Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    कोलकाता में नेपाली विधि से होती है दुर्गा पूजा, 1973 में हुई थी शुरुआत; उमड़ती है लोगों की भीड़

    Updated: Mon, 22 Sep 2025 10:20 PM (IST)

    कोलकाता में नेपाली समुदाय द्वारा आयोजित दुर्गा पूजा 50 वर्षों से अधिक समय से हो रही है। यह पूजा नवरात्रि के साथ शुरू होती है जिसमें नेपाली विधि से देवी दुर्गा की वंदना की जाती है। विजयादशमी पर सिंदूर खेला के साथ दशई का टीका भी लगता है। पूजा आयोजक नेपाल के हालात को लेकर चिंतित हैं।

    Hero Image
    श्री गोरखनाथ सेवा समिति के तत्वावधान में आयोजित होने वाली दुर्गापूजा का निर्माणाधीन पंडाल

    विशाल श्रेष्ठ, जागरण, कोलकाता। यहां बंगाल की ढाक के साथ पंचे बाजा (नेपाली वाद्य यंत्र) बजता है। विजयादशमी पर बंगाल के प्रसिद्ध 'सिंदूर खेला' के साथ दशई का टीका (नेपाली परंपरा) भी लगता है। नेपाल की कला-संस्कृति झलकती है। यह है कोलकाता के नेपाली समुदाय द्वारा आयोजित होने वाली एकमात्र सार्वजनीन दुर्गापूजा।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    कोलकाता नगर निगम मुख्यालय के सामने 50 वर्षों से भी अधिक समय से इसका आयोजन होता आ रहा है। इस वर्ष भी नवरात्र के शुभारंभ पर कलश स्थापना के साथ आदिशक्ति की आराधना शुरू हो चुकी है। पूजा आयोजक उत्साहित हैं, पर मन में नेपाल के हालात को लेकर चिंता भी है।

    नगर निगम के नेपाली कर्मचारियों ने शुरू की थी पूजा

    श्री गोरखनाथ सेवा समिति के तत्वावधान में होने वाली इस पूजा की आयोजन समिति के सचिव नर बिक्रम थापा ने बताया-'दुर्गा पूजा को लेकर हम उत्साहित हैं लेकिन नेपाल की स्थिति को लेकर चिंतित भी हैं। वहां हमारे बहुत से सगे-संबंधी हैं। देवी दुर्गा से हमारी यही प्रार्थना है कि वहां फिर से अमन-चैन लौटे और स्वतंत्र व निष्पक्ष तरीके से चुनाव संपन्न होने के बाद एक मजबूत स्थायी सरकार का गठन हो। नेपाल विकास के रास्ते पर बढ़े।'

    थापा ने आगे कहा-'हमारी दुर्गापूजा कई मायनों में विशेष है। यह नवरात्र से ही शुरू हो जाती है। हम नेपाली विधि से देवी दुर्गा की वंदना करते हैं। पूजा के दिनों में नेपाली सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है, जिसमें नेपाल के प्रसिद्ध कलाकार परफॉर्म करते हैं। पंडाल में हमारे सदस्य नेपाली वेश-भूषा में रहते हैं। महाअष्टमी के दिन हमारे पंडाल में कुम्हड़ा की बलि दी जाती है। पूजा के दिनों में सुबह-शाम चंडीपाठ किया जाता है।

    इस पूजा की शुरुआत कोलकाता नगर निगम के नेपाली कर्मचारियों ने सन् 1973 में की थी। पहले नगर निगम मुख्यालय परिसर में पूजा होती थी। बाद में बाहर इसका आयोजन होने लगा। पूजा के 53वें वर्ष भव्य मंदिर की तर्ज पर पंडाल का निर्माण किया गया है। 50वें वर्ष नेपाल के पशुपतिनाथ मंदिर की तर्ज पर पंडाल बना था, जिसे देखने भीड़ उमड़ पड़ी थी।

    यह भी पढ़ें- दिल्ली में धार्मिक आयोजनों में अब रात 12 बजे तक लाउडस्पीकर बजाने की अनुमति, नेताओं ने किया फैसले का स्वागत