट में दर्ज ये आंकड़ा वास्‍तव में काफी डराने और चौंकाने वाला है।

    इस रिपोर्ट के बाबत विश्‍व स्‍वास्‍थ्‍य संगठन के प्रमुख डॉक्टर टैड्रॉस एडहेनॉम घेबरेयेसस का कहना है कि बच्चों का कल्याण और उनके स्वास्थ्य की रक्षा हमारे सामूहिक स्वास्थ्य और कल्याण के लिए नितांत जरूरी है। उनके मुताबिक बच्‍चों के खिलाफ होने वाली हिंसाओं के लिए किसी भी कारण को जायज़ नहीं ठहराया जा सकता। उन्‍होंने इस बात पर भी बेहद नाराजगी जाहिर की कि ऐसा तब होता है जब हमारे पास इसकी रोकथाम के सभी उपाय मौजूद हैं। उन्‍होंने उन सभी देशों से जहां पर बच्‍चों की सुरक्षा के कानून बने होने के बावजूद इन्‍हें कड़ाई से लागू नहीं किया जा सका है, अपील की कि वे इनका इस्‍तेमाल करें। उन्‍होंने ये भी कहा कि दुनिया भर में वर्तमान में चल रहे कोविड-19 महामारी के संकट की वजह से स्‍कूलों को बंद किया गया है और वहां पर किसी भी तरह से बच्‍चों की आवाजाही को प्रतिबंधित किया गया है।

    बच्‍चों के खिलाफ हिंसा पर यूनीसेफ की कार्यकारी निदेशक हेनरीएटा फोर ने भी काफी दुख व्‍यक्‍त किया। उन्‍होंने कहा कि इन मुश्किल हालात में अनेक बच्‍चे ऐसे हैं जो उन लोगों के साथ रहने को मजबूर हैं जिन्‍होंने उनके साथ दुर्व्यवहार किया है। इसलिए ये बेहद जरूरी है कि इस समय और उसके बाद भी बच्चों को सुरक्षा देने के प्रयासों का दायरा बढ़ाया जाए। इसके लिए हैल्पलाइन और निर्धारित सामाजिक सेवाकर्मियों को आवश्यक सेवाओं में शामिल करना होगा। इंस्‍पायर फ्रेमवर्क की रणनीतियों में स्कूलों तक पहुंच और रजिस्‍ट्रेशन में सबसे ज्‍यादा प्रगति देखने को मिली है। इस रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया के करीब 54 फीसद देशों के अनुसार सभी बच्‍चों की शिक्षा के लिए उन्‍हें स्‍कूल भेजे जाने जैसे कार्य को करना संभव हुआ है।

    इस रिपोर्ट में बच्‍चों के खिलाफ होने वाली हिंसा को बेहद सिलसिलेवार तरीके से बताया गया है। जैसे दुनिया के 83 फीसद देशों में बच्चों के खिलाफ हिंसा की घटनाओं के आंकडे़ हैं लेकिन केवल 21 फीसद इसका विश्‍लेषण करते हुए इनकी रोकथाम के लिए पॉलिसी बनाने का काम करते हैं। वहीं 80 फीसद से ज्‍यादा देशों के पास राष्ट्रीय कार्रवाई योजनाएं और नीतियां हैं लेकिन केवल 20 फीसद के पास ही उन्हें प्रभावी ढंग लागू करने के लिए वित्तीय संसाधन हैं। धन और प्रोफेशनल एबिलिटी की कमी की वजह से भी इस दिशा में होने वाले विकास की रफ्तार बेहद कम है।

    यूनेस्को की महानिदेशक ऑड्री अजोले की मानें तो ऑनलाइन माध्यमों पर भी हिंसा और नफरत में पहले की तुलना में बढ़ोत्तरी हुई है। यही वजह है कि कोरोना महामारी के बाद जब स्‍कूलों के खुलने का दौर शुरू होगा तो इसको लेकर बच्‍चों में डर का भाव दिखाई दे रहा है। उनके मुताबिक इसको समझना बेहद जरूरी है और स्कूलों और हमारी अपनी सोसायटी में हिंसा रोकने के लिए एकजुट होकर कार्रवाई करने की जरूरत है।

    उनके अलावा इस रिपोर्ट पर यूएन की विशेष प्रतिनिधि नजत माल्ला मजीद ने कहा कि बच्चों की मदद के लिए एकीकृत और विभिन्न क्षेत्रों में बाल अधिकारों पर ध्यान केंद्रित करती कार्ययोजना बेहद जरूरी है। इसके लिए सरकारों, नागरिक समाज संगठनों, निजी क्षेत्र, दानदाताओं और बच्चों के पूर्ण सहयोग की जरत होगी। इस रिपोर्ट के मुताबिक इस बारे में डब्‍ल्‍यूएचओ और दूसरे संगठन विभिन्‍न देशों की सरकारों के साथ काम कर रहे हैं ताकि INSPIRE रणनीतिया लागू की जा सकें। लेकिन इसको व्‍यापक पैमाने पर करने के लिए सभी देशों को वित्तीय और तकनीकी सहयोग सुनिश्चित किया जाना भी जरूरी है।

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