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    क्या बंगाल में लटक जाएगा Aparajita Bill? राज्यपाल ने ममता सरकार को क्यों लौटाया विधेयक?

    Updated: Fri, 25 Jul 2025 10:00 PM (IST)

    पश्चिम बंगाल के राज्यपाल सीवी आनंद बोस ने अपराजिता विधेयक को पुनर्विचार के लिए राज्य सरकार को लौटा दिया है। केंद्र सरकार ने विधेयक में भारतीय न्याय संहिता में प्रस्तावित बदलावों पर गंभीर आपत्तियां उठाई हैं विशेषकर दुष्कर्म की सजा को लेकर। केंद्र ने दुष्कर्म के लिए न्यूनतम सजा को बढ़ाने के प्रस्ताव को अत्यधिक कठोर बताया है।

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    केंद्र की कानूनी आपत्तियों के बाद राज्यपाल बोस ने अपराजिता विधेयक को राज्य को लौटाया।(फाइल फोटो)

    राज्य ब्यूरो, कोलकाताः बंगाल के राज्यपाल सीवी आनंद बोस ने अपराजिता विधेयक को राज्य सरकार को विचारार्थ वापस भेज दिया है। केंद्र ने भारतीय न्याय संहिता में प्रस्तावित बदलावों पर गंभीर आपत्तियां उठाई हैं, जिनकी मांग इस विधेयक में की गई है। राजभवन के एक उच्च पदस्थ सूत्र ने यह जानकारी दी।

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    सूत्र ने बताया कि केंद्र ने अपनी टिप्पणी में पाया कि सितंबर 2024 में विधानसभा में पारित अपराजिता महिला एवं बाल विकास विधेयक, भारतीय न्याय संहिता की कई धाराओं के तहत दुष्कर्म की सजा में बदलाव की मांग करता है जो "अत्यधिक कठोर और असंगत" हैं।

    हालांकि, राज्य सरकार ने कहा कि उसे अभी तक केंद्र सरकार या राज्यपाल कार्यालय से विधेयक के कुछ प्रावधानों पर उनकी "टिप्पणियों" के बारे में कोई सूचना नहीं मिली है। विधेयक में दुष्कर्म के लिए बीएनएस के तहत मौजूदा न्यूनतम 10 साल की सजा को बढ़ाकर आजीवन कारावास या मृत्युदंड करने का प्रस्ताव है।

    सूत्र ने बताया कि गृह मंत्रालय ने विधेयक के कई प्रावधानों को समस्याग्रस्त बताया है। गृह मंत्रालय की टिप्पणी पर ध्यान देने के बाद, राज्यपाल ने उन्हें उचित विचार के लिए राज्य सरकार के पास भेज दिया है।

    केंद्र ने विधेयक पर क्यों जताई चिंता?

    गृह मंत्रालय की टिप्पणी का हवाला देते हुए कहा गया है कि केंद्र ने दुष्कर्म के लिए न्यूनतम 10 साल की सजा को बढ़ाकर आजीवन कारावास या मृत्युदंड करने के लिए बीएनएस की धारा 64 में संशोधन के प्रस्ताव को अत्यधिक कठोर और असंगत बताया है।

    दूसरा विवादास्पद बदलाव धारा 65 को हटाने का प्रस्ताव है, जो वर्तमान में 16 और 12 वर्ष से कम उम्र की लड़कियों के साथ दुष्कर्म के लिए कठोर दंड का प्रावधान करती है।

    इस वर्गीकरण को हटाने से सजा में आनुपातिकता का सिद्धांत कमजोर होता है और सबसे कमजोर पीड़ितों के लिए कानूनी सुरक्षा कम हो सकती है। हालांकि, सबसे तीखी आलोचना धारा 66 के तहत आने वाले खंड की हो रही है, जो दुष्कर्म के उन मामलों में मृत्युदंड को अनिवार्य बनाने का प्रयास करता है जहां पीड़िता की या तो मृत्यु हो जाती है या वह लगातार निष्क्रिय अवस्था में रहती है।

    सूत्र ने कहा कि मंत्रालय ने संवैधानिक चिंताएं उठाई हैं और तर्क दिया है कि सजा सुनाने में न्यायिक विवेकाधिकार को हटाना स्थापित कानूनी मानदंडों और सर्वोच्च न्यायालय के फैसलों का उल्लंघन है। राज्यपाल बोस ने हाल ही में इस विधेयक को भारत के राष्ट्रपति के विचारार्थ सुरक्षित रखा था।

    राज्य के एक वरिष्ठ नौकरशाह ने कहा कि अभी तक, अपराजिता विधेयक के संबंध में किसी से कोई संवाद नहीं हुआ है। अगर हमें ऐसी कोई सूचना मिलती है, तो हम इस मामले में आवश्यकतानुसार उपयुक्त कदम उठाने पर विचार करेंगे।

    बंगाल विधानसभा ने 9 अगस्त, 2024 को कोलकाता के आरजी कर मेडिकल कालेज व अस्पताल में एक प्रशिक्षु डाक्टर से दुष्कर्म और हत्या की घटना के लगभग एक महीने बाद सर्वसम्मति से विधेयक पारित किया था।

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