रक्षा बंधन पर्व पर कोलकाता से 1905 में टैगोर ने उठाई थी आवाज
बांग्लादेश की सीमा पर डटे देश के प्रहरियों ने हाथों से बनी राखी (प्यार) बांधने आईं बहनों का अभिनंदन किया तो बहनों ने भी उनके उत्साहवर्धन में कसर नहीं उठा रखी।
सिलीगुड़ी, [प्रेम किशोर तिवारी]। रक्षा बंधन पर्व का उल्लेख यूं तो भविष्य पुराण की राजा बलि के कथानक से जुड़कर आज भी प्रासंगिक बना है। कलाइयों पर कच्चे धागे बांधते समय पुरोहित, पंडित यही स्वस्तिवाचन करते हैं कि येन बद्धो बलि राजा दानवेंद्रो महाबलि:..।
वहीं भारत के वायसराय लार्ड कर्जन की नीति 'डिवाइड एंड रूल' के खिलाफ आंदोलन का आगाज कोलकाता की सरजमीं से 16 अक्टूबर 1905 में भारत व बांग्लादेश के राष्ट्रगान के रचयिता रवींद्रनाथ टैगोर ने इसी रक्षाबंधन के त्योहार पर किया था। इतिहास से जुड़े संस्मरणों को समेटे भाई-बहन के त्योहार को भले रस्मी रूप दे दिया गया हो पर आज भी यह प्यार का बंधन रिश्तों की महत्ता को जीवित किए हुए है।
आज जब बात देश प्रेम की उठी तो भाई-बहनों ने चीन की सस्ती व आकर्षक राखियों को दरकिनार करने की ठान ली तो कच्चे धागे फिर भूली बिसरी गाथाओं से जोड़कर देखे जाने लगे। देश की बहनों ने भारत रक्षा पर्व रथ को सैनिक भाइयों के लिए हाथों से बनी राखियां ही सौंपी और बांधी तो भी वही।
हालांकि समय के साथ कच्चे धागे महंगे होते गए। सोने-चांदी की राखियां सर्राफ बनाने लगे। वक्त का तकाजा रहा कि राखी घडि़यों व ब्रेसलेट के रूप में आ गईं। विदेशी निवेशक भी राखी को और नया अंदाज देकर बाजार में पैर जमाने के लिए हाथ-पैर मारने लगे। गरीबों को भी सस्ते दाम पर आकर्षक राखियां चीन ने पेश की तो बाजार भी उनकी तरफ दौड़ पड़ा। हाल यह हुआ कि कच्चे धागे से निर्मित राखियां भगवान को ही समर्पित की जाने लगीं और खुद की कलाई पर कुंदन-मोतियों की राखी सज गईं।
समय ने फिर पलटा खाया और फैशन पलटकर फिर उसी पुराने दौर की तरफ चल पड़ा। बाजार में भले चीन की सस्ती आकर्षक राखियां आईं हों पर लोग हाथों से बनी राखियों को तवज्जो देने लगे। भारत के कुटीर उद्योग को फिर नया जीवन मिला, लेकिन तरक्की नहीं रुकी। घरों में बनने वाली राखियां भी आधुनिकता की दौड़ में शामिल हो गईं। ब्रेसलेट का आकार लिए राखियां घरों में तैयार हुईं। दरअसल, सवाल पसंदगी का है, युवा पीढ़ी ब्रेसलेटनुमा राखियों की ओर उन्मुख है। उसे पुरातन परंपरा तो भा रही है लेकिन अंदाज नया..। यही कारण है कि फोम की गोलाकार राखियां अब लोग पसंद नहीं कर रहे हैं। उनकी जगह राखी रेशम के धागे से भले न बनी हों पर ब्रेसलेट की तरह दिखती जरूर हों।
बाजार की तरफ नजर करें तो राष्ट्र प्रेम का आह्वान फिर नजर आने लगा। इन दिनों बहनें भी भाइयों को वही राखियां बांधना चाह रही हैं, जो बहन के साथ राष्ट्र प्रेम को भी प्रदर्शित करती हों। और वही वचन फिर चाह रहीं हैं, जो बहन के साथ राष्ट्र की रक्षा से भी ओतप्रोत हो। इसका जीता जागता उदाहरण भारत रक्षा पर्व रथ है, जिसका कई सैन्य पड़ावों, यहां तक कि बांग्लादेश की सीमा पर डटे देश के प्रहरियों ने हाथों से बनी राखी (प्यार) बांधने आईं बहनों का अभिनंदन किया तो बहनों ने भी उनके उत्साहवर्धन में कसर नहीं उठा रखी।
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