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    कलकत्ता हाई कोर्ट की खंडपीठ ने तृणमूल नेता तपन दत्ता की हत्या में सीबीआइ जांच के आदेश को रखा बरकरार

    By Jagran NewsEdited By: PRITI JHA
    Updated: Fri, 30 Sep 2022 03:04 PM (IST)

    फैसला 2011 में तृणमूल के सत्ता में आने के कुछ ही दिनों बाद दत्ता की कर दी गई थी हत्या अपनी ही पार्टी के लोगों पर हत्या करने का है आरोप इस साल नौ जून को हाई कोर्ट के न्यायमूर्ति ने मामले में सीबीआइ जांच का आदेश दिया था।

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    कलकत्ता हाई कोर्ट की खंडपीठ ने तृणमूल नेता तपन दत्ता की हत्या में सीबीआइ जांच के आदेश को रखा बरकरार

    राज्य ब्यूरो, कोलकाता । बंगाल सरकार को शुक्रवार को एक और झटका लगा जब कलकत्ता उच्च न्यायालय की खंडपीठ ने हावड़ा जिले में तृणमूल कांग्रेस के नेता तपन दत्ता की हत्या में सीबीआइ जांच पर उसी अदालत की एकल पीठ के पहले के आदेश को बरकरार रखने का फैसला किया। बंगाल में तृणमूल कांग्रेस के सत्ता में आने के कुछ ही दिनों बाद छह मई, 2011 को तपन दत्ता की उनके आवास के पास हत्या कर दी गई थी। यह आरोप लगाया गया था कि दत्ता की हत्या हावड़ा के बाली में उनके आवास के पास जलाशयों के अवैध रूप से भरने के विरोध में आवाज उठाने के लिए की गई थी।

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    पत्नी और बेटी ने की थी सीबीआइ जांच की मांग

    शुरुआत में, स्थानीय पुलिस ने मामले की जांच शुरू की और बाद में, जांच बंगाल पुलिस के आपराधिक जांच विभाग (सीआइडी) को सौंप दी गई। हालांकि, तपन दत्ता की पत्नी प्रतिमा दत्ता और उनकी बेटी पूजा दत्ता ने सीबीआइ जांच की मांग करते हुए कलकत्ता उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया और आरोप लगाया कि तृणमूल कांग्रेस के नेता को उनकी ही पार्टी के लोगों ने मार डाला।

    इस साल नौ जून को हाई कोर्ट के न्यायमूर्ति राजशेखर मंथा की एकल पीठ ने मामले में सीबीआइ जांच का आदेश दिया था। हालांकि, बंगाल सरकार ने एकल पीठ के आदेश को हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश प्रकाश श्रीवास्तव और न्यायमूर्ति राजर्षि भारद्वाज की खंडपीठ में चुनौती दी।

    वास्तविक दोषियों को बचाने के लिए सबूतों के साथ छेड़छाड़

    राज्य सरकार के वकील ने तर्क दिया कि एकल पीठ ने जल्दबाजी में आदेश पारित किया, क्योंकि केवल दुर्लभ मामलों में ही पुन: जांच का आदेश दिया जाता है और वह भी दो अलग-अलग आरोप पत्र प्रस्तुत करने के बाद।

    वहीं, प्रतिमा दत्ता के वकील विकास रंजन भट्टाचार्य ने तर्क दिया कि दूसरे आरोप पत्र में तृणमूल कांग्रेस के कुछ नेताओं के नाम हटा दिए गए थे, जिनका नाम पहले आरोपपत्र में था। उन्होंने यह भी तर्क दिया कि मामले में वास्तविक दोषियों को बचाने के लिए सबूतों के साथ छेड़छाड़ की गई थी और इसलिए, एक केंद्रीय एजेंसी द्वारा जांच आवश्यक थी।

    अंतत: शुक्रवार को दोनों पक्षों को सुनने के बाद खंडपीठ ने मामले में सीबीआइ जांच के लिए एकल पीठ के पहले के आदेश को बरकरार रखा। 

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