नंदीग्राम में हत्याओं के मामलों की फिर हो सुनवाई, कलकत्ता हाई कोर्ट का आदेश
कलकत्ता हाई कोर्ट ने बंगाल के पूर्व मेदिनीपुर जिले के नंदीग्राम में वामपंथी शासन के दौरान दर्ज हत्या सहित 10 आपराधिक मामलों को लेकर निचली अदालत के फैसले को रद कर दिया है। इसके साथ ही हाईकोर्ट ने इन मामलों की सुनवाई नए सिरे से किए जाने के आदेश भी दिए हैं। राज्य के महाधिवक्ता किशोर दत्ता ने इस मामले में राजनीतिक प्रतिशोध और आत्मरक्षा के अधिकार का तर्क दिया।
राज्य ब्यूरो, जागरण, कोलकाता। कलकत्ता हाई कोर्ट ने बंगाल के पूर्व मेदिनीपुर जिले के नंदीग्राम में वामपंथी शासन के दौरान दर्ज हत्या सहित 10 आपराधिक मामलों में नए सिरे से सुनवाई का आदेश दिया है। राज्य सरकार ने इन मामलों को वापस लेने के लिए निचली अदालत में याचिका दायर की थी।
निचली अदालत ने उस आवेदन को स्वीकार कर लिया था। हाई कोर्ट ने पूर्व मेदिनीपुर की निचली अदालत के फैसले को रद करते हुए यह आदेश जारी किया है। हाई कोर्ट ने यह भी कहा कि 10 से अधिक लोग मारे गए। ऐसी घटनाओं में आपराधिक मामले वापस नहीं लिए जाने चाहिए। अगर हत्यारे न्याय के भय के बिना घूमते रहेंगे तो समाज में शांति नहीं हो सकती।
2014 में इन मामलों को वापस लेने का फैसला
अदालती सूत्रों के अनुसार ये मामले 2007 और 2009 में भूमि अधिग्रहण के खिलाफ आंदोलन के दौरान नंदीग्राम और खेजुरी पुलिस थानों में दर्ज किए गए थे। हालांकि, 2011 में टीएमसी के सत्ता में आने के बाद राज्य मंत्रिमंडल ने 2014 में इन मामलों को वापस लेने का फैसला किया।
राज्य की ममता बनर्जी सरकार ने तर्क दिया कि गरीब भूमिहीन लोगों ने संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत अपनी आजीविका की रक्षा के लिए तत्कालीन भूमि नीति के खिलाफ लड़ाई लड़ी थी। उन्हें व्यक्तिगत रक्षा के कुछ अधिकारों का प्रयोग करना पड़ा। यह घटना उसके कारण घटित हुई। तत्कालीन सरकार के आदेश पर पुलिस ने उन किसानों के खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज किया था। बाद में निचली अदालत ने मामला वापस लेने का आवेदन स्वीकार कर लिया।
'राज्य का तर्क स्वीकार करने लायक नहीं'
निचली अदालत के फैसले को चुनौती देते हुए कलकत्ता हाई कोर्ट में याचिका दायर की गई थी। न्यायमूर्ति देबांग्शु बसाक और न्यायमूर्ति मोहम्मद शब्बार रशीदी की खंडपीठ ने राज्य के तर्क को स्वीकार्य योग्य नहीं पाया। 44 पृष्ठ के आदेश में हाई कोर्ट ने कहा कि 10 आपराधिक मामलों में आरोपितों को मुकदमे का सामना करना होगा। केस डायरी, पोस्टमार्टम रिपोर्ट से बिल्कुल स्पष्ट है कि हत्याएं हुई हैं। इसलिए समाज में अब भी ऐसे लोग हैं, जो ऐसी हत्याओं के दोषी हैं। सीआरपीसी की धारा 321 के तहत मामले को वापस लेने की अनुमति देना जनहित में नहीं होगा।
राजनीतिक मुद्दों से ढकने का कोई भी प्रयास स्वीकार्य नहीं
राज्य के महाधिवक्ता किशोर दत्ता ने इस मामले में राजनीतिक प्रतिशोध और आत्मरक्षा के अधिकार का तर्क दिया। हालांकि, हाई कोर्ट ने उस तर्क को स्वीकार नहीं किया। हाई कोर्ट ने कहा कि मुकदमे में यह तय किया जाना आवश्यक है कि उस समय अभियुक्त का आत्मरक्षा करना कितना आवश्यक था।
सरकार को आदर्श समाज में किसी भी प्रकार की हिंसा को समाप्त करना चाहिए। किसी अपराध को उचित ठहराने और उसे राजनीतिक मुद्दों से ढकने का कोई भी प्रयास स्वीकार्य नहीं है। खंडपीठ ने कहा कि यह उम्मीद की जाती है कि संबंधित अदालतों के आपराधिक मामलों के प्रभारी सरकारी वकील इस फैसले और आदेश की तारीख से 15 दिनों के भीतर उपयुक्त कदम उठाएंगे।
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