मुस्लिमों को वापस आरक्षण के दायरे में लाने की कोशिश में ममता सरकार, विधानसभा चुनाव से तलाशा जा रहा रास्ता
पश्चिम बंगाल में तृणमूल सरकार आगामी विधानसभा चुनाव को देखते हुए पिछड़े मुस्लिम समुदाय को फिर से ओबीसी आरक्षण में लाने की योजना बना रही है। कलकत्ता हाई कोर्ट द्वारा 2010 से पहले के ओबीसी प्रमाणपत्र रद किए जाने के बाद सरकार ने इसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है। अब जिलाधिकारियों को बेंचमार्क सर्वे के तहत 62 जातियों व 113 उपजातियों की समीक्षा करने को कहा गया है।

राज्य ब्यूरो, जागरण, कोलकाता। पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी की सरकार अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव को देखते हुए राज्य में रह रहे पिछड़े मुस्लिम समुदाय को वापस आरक्षण के दायरे में लाने का रास्ता तलाश रही है।
मालूम हो कि बंगाल में वाममोर्चा की सरकार रहते तत्कालीन मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य आर्थिक रूप से पिछड़े मुसलमनों को अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के तहत आरक्षण के दायरे में लेकर आए थे। 2011 में सत्ता परिवर्तन के बाद जब ममता बनर्जी के नेतृत्व में तृणमूल कांग्रेस की सरकार बनी तो यह सूची लंबी होती चली गई। इसे लेकर मामला जब कलकत्ता हाई कोर्ट पहुंचा तो पिछले साल अदालत ने 2010 से पहले के सभी ओबीसी प्रमाणपत्रों को रद करने का आदेश दे दिया।
मानदंडों का पालन नहीं हुआ: हाईकोर्ट
हाई कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि सूची में नाम शामिल करते वक्त निर्धारित मानदंडों का पालन नहीं किया गया है। इस आदेश को बंगाल सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है और इसी बीच बंगाल सरकार ने ओबीसी को लेकर नए सिरे से समीक्षा शुरू की है। इस बाबत समस्त जिलाधिकारियों को निर्देश दिया गया है। 62 जातियों और 113 उपजातियों की समीक्षा करें। इसे 'बेंचमार्क सर्वे' नाम दिया गया है।
बंगाल सरकार पर बीजेपी का आरोप
सूत्रों का कहना है कि सरकार पिछले दरवाजे से पिछड़े मुस्लिम समुदाय को आरक्षण के दायरे में लाने के प्रयास में है। इसपर भाजपा विधायक और बंगाल विधानसभा में विपक्ष के नेता सुवेंदु अधिकारी ने कहा कि बंगाल सरकार मुसलमानों को लेकर तुष्टीकरण का प्रयास कर रही है। वहीं बंगाल के पिछड़ा वर्ग कल्याण मंत्री बुलु चिक बराइक ने कहा कि चूंकि ओबीसी संबंधित मामला अदालत के विचाराधीन है इसलिए इस बारे में टिप्पणी करना उचित नहीं होगा।
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