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Year ender 2019: सुर्खियों में रही बंगाल की राजनीतिक उथल-पुथल

Year ender 2019 लोस चुनाव में भाजपा ने की सेंधमारी तो उपचुनाव में हुई तृकां की वापसी भाजपा के खिलाफ सीएए-एनआरसी बना तृकां का राजनीतिक हथियार।

By Babita kashyapEdited By: Published: Tue, 31 Dec 2019 11:30 AM (IST)Updated: Tue, 31 Dec 2019 11:30 AM (IST)
Year ender 2019: सुर्खियों में रही बंगाल की राजनीतिक उथल-पुथल
Year ender 2019: सुर्खियों में रही बंगाल की राजनीतिक उथल-पुथल

कोलकाता, जेएनएन। बंगाल में राजनीतिक नजरिए से साल 2019 राजनीतिक उथल-पुथल वाला साबित हुआ और इस बार यहां की राजनीतिक घटनाक्रम सुर्खियों में रही। एक तरह भाजपा ने जहां तृणमूल के गढ़ कहे जाने वाले बंगाल में इस साल 42 में से 18 लोकसभा सीटों को अपने नाम किया तो वहीं पहले असम एनआरसी और फिर नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) और देश भर में प्रस्तावित (एनआरसी) को मुद्दा बना तृणमूल ने तीन महीने पहले हुए उपचुनाव में तीनों विधानसभा सीट अपने नाम कर वापसी की।

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इस बीच तृणमूल प्रमुख व मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का केंद्र की मोदी सरकार विरोधी चेहरा लगातार सुर्खियों में रहा। सुश्री बनर्जी पूर्व घोषित कार्यक्रम के बावजूद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के शपथ ग्रहण समारोह में शामिल नहीं हुईं। इसके बाद उन्होंने राज्य में केंद्र के नए मोटर वाहन कानून को लागू करने से साफ

इन्कार कर दिया। इतना ही नहीं उन्होंने काश्मीर से 370 हटाए जाने का पुरजोर विरोध किया हालांकि राम मंदिर के मुद्दे पर व बचती नजर आईं। इसके बाद सीएए-एनआरसी का विरोध ममता के लिए राज्य में भाजपा की पैठ को कम करने के लिए बेहतर राजनीतिक हथियार साबित हुआ। उन्होंने नदी जोड़ों परियोजना का भी विरोध किया और इस बीच ममता ने राज्य में राष्ट्रीय जनगणना पंजी (एनपीआर) के काम पर भी पाबंदी लगा दी।

गृह मंत्री के हिंदी प्रेम को सीएम ने बंगाली अस्मिता से जोड़ा

अपनी पकड़ बनाए रखने के प्रयास के तहत ममता बनर्जी ने केंद्र द्वारा हिंदी को थोपने के कदम का विरोध करते हुए इसे बंगाली अस्मिता से जोड़ने की कोशिश की। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा था की हिंदी देश के अधिकतर भागों में बोली जाती है और यह समूचे देश को एकजुट कर सकती है। हालांकि बाद

में उन्होंने स्पष्टीकरण दिया कि उनका आशय क्षेत्रीय भाषाओं पर हिंदी को थोपने से नहीं था। वहीं, इसे बंगाली मनोभाव से जोड़ते हुए तृणमूल प्रमुख ने सौरव गांगुली के बीसीसीआइ की कमान संभालने और अभिजीत बनर्जी के नोबेल पुरस्कार जीतने को बंगालियों के लिए गौरव के क्षण के तौर पर पेश किया। 

जारी रहा राज्य व राज्यपाल के बीच जुबानी जंग

राजनीतिक उथल पुथल के बीच राज्यपाल जगदीप धनखड़ ने जुलाई में कार्यभाल संभाला। कुछ दिन

तो सबकुछ ठीकठाक चला लेकिन छात्रों के विरोध के बीच जादवपुर विश्वविद्यालय में फंसे केंद्रीय मंत्री बाबुल सुप्रियो को लाने पहुंचे राज्यपाल तो यह तृणमूल को नागवार गुजरा। इसके बाद लगातार कभी राज्यपाल तो कभी मुख्यमंत्री व उनके मंत्री राज्यपाल पर हमलावर रहे। यहां तक की सुश्री बनर्जी ने राज्यपाल पर

राज्य में समानांतर सरकार चलाने का आरोप लगाया। विभिन्न मुद्दे को लेकर राजभवन व राज्य के बीच तल्खी अब भी बरकरार है।   

तृणमूल से जुड़े पीके, चलाया दीदी के बोलो अभियान 

बंगाल में भाजपा की बढ़ती लोकप्रियता को देखते हुए तृणमूल प्रमुख व बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने साल के दूसरे चरण में ही 2021 विधानसभा की चुनावी तैयारियां शुरू कर दी। इसके लिए पार्टी ने चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर से संपर्क किया। पीके के जुड़ने के बाद तृणमूल ने जनसंपर्क बढ़ाने के लिए दीदी के बोलो अभियान की शुरुआत की। इतना ही नहीं प्रशांत की देखरेख में लगातार पार्टी के विधायक आम लोगों के बीच पहुंचने लगे, उनकी शिकायतें सुनने लगे। इस बीच ममता बनर्जी लगातार नेताओं के साथ बैठक कर नई रणनीति बनाने पर जोर देती रहीं। 

असम एनआरसी बना तृकां के लिए भाजपा के खिलाफ सुनहरा मौका

असम में अंतिम एनआरसी सूची प्रकाशन और 19 लाख लोगों के नाम इसमें नहीं होने के मुद्दे को भी सुश्री बनर्जी ने भाजपा के खिलाफ पलटवार के सुनहरे मौके के तौर पर इस्तेमाल किया। इस सूची में शामिल नहीं किए गए लोगों में अधिकतर हिंदू बंगाली रहे। मुख्यमंत्री ने शाह के उस बयान का भी विरोध किया जिसमें उन्होंने कहा था कि अवैध घुसपैठियों को भगाने के लिए इसी तरह का कदम बंगाल और देश भर में भी उठाया जाएगा। भाजपा को बंगाल विरोधी पार्टी कहते हुए उन्होंने खुद को एकमात्र रक्षक के तौर पर पेश किया। इसी का नतीजा रहा कि तृणमूल नवंबर में तीन विधानसभा सीटों पर हुए उपचुनावों में तीनों सीट पर जीत दर्ज करने में कामयाब रही।

भाजपा के खिलाफ सीएए बना तृकां का अभियान

साल के आखिरी में नागरिकता संशोधन कानून और देश में प्रस्तावित एनआरसी को मुद्दा बना अब तृणमूल भाजपा के खिलाफ अभियान में जुटी है। पार्टी लगातार इसके खिलाफ विरोध कर रही है और यहां तक कि मुख्यमंत्री ममता बनर्जी लगातार सड़कों पर उतर इसका विरोध कर रही हैं। दक्षिण बंगाल खासकर कोलकाता में खुद मुख्यमंत्री ममता बनर्जी पांच दिन सड़क पर उतर उक्त कानून का विरोध कर चुकी हैं और

अब इस कड़ी में वे दक्षिण बंगाल का रूख कर रही है। पार्टी ने शनिवार को ही सभी 294 विधानसभा इलाके में धरना दिया। इतना ही नहीं तृणमूल प्रमुख अब इस मुद्दे पर भाजपा विरोधी विपक्षी खेमें को लामबंद करने में जुटी हुई हैं। 

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