कोलकाता शेल कंपनियों का है महफूज ठिकाना, जानिए कैसे यहां काला धन बनता है सफेद
झारखंड हाई कोर्ट में राज्य के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन व उनके भाई बसंत सोरेन और सीएम के करीबियों पर लगभग 400 शेल कंपनियां चलाने का आरोप लगाते हुए जनहित याचिका दायर होने के बाद कोलकाता सुर्खियों में है। जानिए क्यों कोलकाता शेल कंपनियों का महफूज ठिकाना है।

कोलकाता,इंद्रजीत सिंह। औपनिवेशिक काल में देश की अर्थव्यवस्था की रीढ़ रहे बंगाल की राजधानी कोलकाता का कनेक्शन आजकल काला धन का कारोबार करने वाले हर एक ब्लैकमनी मिलेनियर से जुड़ने लगा है। झारखंड हाई कोर्ट में राज्य के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन व उनके भाई बसंत सोरेन और सीएम के करीबियों पर लगभग 400 शेल कंपनियां चलाने का आरोप लगाते हुए जनहित याचिका दायर होने के बाद एक बार फिर कोलकाता सुर्खियों में हैं, क्योंकि बताया जा रहा है कि इनमें से ज्यादातर कंपनियां कोलकाता से संचालित हो रही हैं। इसके अलावा झारखंड की खान एवं उद्योग विभाग की सचिव आइएएस पूजा सिंघल पर भी 20 शेल कंपनियां चलाने का आरोप है। इनका भी लिंक कोलकाता से जुड़ा है।
दरअसल काले धन को सफेद करने का जरिया शेल कंपनियां होती हैं। शेल कंपनियों के जरिये संपत्ति छिपाने वाला शख्स टैक्स की चोरी करता है। अधिकांश मामलों में शेल कंपनियों का व्यवसाय सिर्फ कागजों पर चलता है। जानकारों के मुताबिक सामान्य कंपनियों की तरह ही शेल कंपनियों का रजिस्ट्रेशन होता है। उनमें भी निदेशक होते हैं और सामान्य कंपनियों की तरह रिटर्न भी फाइल की जाती है।
शेल कंपनियां कोलकाता में ही क्यों:
चिटफंड कंपनियों की तरह ही शेल कंपनियां भी सबसे ज्यादा बंगाल में हैं। बंगाल में हजारों करोड़ रुपये के सारधा, रोज वैली चिटफंड घोटालों की जांच के दौरान केंद्रीय जांच एजेंसी केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआइ) को पिछले कुछ सालों में कोलकाता में 24 हजार से अधिक शेल कंपनियों का पता चला है। कर तथा वित्तीय जानकार नारायण जैन का कहना है बंगाल शुरू से ही गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों का केंद्र रहा है और इसी की आड़ में ही बंगाल के पिछड़े जिलों में बड़ी संख्या में चिटफंड कंपनियों तथा कोलकाता में शेल कंपनियों ने अपना जाल फैलाया है। जैन के अनुसार कोलकाता और आसपास के शहरों में चिटफंड से संबंधित काम करने वाले पेशेवर जानकार काफी हैं। यह काफी सस्ते में उपलब्ध होते हैं तथा शेल कंपनियां गढ़ने में माहिर हैं।
शेल कंपनियों के जरिए ऐसे काला धन होता है सफेद :
एक आयकर जानकार के मुताबिक कोलकाता में अगर किसी को एक करोड़ रुपये की पूंजी को काले (छिपे हुए) से सफेद में बदलने की जरूरत है तो पैसे का मूल मालिक एक पेशेवर या एंट्री आपरेटर को एक लाख रुपये देगा, जो राशि को 10 रुपये के 10,000 शेयरों में विभाजित करेगा। इसके बाद प्रत्येक शेयर शेल कंपनियों के निदेशकों को लगभग 1,000 रुपये के अत्यधिक प्रीमियम पर बेचा जाएगा। इससे कंपनी की वैल्यू तुरंत एक लाख रुपये से बढ़कर एक करोड़ रुपये हो जाएगी। नकली कंपनियों के नेटवर्क के जरिए पैसा असली मालिक के पास चला जाता है। एंट्री आपरेटर शुल्क लेता है। अक्सर इन कंपनियों के निदेशक चाय बेचने वाले या आफिस गार्ड जैसे दैनिक वेतन भोगी होते हैं।
कबूतर के दरबेनुमा आफिस से संचालित होती हैं कंपनियां :
कोलकाता में ज्यादातर शेल कंपनियों का ठिकाना डलहौजी स्थित मशहूर मर्केटाइल बिल्डिंग है। यहां कबूतर के दरबेनुमा आफिस से कंपनियां संचालित होती हैं। इसके अलावा रविंद्र सरणी स्थित बागड़ी मार्केट बिल्डिंग में भी शेल कंपनियों की भरमार है।
एक वरिष्ठ आइटी अधिकारी ने कहा कि करीब 90 प्रतिशत शेल कंपनियां कोलकाता में हैं।सूत्रों के अनुसार आयकर विभाग ने शहर में कम से कम 150,000 शेल कंपनियों की पहचान की है, जिनमें लगभग 6,000 सीए कथित रूप से शामिल हैं। अनौपचारिक अनुमानों के मुताबिक कोलकाता में शेल कंपनियां खोलने में शामिल करीब 75 प्रतिशत पेशेवर सीए भी नहीं हैं। वित्त का बुनियादी ज्ञान रखने वाला व्यक्ति इस तरह के लेनदेन कर सकता है।
सरकार का तीन लाख से ज्यादा शेल कंपनियो को बंद करने का दावा :
ऐसा नही है कि सरकार ने इन शेल कंपनियो को बंद करने की कोशिश नही की है। केंद्र सरकार का दावा रहा है कि उसने पूरे देश मे तीन लाख शेल कंपनियों पर ताला डाल दिया और सरकार ने कंपनियों पर लगाम के लिए एक टास्क फोर्स बनाकर आपरेशन शेल कंपनी भी चलाया है।
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