West Bengal: 'जन समर्थन' खो रहा आरजी कर आंदोलन, समय के साथ धीमे पड़ गए विरोध-प्रदर्शन
पश्चिम बंगाल के सबसे बड़े उत्सव दुर्गापूजा के आगमन व उसके बाद जूनियर डॉक्टरों का आमरण अनशन व हड़ताल खत्म होने के बाद आंदोलन धीमा पड़ गया और अब यह धीरे-धीरे मास कनेक्शन खोता जा रहा है। आरजी कर अस्पताल के आंदोलनकारी डॉक्टर इसे भली-भांति समझ रहे हैं और आंदोलन को उसके मूल स्वरूप में लाने की कोशिश कर रहे हैं।
विशाल श्रेष्ठ, जागरण, कोलकाता। कोलकाता के आरजी कर मेडिकल कॉलेज व अस्पताल में प्रशिक्षु महिला डॉक्टर से दरिंदगी की घटना को लेकर देश-दुनिया ने आंदोलन का नया स्वरूप देखा।
डॉक्टर से लेकर हाथ रिक्शा चालक तक, समाज के हर वर्ग ने इसके खिलाफ आवाज बुलंद की। राज्यभर में जुलूस निकले, जन सभाएं हुईं, रिक्लेम द नाइट (रातभर विरोध-प्रदर्शन), राज्य सरकार के स्वास्थ्य विभाग के कार्यालय व कोलकाता पुलिस मुख्यालय के सामने धरना-प्रदर्शन से लेकर जूनियर डॉक्टरों की हड़ताल व आमरण अनशन तक सबकुछ हुआ।
अचानक धीमा पड़ा आंदोलन
लेकिन बंगाल के सबसे बड़े उत्सव दुर्गापूजा के आगमन व उसके बाद जूनियर डॉक्टरों का आमरण अनशन व हड़ताल खत्म होने के बाद आंदोलन अचानक से धीमा पड़ गया और धीरे-धीरे जन समर्थन 'खोता' जा रहा है।
यही वजह है कि वारदात की जांच के 90 दिनों बाद भी सीबीआई की ओर से अदालत में चार्जशीट दाखिल नहीं कर पाने, मामले के दो अहम आरोपियों अस्पताल के पूर्व प्रिंसिपल संदीप घोष व वारदात के समय स्थानीय टाला थाने के थानेदार रहे अभिजीत मंडल को जमानत मिलने व सेंट्रल फोरेंसिक साइंस लैबोरेटरी (सीएफएसएल) की रिपोर्ट में अस्पताल के सेमिनार हॉल को 'क्राइम सीन' नहीं बताए जाने पर भी अब तक वैसी जन प्रतिक्रिया देखने को नहीं मिली है, जैसी आंदोलन के शुरू में दिखी थी।
लोगों से की अपील
आंदोलनकारी डॉक्टर इसे भली-भांति समझ रहे हैं और आंदोलन को वापस उसके 'मूल' स्वरूप में लाने की कोशिश कर रहे हैं। कोलकाता के धर्मतल्ला इलाके में ज्वाइंट प्लेटफॉर्म ऑफ डॉक्टर्स के बैनर तले धरना दे रहे सीनियर डॉक्टरों ने आम लोगों से इसमें शामिल होने की अपील की है।
उन्होंने लोगों को याद दिलाया है कि उत्सव के मौसम में आरजी कर जैसी वीभत्स घटना को भूल जाने से काम नहीं चलेगा। वहीं मृतका के माता-पिता ने भी लोगों से न्याय की मुहिम में पहले जैसा साथ बनाए रखने का अनुरोध किया है।
क्यों कम हो रहा लोगों का जुड़ाव?
सवाल यह है कि इतने जबरदस्त आंदोलन से आम लोगों का जुड़ाव कम क्यों होता जा रहा है? इस बारे में जाने-माने मनोविज्ञानी अभिषेक हंस ने कहा-'इसके कई कारण हैं। पहला, एक निश्चित समयावधि के बाद लोग मुद्दा विशेष भूलकर आगे बढ़ जाते हैं। यह सामान्य मानव प्रवृत्ति है। दूसरा, आज के दौर में अधिकांश लोग अपने जीवन की चुनौतियों को लेकर इतने व्यस्त व संघर्षरत हैं कि बाकी चीजों के लिए उनके पास न तो समय बचता है और न ही ऊर्जा।
उन्होंने कहा, 'जहां तक आरजी कर कांड की बात है तो मन से हर कोई चाहता है कि मामले में न्याय हो लेकिन उनकी पहले जैसी सहभागिता नहीं दिख रही। इसे लेकर जब आंदोलन शुरू हुआ था, तो सबका इस पर फोकस था। एक लहर सी उमड़ पड़ी थी। लड़ाई का एक जज्बा था, लेकिन जूनियर डॉक्टरों की हड़ताल खत्म होने से आंदोलन का चेन टूट गया और आम लोगों का एक बड़ा वर्ग इससे विमुख हो गया, हालांकि अभी भी एक समर्पित वर्ग है, लेकिन उनकी संख्या काफी कम है।'
मनोवैज्ञानिक ने बताई वजह
हंस मानते हैं कि यह दोबारा पहले जैसे जबरदस्त जनांदोलन में तब्दील हो सकता है, हालांकि यह इसका नेतृत्व करने वालों पर निर्भर करेगा कि वे इसे लेकर आगे क्या कदम उठाते हैं। लोगों का एक वर्ग बाद में इसलिए भी हट गया क्योंकि उन्हें लगने लगा कि यह डॉक्टरों से जुड़ा मामला है और उनका आंदोलन है। इसे जन आंदोलन के रूप में आगे बढ़ाना होगा।
अनशनकारी एक डॉक्टर ने कहा- 'यह जनता से जुड़ा मुद्दा है, इसलिए जनता का साथ बहुत जरुरी है। जन समर्थन से ही इस आंदोलन को अंजाम तक पहुंचाया जा सकता है।'
यह भी पढ़ें- 'सीबीआई जांच पर भरोसा नहीं', पीड़िता के माता पिता पहुंचे कोर्ट; कहा- जांच में किया गया समझौता
कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।