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    Bengal: 'बंगाल सरकार कोर्ट के आदेश का पालन करना चाहती है या नहीं 24 घंटे में बताए', कलकत्ता हाई कोर्ट के जज ने लगाई फटकार

    याचिकाकर्ता ने हाई कोर्ट में शिकायत की थी कि सहकारी समिति में 21 हजार 163 लोगों ने कुल 50 करोड़ रुपये का निवेश किया था। पैसे जमा करते समय समिति ने कहा कि इस पैसे का इस्तेमाल बाजार में लोन के तौर पर किया जाएगा लेकिन बाद में जब पैसा वापस पाने का समय आया तो निवेशकों को पता चला कि समिति दिवालिया हो गई है।

    By Jagran NewsEdited By: Shalini KumariUpdated: Mon, 18 Dec 2023 05:47 PM (IST)
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    कलकत्ता हाई कोर्ट ने महिला सहकारी समिति से जुड़े मामले में राज्य सरकार को लगाई फटकार (फाइल फोटो)

    राज्य ब्यूरो, कोलकाता। कलकत्ता हाई कोर्ट के न्यायमूर्ति अभिजीत गंगोपाध्याय ने राज्य के मुख्य सचिव को 24 घंटे के भीतर राज्य सरकार को सूचित करने का निर्देश दिया कि क्या वह उत्तर बंगाल की अलीपुरद्वार महिला सहकारी समिति से जुड़े भ्रष्टाचार के मामले में अदालत के आदेश का पालन करने को तैयार है?

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    पुलिस अधिकारियों की प्रतिनियुक्ति का आदेश

    इस मामले की सुनवाई में जस्टिस गंगोपाध्याय ने सोमवार को आदेश दिया कि मामले की जानकारी मंगलवार दोपहर तीन बजे तक हलफनामे के जरिए दी जाए। न्यायमूर्ति गंगोपाध्याय ने इस मामले में सीबीआई जांच का आदेश दिया है, लेकिन न्यायाधीश ने सीबीआई पर मामले के दबाव के कारण राज्य के 10 पुलिस अधिकारियों की प्रतिनियुक्ति का आदेश दिया है।

    अब तक नहीं हुई कोई कार्रवाई

    साथ ही, कोर्ट ने कहा कि राज्य को मामले के जांचकर्ताओं के उत्तरी बंगाल में रहने और यात्रा की व्यवस्था करनी चाहिए। उच्च न्यायालय के रजिस्ट्रार जनरल ने यह निर्देश मुख्य सचिव कार्यालय को भेज दिया। अदालत का आदेश पहले तीन नवंबर को और फिर 7 दिसंबर को घोषित किया गया था, लेकिन सोमवार को सीबीआई ने आरोप लगाया कि राज्य की ओर से अब तक कोई कार्रवाई नहीं की गई है।

    पैसे लौटाने के दौरान दिवालिया हुआ समिति

    याचिकाकर्ता ने हाई कोर्ट में शिकायत की थी कि सहकारी समिति में 21 हजार 163 लोगों ने कुल 50 करोड़ रुपये का निवेश किया था। पैसे जमा करते समय समिति ने कहा कि इस पैसे का इस्तेमाल बाजार में लोन के तौर पर किया जाएगा, लेकिन बाद में जब पैसा वापस पाने का समय आया तो, निवेशकों को पता चला कि समिति दिवालिया हो गई है।

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    तीन साल की जांच के बाद भी सीआईडी यह पता नहीं लगा सकी कि कर्ज के रूप में पैसा किसे दिया गया था। समिति के पांच पदाधिकारियों को गिरफ्तार भी किया गया है। याचिकाकर्ता ने कोर्ट से शिकायत की कि अगर लोन दिया गया होता तो लाभार्थियों का नाम भी बताया जाता। लेकिन पिछले तीन साल में सीआईडी को किसी का नाम नहीं मिला है।

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