भारत में 93 प्रतिशत मधुमेह मरीज अपनी बीमारी को लेकर गंभीर नहीं, ICMR की रिपोर्ट में हुए कई बड़े खुलासे
मधुमेह के मामले भारत में तेजी से बढ़ रहे हैं लेकिन लोगों में सावधानी का अभाव है। एक रिपोर्ट के अनुसार केवल 7% मधुमेह मरीज ही अपनी बीमारी को लेकर गंभीर हैं। मधुमेह का मतलब सिर्फ ब्लड शुगर को नियंत्रित करना नहीं है बल्कि ब्लड प्रेशर और कोलेस्ट्रॉल को भी काबू में रखना है।

विशाल श्रेष्ठ, कोलकाता। भारत में मधुमेह (टाइप-2) के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं, लेकिन उससे भी चिंता की बात यह है कि इस बीमारी के प्रति लोगों में सावधानी का घोर अभाव दिख रहा है।
द इंडियन काउंसिल आफ मेडिकल रिसर्च-इंडिया डायबिटीज की रिपोर्ट बताती है कि देश में केवल सात प्रतिशत मधुमेह मरीज अपनी बीमारी को लेकर गंभीर हैं और इसे नियंत्रण में रखने के लिए जरुरी सारे मानकों का अनुसरण कर रहे हैं यानी शेष 93 प्रतिशत का अपनी बीमारी को लेकर काफी ढुलमुल रवैया है। इनमें बहुतों ऐसे हैं, जो मधुमेह को वर्तमान समय की सबसे आम बीमारियों में से एक मानकर हल्के में ले रहे हैं।
करीब दो दशक से भारत में मधुमेह को नियंत्रित करने की दिशा में काम कर रहे कोलकाता-आधारित गैर सरकारी संगठन 'डायबिटीज अवेयरनेस एंड यू' के संस्थापक सचिव इंद्रजीत मजुमदार ने कहा-मधुमेह का मतलब सिर्फ ब्लड सुगर को नियंत्रित करना नहीं है। इसके साथ ब्लड प्रेशर, लिपिड व कॉलेस्ट्राल को भी नियमित रूप से काबू में रखना पड़ता है।
खानपान व शारीरिक क्रियाओं पर भी काफी ध्यान देने की जरुरत होती है। दुर्भाग्य से हमारे देश में सिर्फ सात प्रतिशत मधुमेह मरीज ही इन सारे मानकों का ख्याल रख रहे हैं। कुछ समय पहले हमने कोलकाता में रेटिनोपैथी व न्यूरोपैथी परीक्षण शिविर लगाया था, जहां आए 97 प्रतिशत लोग जीवन में पहली बार ये परीक्षण करवा रहे थे।
परीक्षण में 50 प्रतिशत से ज्यादा लोगों में पांच साल से अधिक समय से मधुमेह पाया गया, जबकि उन्हें इसका पता ही नहीं था। दरअसल मधुमेह 'साइलेंट किलर' है। अधिकांश मामलों में इसके शुरुआती लक्षणों का पता नहीं चलता और बीमारी सामने आने पर अधिकांश लोग सिर्फ ब्लड सुगर को नियंत्रित करने को इलाज समझ लेते हैं। देश में अभी भी मधुमेह के बारे में जागरुकता बहुत कम है।
अधिकांश लोगों को पता ही नहीं है कि इसके इलाज का सही तरीका क्या है। एक समस्या यह भी है कि भारत में डाक्टरों का एक वर्ग इसके इलाज के लिए ठीक तरीके से प्रशिक्षित नहीं है।
कोलकाता स्थित नीलरतन सरकार मेडिकल कालेज एंड अस्पताल के एसोसिएट प्रोफेसर डा. सौमिक गोस्वामी कहते हैं-तेजी से बदलती जीवनशैली मधुमेह के मामले बढऩे का सबसे प्रमुख कारण है। इसके भी दो पहलू हैं-पहला खानपान व दूसरा शारीरिक गतिविधियां।
लोग रिफाइंड कार्बोहाइड्रेट व अस्वास्थ्यकर वसा का अधिक सेवन करने लगे हैं। इससे उनका कैलोरी इनटेक दिन-ब-दिन बढ़ रहा है। उसकी तुलना में कैलोरी बर्नआउट काफी कम है। इससे मोटापे की समस्या हो रही है। शरीर में इंसुलिन का सृजन कम हो रहा है और खून में शर्करा की मात्रा बढ़ रही है। दूसरी तरफ शारीरिक गतिविधियां कम होती जा रही हैं। लोग अब न तो पहले जितना पैदल चलते व साइक्लिंग करते हैं और न ही व्यायाम करते हैं। इसका कारण दैनिक जीवन में टेक्नोलाजी का अत्यधिक प्रयोग है।
टेक्नोलाजी की मदद से आज बहुत से काम बैठे-बैठे हो जाते हैं। ये सब मधुमेह को बढ़ावा दे रहे हैं। इस दुष्चक्र को तोडऩा बहुत जरुरी है। बढ़ता प्रदूषण भी इसका एक कारण है। वातावरण में कुछ ऐसे केमिकल मौजूद होते हैं, जो हमारे शरीर में इंसुलिन बनने की प्रक्रिया को प्रभावित कर सकते हैं। इस कारण आनुवंशिक बदलाव भी आ सकते हैं।
भारत में पिछले साल मधुमेह से 3,34,922 लोगों की मौत
इंटरनेशनल डायबिटीस फेडरेशन की रिपोर्ट के अनुसार 2024 में दक्षिण-पूर्व एशिया में मधुमेह से 3,74,000 लोगों की मौतें हुई थीं, जिनमें अकेले भारत के 3,34922 थे। बांग्लादेश 31,620 मौतों के साथ दूसरे व श्रीलंका 4,160 के साथ तीसरे स्थान पर रहा। मरने वालों में 20 से 79 वर्ष की उम्र के लोग शामिल थे यानी मधुमेह ने नौजवान से लेकर बुजुर्ग तक किसी को नहीं बख्शा।
इस रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि विश्व में मधुमेह से पीड़ित हरेक सातवां वयस्क एक भारतीय है। 2024 तक भारत में 20 से 79 वर्ष के आयुवर्ग के 9 करोड़ लोगों को मधुमेह से पीड़ित पाया गया है। इस आंकड़े के 2050 तक बढ़कर 15.7 करोड़ तक पहुंच जाने की आशंका है। वैज्ञानिक अनुसंधान के मुताबिक भारत में मधुमेह से पीड़ित 42.7 प्रतिशत लोग रोग निदान नहीं होने के कारण इससे अनजान हैं।
उत्तरी व दक्षिणी क्षेत्रों में मधुमेह का सबसे अधिक प्रसार
द इंडियन काउंसिल आफ मेडिकल रिसर्च-इंडिया डायबिटीज की पिछली रिपोर्ट मे उल्लेख है कि भारत के उत्तरी व दक्षिणी क्षेत्रों में मधुमेह का सबसे तेजी से प्रसार हो रहा है। हिमाचल प्रदेश, पंजाब, उत्तराखंड, चंडीगढ़, हरियाणा, दिल्ली, महाराष्ट्र, कर्नाटक, केरल, पुडुचेरी, तमिलनाडु, गोवा, छत्तीसगढ़, पश्चिम बंगाल, सिक्किम, त्रिपुरा व सिक्किम में 10 प्रतिशत या उससे अधिक लोगों को मधुमेह पीड़ित पाया गया है।
आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, गुजरात, ओडिशा व मिजोरम में 7.5 से 9.9 प्रतिशत लोग इससे ग्रसित हैं। राजस्थान, मध्य प्रदेश, झारखंड, बिहार, असम, मणिपुर, नगालैंड और अरुणाचल प्रदेश में 5 से 7.4 प्रतिशत लोगों में मधुमेह के मामले पाए गए हैं। इससे इतर उत्तर प्रदेश इकलौता राज्य है, जहां 4.9 प्रतिशत मामले पाए गए हैं। चिंता की बात यह है कि जिन राज्यों में अभी मधुमेह का तेजी से प्रसार नहीं हुआ है, वहां भविष्य में इसके विस्फोट की स्थिति बन रही है।
जानकार बताते हैं कि दक्षिण भारत में मधुमेह का प्रसार अधिक होने का प्रमुख कारण वहां का खानपान है। दक्षिण भारतीयों का प्रमुख भोजन चावल से बनी चीजें हैं यानी वे कार्बोहाइड्रेट का अधिक सेवन करते हैं। संतुलित आहार में कार्बोहाइड्रेट की मात्रा 50-60 प्रतिशत तक होनी चाहिए जबकि दक्षिण भारतीयों के प्रतिदिन के आहार में यह करीब 70 प्रतिशत है। उनका कैलोरी बर्न आउट भी कम है। केरल में मधुमेह के सबसे अधिक मामले देखे जाते हैं।
इससे विपरीत उत्तर-पूर्व के लोगों को अपनी भौगोलिक स्थिति के कारण रोजाना काफी चढ़ना-उतरना पड़ता है, जिससे उनकी काफी मेहनत हो जाती है इसलिए वहां मधुमेह के मामले कम हैं। बिहार, मध्य प्रदेश व उत्तर प्रदेश में मधुमेह के मामले इसलिए कम हैं क्योंकि वहां के लोग शारीरिक श्रम अधिक करते हैं। इसी कारण भारत में श्रमिक वर्ग मधुमेह से सबसे कम प्रभावित समुदाय है।
मधुमेह से हो सकता है 'साइलेंट हार्ट अटैक'
मधुमेह विशेषज्ञ डाक्टर पवन कुमार अग्रवाल कहते हैं-'मधुमेह अपने साथ हृदय संबंधी बीमारियों, उच्च रक्तचाप व कई शारीरिक समस्याओं को लेकर चलता है इसलिए उनका ध्यान रखना भी उतना ही जरुरी है। मधुमेह के मरीजों को 'साइलेंट हार्ट अटैक' होने की आशंका अधिक रहती है। ऐसे मामलों में हृदय में किसी तरह की समस्या के लक्षण नहीं दिखते। वहीं उच्च रक्तचाप से ब्रेन स्ट्रोक, हार्ट अटैक व किडनी की समस्याएं हो सकती हैं।
कई अनुसंधानों में सामने आया है कि जो लोग मधुमेह से पीड़ित नहीं हैं, दिल का पहला दौरा पडऩे पर उनके मरने की आशंका केवल 20 प्रतिशत रहती है जबकि मधुमेह पीड़ितों के मामले में यही 80 प्रतिशत तक बढ़ जाती है। कोरोना महामारी के समय जो लोग मधुमेह से पीड़ित थे, वही इस वायरस की सबसे अधिक चपेट में आए थे। अब तो कम उम्र वालों को भी मधुमेह अपनी फांस में लेने लगा है। 12-13 साल के लड़के-लड़कियों के इससे ग्रसित होने के कई मामले सामने आ चुके हैं।
डाक्टर अग्रवाल ने आगे कहा-मधुमेह को लेकर ढुलमुल रवैये का एक प्रमुख कारण यह है कि लोग भूल जाते हैं कि मधुमेह जीवन भर साथ रहने वाली बीमारी है। एक बार मधुमेह हो जाने पर उसे जीवनभर नियंत्रित करने की जरुरत होती है। बहुत से लोग एक समय बाद दवा खाने के अनिच्छुक हो जाते हैं। इससे स्थिति और बिगड़ जाती है। मधुमेह के मरीजों को इस बाबत जागरुक करने की जरुरत है।
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