उत्तर बंगाल में रहते हैं, महिषासुर के वंशज, आज भी ये मां दुर्गा के चेहरे का दर्शन नहीं करते
उत्तर बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के चाय बगानों में असुर समुदाय के लोग रहते हैं। वे खुद को महिषासुर का वंशज बताते हैं। दुर्गा पूजा के दौरान अपने घरों में कैद होकर रहते हैं। हालांकि नई पीढ़ी के लोग मेला में घूमना पसंद कर रहे हैं मगर
धूपगुड़ी (जलपाईगुड़ी), रॉनी चौधरी । पूरा बंगाल जब दुर्गा पूजा उत्सव में मगन रहता है उस वक्त उत्तर बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले में एक समुदाय ऐसा है, जो खुद को उत्सव से दूर रखने के लिए अपने ही घरों में कैद होकर रहते हैं। वे मां दुर्गा की प्रतिमा का चेहरा नहीं देखना चाहते इसलिए खुद को छुपा लेते हैं। कई बार वे काले कपड़े से घर के चारों ओर पर्दा सा बना लेते हैं। ये लोग वे महिषासुर के वंशज होने का दावा करते हैं। चूंकि देवी दुर्गा ने महिषासुर का वध किया था, इसलिए वे देवी का चेहरा नहीं देखते ना ही दुर्गा पूजा के उत्सव में भाग लेते हैं। वे लोग पूजा का प्रसाद भी नहीं खाते हैं। वे राक्षसों की पूजा करते हैं।
मेला में आने लगी नई पीढ़ी
हालांकि वे खुद को हिंदू बताते हैं, लेकिन उत्तर बंगाल का असुर समुदाय अनादि काल से इस प्रथा का पालन करता आ रहा है। लेकिन, वर्तमान पीढ़ी में अब बदलाव दिखने लगा है। अब छोटे बच्चे दुर्गा पूजा उत्सव की धूम देखकर मचलते हैं तो माता-पिता उन्हें मेला दिखाने तो ले आते हैं मगर मां दुर्गा की प्रतिमा के दर्शन नहीं करते हैं। वे पूजा पंडालों में महिषासुर को सिर नवाते हैं।
बाहरी लोगों को देखते ही छुप जाते
ये लोग बाकी दुनिया से कटकर जीवन यापन करते हैं। पहले ये हिंदी या बंगाली भाषा बिल्कुल नहीं समझते थे। अब युवा काम की तलाश में स्थानीय लोगों से घुलते-मिलते हैं, जिससे कुछ लोग टूटी-फूटी हिंदी और बांग्ला समझने लगे हैं। कई लोग स्थानीय सादरी भाषा भी समझते हैं। ये लोग शहर के या बाहरी लोगों को आज भी देखते ही छुप जाते हैं। जब धूपगुड़ी स्थित कैरन चाय बागान में असुर समुदाय के लोगों से बात करने की कोशिश की गई तो वे बात करने को तैयार नहीं हुए। उत्तर बंगाल के चंद चाय बागानों में रहने वाले इस समुदाय के लोग सदियों से शारदोत्सव के दौरान शोक मनाते हैं, क्योंकि देवी दुर्गा ने महिषासुर का वध किया था।
पूजा पंडालों में महिषासुर को शीश नवाते
उत्तर बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के नागराकाटा, अलीपुरद्वार जिले के गुरजंगझोरा बागान, मघेरदाबरी, निमितिझोरा और सिलीगुड़ी के नक्सलबाड़ी चाय बागान में असुर समुदाय के कुल 600 परिवार रहते हैं। हालांकि कैरों चाय बागान के बुजुर्ग असुर समुदाय के संतोष असुर ने संवाददाता से बातचीत की। उन्होंने बताया कि अब समय बदल रहा है। वर्तमान में असुर समाज के बच्चे चाय बागान के बाहर अलग-अलग नौकरियों में जा रहे हैं, बगीचे की सीमाओं से बाहर जाकर पढ़ाई करने के लिए आधुनिक सोच वाले हो रहे हैं। संतोष असुर ने कहा कि दुर्गा पूजा के दौरान आज भी बुजुर्ग घर से बाहर नहीं निकलते हैं, लेकिन वर्तमान पीढ़ी हर तरह से आधुनिक होती जा रही है। इसलिए असुर समाज के बच्चे देवी दुर्गा के दरबार में जाकर अपने देवता तुल्य महिषासुर को प्रणाम करते हैं। हालांकि, हम मूर्ति का चेहरा नहीं देखते।
बच्चों को मेला दिखाने ले जाते असुर समुदाय के लोग । जागरण फोटो।
मुख्य पेशा चाय बगानों में श्रम
जलपाईगुड़ी जिले के नगरकाटा प्रखंड के चाय बागान क्षेत्र में करीब पांच सौ असुर परिवार हैं। अलीपुरद्वार के बीच में डाबरी चाय बागान क्षेत्र में करीब एक सौ दो परिवार रहते हैं। 1991 के आंकड़ों के अनुसार, 52.72 प्रतिशत असुर चाय बागान मजदूर हैं, 15.65 प्रतिशत किसान हैं और 13.6 प्रतिशत असुर खेेेेतिहर मजदूर हैं। प्रारंभ में, उनमें से लगभग सभी चाय बागानों से जुड़े थे, लेकिन अब उनमें से कई वन क्षेत्रों में कृषि कार्य और कृषि श्रम में लगे हुए हैं। आज 48.6 प्रतिशत 'असुर' हिंदू धर्म मानते हैं, जबकि 40.78 प्रतिशत बौद्ध हैं। बाकी के 15.05 प्रतिशत असुरों ने मुस्लिम और ईसाई धर्म अपना लिया है। इस क्षेत्र में धर्मांतरण तेजी से हो रहे हैं।
इनके मुख्य देवता 'सिंगबोंगा' और 'मारंग बोंगा' हैं। इन्हें खुश करने के लिए वे लाल मुर्गा समर्पित करते हैं। इस समुदाय का एक ग्राम देवता भी है। जिसका नाम 'पटदेवता' है। 'पहन' का कार्य 'पटदेवता' की पूजा करना है। उनके एक अन्य ग्राम देवता को 'महादानिया' कहा जाता है।
नई पीढ़ी जाने लगी है स्कूल
सामाजिक कार्यकर्ता साजू तालुकदार ने बताया कि कैरों चाय बागान में असुर समुदाय के 150 परिवार हैं। महालया के दिनों से ही वे अपने घरों में ताला लगा कर रखते थे। दुर्गा पूजा के दौरान वृद्ध महिलाएं भी घर से बाहर नहीं निकलती हैं। लेकिन नई पीढ़ी स्कूल जा रही है और दुर्गा पूजा उत्सव भी देखने जाने लगे हैं।