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    बंगाल में मछली पालन को बढ़ावा देने के लिए तीन जिलों में अपनाई जाएगी बायोफ्लाक तकनीक

    By Priti JhaEdited By:
    Updated: Fri, 15 Apr 2022 02:25 PM (IST)

    बायोफ्लोक एक ऐसी तकनीक है जिसके उपयोग से बड़े तालाबों में जलीय कृषि के पारंपरिक रूप की तुलना में एक टैंक में पानी की एक छोटी मात्रा में मछलियों का उत्पादन किया जा सकता है। इस तकनीक में मछली की गति उनके व्यवहार की निगरानी करना आसान है।

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    बंगाल में मछली पालन को बढ़ावा देने के लिए तीन जिलों में अपनाई जाएगी बायोफ्लाक तकनीक

    राज्य ब्यूरो, कोलकाता। पश्चिम बंगाल में मछली पालन को बढ़ावा देने के लिए राज्य सरकार द्वारा कई योजनाएं चलाई जा रही है। किसानों को आधुनिक तकनिक के जरिए मछली पालन करने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है। इसी क्रम में किसानों को तकनीक के प्रति जागरूक करने के लिए अब राज्य मत्स्य विभाग तीन जिलों में बायोफ्लोक तकनीक के माध्यम से मछली पालन पर एक पायलट परियोजना शुरू करने की तैयारी में है। इसका मकसद अधिक से अधिक ग्रामीणों को मछली पालन के प्रति प्रोत्साहित किया जा सके। राज्य के मत्स्य पालन मंत्री अखिल गिरि ने कहा कि बायोफ्लोक के माध्यम से ऐसी कई परियोजनाओं के कार्यान्वयन के लिए बांकुरा, पश्चिम मिदनापुर और उत्तरी दिनाजपुर जिले की पहचान की गई है।

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    उन्होंने कहा कि मत्स्य किसानों को परेशानी नहीं हो इसके लिए मत्स्य पालकों के लिए विभाग द्वारा प्रशिक्षण का भी आयोजन किया जाएगा ताकि किसान बेहतर तरीके से मछली पालन कर सकें। गिरी ने कहा कि बायोफ्लोक एक ऐसी तकनीक है जिसके उपयोग से बड़े तालाबों में जलीय कृषि के पारंपरिक रूप की तुलना में एक टैंक में पानी की एक छोटी मात्रा में मछलियों का उत्पादन किया जा सकता है। इस तकनीक में मछली की गति, उनके व्यवहार की निगरानी करना आसान है। इतना ही नहीं इसमें एक टैंक के अंदर मछलियां रहती है, इसलिए कोई बीमारी होने पर सुधारात्मक उपाय करने में मदद मिलती है।

    पहले से ही कुछ जिलों में हो रहा बायोफ्लाक तकनीक का उपयोग

    इधर, पंचायत और ग्रामीण विकास विभाग के तत्वावधान में पश्चिम बंगाल व्यापक क्षेत्र विकास निगम ने स्वयं सहायता समूह को शामिल करके बायोफ्लाक तकनीक के जरिए पहले से मछली पालन शुरू कर चुका है। यह स्वयं सहायता समूह की महिलाओं के लिए आजीविका सहायता का एक उत्कृष्ट स्रोत साबित हुआ है। पूर्व मेदिनीपुर जिले के तमलुक, पुरुलिया के अयोध्या हिल्स समेत मुर्शिदाबाद, झारग्राम और बीरभूम जिले में कुछ अर्ध-शुष्क क्षेत्रों में पहले से ही बायोफ्लाक तकनीक के जरिए मछली पालन किया जा रहा है।

    13 सहकारी समिति बनाने का निर्णय

     बायोफ्लाक तकनीक के माध्यम से मत्स्य पालक मांगुर, सिंगी, तेलपिया, पबड़ा और यहां तक कि झींगा जैसी कई प्रकार की मछलियों का पालन किया जाता है। मत्स्य पालन मंत्री ने जिलाधिकारियों और अन्य संबंधित अधिकारियों के साथ अपने विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों के साथ एक उच्च स्तरीय बैठक भी की और मछुआरों के क्रेडिट कार्ड की स्थिति और स्टाक की जानकारी ली। विभाग ने मछली उत्पादन बढ़ाने के लिए नयाचार में मछली किसानों को जोड़ कर 13 सहकारी समितियां बनाने का निर्णय लिया है। मंत्री गिरि ने अपने अधिकारियों को सभी जिलों में बंग मत्स्य योजना के तहत प्रशिक्षण शुरू करने का भी निर्देश दिया है।