सरकार के लिए कहांं तक संभव है चीन के उत्पादों का बहिष्कार, जानें क्या है एक्सपर्ट की राय
गलवन की घटना के बाद चीन को लेकर भारत में हर कोई गुस्से में है और चीन के सामान का बहिष्कार कर रहा है। लेकिन सरकार के लिए ये कितना आसान है।
नई दिल्ली (जेएनएन)। गलवन में हुई हिंसक घटना के बाद देश में न सिर्फ चीन बल्कि उसके उत्पादों को लेकर भी लोगों में गुस्सा साफतौर पर दिखाई दे रहा है। व्यापारियों की तरफ से भी कुछ चीन के उत्पादों की सूची जारी की है जिनको उन्होंने बहिष्कृत कर दिया है। वहीं आम जन भी चीन के उत्पादों का इस्तेमाल न करने की बात कर रहे हैं। सोशल मीडिया पर भी चीन के खिलाफ गुस्सा दिखाई दे रहा है और लोग चीनी उत्पादन का बहिष्कार करने के लिए लगातार कमेंट्स कर रहे हैं। इन सभी का मकसद चीन से बदला लेने का है। लेकिन लोगों के इस गुस्से के बावजूद चीन को आर्थिक मोर्चे पर पटखनी देना कहा तक संभव है? ये एक ऐसा सवाल है जिसका जवाब तलाशना बेहद जरूरी है। इसी सवाल का जवाब तलाशने के लिए दैनिक जागरण ने जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय स्थित सेंटर फॉर ईस्ट एशियन स्टडीज और स्कूल ऑफ इंटरनेशनल स्टडीज की प्रोफेसर आचार्य से बात की।
आचार्य की राय में चीन के साथ गलवन को लेकर उपजे विवाद के मद्देनजर चीन को आर्थिक मोर्चे पर पटखनी देने के लिए सरकार की तरफ से जन भावना के अनुरूप कुछ कदम जरूर उठाए गए हैं। लेकिन, चीन के ऊपर इस मोर्चे पर लगाम लगाना इतना आसान नहीं है, क्योंकि वर्तमान में भारत के अंदर हमारी अपनी जरूरतों के छोटे से उत्पाद से लेकर बड़े उत्पाद भी चीन से आ रहे हैं। ऐसे में चीन पर लगाम लगाने से पहले भारत को पूरी रणनीति बनानी होगी और फिर उस पर काम करना होगा। आचार्य का मानना है कि चीन को पटखनी देने के लिए जरूरी होगा कि सीमा पर सेना और आर्थिक मोर्चे पर सरकार एक साथ काम करे।
उनके मुताबिक वर्तमान में दोनों देशों के बीच व्यापार 100 बिलियन डॉलर से अधिक का है। हालांकि भारत की तरफ से चीन को बेचे जाने वाले सामान के मुकाबले भारत द्वारा चीन से खरीदे जाना वाला उत्पाद काफी है। इस वजह से भारत का चीन से व्यापारिक घाटा काफी बड़ा है। वहीं चीन से भारत में आने वाले निवेश की बात करें तो ये करीब 5-6 बिलियन डॉलर का है जिसको शी चिनफिंग 20 बिलियन डॉलर तक करना चाहते हैं।
उनके मुताबिक आर्थिक मोर्चे पर लिया जाने वाला कोई भी फैसला इतना आसान नहीं होता है। एक साथ कई चीजों या क्षेत्रों पर भी एक दम रोक लगा देने से कई चीजें ठप हो जाएंगी। इसलिए ये तुरंत बड़े पैमाने पर नहीं होगा। इसका जीता जागता उदाहरण चीन-अमेरिका के बीच छिड़ा ट्रेड वार भी है, जिसको लेकर दो वर्ष बाद भी कुछ साफ नहीं हो पाया है। इसलिए चीन को आर्थिक तौर पर दूर करने से पहले सरकार को इसके विकल्प के तौर पर दूसरे देश को साथ लाना होगा या फिर घरेलू मोर्चे पर इतना सशक्त बनना होगा कि उन सभी चीजों को वो खुद बना सकें और उसकी तकनीक विकसित कर सकें।
आचार्य का कहना है कि बीते कुछ वर्षों में चीन का निवेश इसलिए भी भारत में बढ़ा है क्योंकि भारत के पास वो साधन और तकनीक नहीं थी जिसकी मदद से उनका उत्पादन किया जा सके। इसलिए यदि चीन को इस मोर्चे पटखनी देनी है तो खुद को भी मजबूत बनाना होगा। ये देखना बेहद दिलचस्प होगा कि सरकार इसको लेकर क्या और कैसे फैसला लेती है। ऐसा इसलिए भी है क्योंकि भारत में एफडीआई का बड़ा स्रोत चीन ही है। उनके मुताबिक एक तरफ जहां पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था कोविड-19 की बदौलत गिरावट के दौर में है, ऐसे में भारत को मजबूत करने के लिए निवेश की जरूरत है। आचार्य का कहना है कि गलवन की घटना के बाद तकनीक के क्षेत्र में और सुरक्षा के क्षेत्र में जहां चीन की मौजूदगी है उन पर जरूर कुछ फैसला लिया जा सकता है। उन्होंने उम्मीद जताई है कि भविष्य में सरकार चीन को लेकर कोई बड़ा फैसला ले भी लेगी।
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