उलझे हुए देश को सुलझाने वाले बजट की जरुरत: पीसी मस्कारा
जागरण विमर्श का लोगो लगेगा ........................ -बैंक ब्याज दर पर
-बैंक ब्याज दर पर जो टीडीएस कटौती बंद हो
-पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए हो विशेष पहल
-कारोबारियों व छोटे उद्योगपतियों को मिलनी चाहिए सुविधाएं
-ज्यादा परेशान करेंगे तो बंद होगी दुकानें
जागरण संवाददाता, सिलीगुड़ी :पहली फरवरी को आम बजट आने वाला है। इसकी चर्चा प्रत्येक क्षेत्र में होने लगी है। महंगाई, अर्थव्यवस्था समेत अन्य कई समस्याओं को लेकर देश को उलझाने की कोशिश हो रही है। ऐसे में जरुरी है कि आम बजट कुछ ऐसा हो जिससे यह देश का सुलझाने वाला बजट बनकर सामने आए। यह कहना है सिलीगुड़ी के वरिष्ठ सीए पीसी मस्कारा का। वह दैनिक जागरण विमर्श कार्यक्रम में बतौर अतिथि चर्चा कर रहे थे। आज का विषय था कैसा होना चाहिए आम बजट?। उन्होंने कहा कि सिलीगुड़ी पूर्वोत्तर का प्रवेशद्वार है। यहां बजट पर चर्चा देश के एक बड़े हिस्से का प्रभावित करने वाला बन सकता है। उन्होंने कहा कि बैंक ब्याज दर पर जो टीडीएस लेती है उसे बंद कर देना चाहिए। ब्याज पर टीडीएस काटने के कारण लोग निवेश करने से डरते है। काटे गये टीडीएस उन्हें समय पर मिल ही नहीं पाता। टैक्स रेट पूरे देश में एक होना चाहिए। इससे टैक्स में बढ़ोत्तरी के साथ कारोबारियों को परेशानी नहीं होगी। पूर्वोत्तर के इस प्रवेशद्वार में पर्यटन क्षेत्र में विकास पर बल देते हुए केंद्र सरकार को आम बजट में पहल करनी चाहिए। छोटे, लघु और बड़े उद्योग को बढ़ावा देने के लिए देश में समान स्तर पर औद्योगिक नीति की घोषणा इस बजट के माध्यम से किया जाना चाहिए। बजट में कृषि क्षेत्र पर सबसे ज्यादा ध्यान देना अनिवार्य है। कृषि उत्पादन को उसका वास्तविक दाम मिले। इसके लिए सभी प्रकार की आधारभूत सुविधाएं प्रत्येक राज्य में मुहैया कराया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि क्योंकि देश की बड़ी आबादी कृषि क्षेत्र में लगी है। दरअसल कारपोरेट सेक्टर के उत्पादों का बड़ी संख्या में इस्तेमाल इस देश के ग्रामीण और छोटे इलाके के लोग करते हैं। इसमें बहुत बड़ी संख्या किसानों की है। अगर किसान भूखे होंगे तो कंपनिया भी बंद होगी। सरकार को बेरोजगारों के लिए न्यूनतम आय की गारंटी देने पर काम करना होगा,ताकि लोगों में बाजार में खर्च करने की क्षमता बढ़े। आने वाले बजट में अर्थव्यस्था को मंदी से निकालना सबसे बड़ी चुनौती है। मंदी का प्रभाव कंपनियों पर ही नहीं बल्कि आम जनता पर भी दिख रहा है। इस लाभ का फायदा तीन फ्रंट पर होगा। कंपनिया अपना मुनाफा भी कमाएगी, सरकार को टैक्स भी देगी, वहीं बैंकों का एनपीए कम होगा। क्योंकि कंपनिया बैंकों का लोन तभी वसूलेंगी जब उन्हें बाजार में लाभ होगा। इसका असर लोगों के आय पर ही नहीं रोजगार पर भी पड़ा है। केंद्र सरकार लगातार रिजर्व बैंक और सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों से लाभाश माग रही है। टैक्स कलेक्शन को लेकर सरकार के सामने कई चुनौतिया आ गई है। प्रत्यक्ष कर वसूली को लेकर पिछले वित्त वर्ष के लक्ष्य को पूरा करने में परेशानी है। प्रत्यक्ष कर से सरकार की 13 लाख करोड़ रुपये की आय की योजना थी। लेकिन अभी तक यह 7.5 लाख करोड़ रुपये की ही उगाही हुई है। मंदी ने आयकर से लेकर जीएसटी तक प्रभावित किया है। व्यापारी टैक्स दफ्तरो में जाकर साफ बोल रहे है कि जो टैक्स विभाग निकाल रहा है, उसे देने के लिए उनके पास पैसे नहीं हैं। आयकर विभाग को जांच प्रणाली को कम से कम दो या तीन वर्षो के लिए बंद कर देना चाहिए। क्योंकि इससे व्यवसायी व कारोबारी परेशान होते है। ज्यादा तंग करेंगे तो दुकान बंद कर चले जाएंगे। उनके पास दुकान बंद करने के सिवाए कोई चारा नहीं है। कारपोरेट टैक्स में छूट दिया, लेकिन अर्थव्यवस्था को लाभ नहीं मिला। नई कंपनियों के लिए कारपोरेट टैक्स का बेस 25 से 15 प्रतिशत तक लाया गया। लेकिन इससे कोई तेजी नहीं आयी। इसे सभी यानि नये व पुरानी कंपनियों के लिए बजट में एक टैक्स यानि 15 प्रतिशत किया जाना चाहिए। भारत से बेहतर निवेश का स्थान इस समय बाग्लादेश, थाईलैंड, वियतनाम, इंडोनेशिया, मलेशिया जैसे देश है जहा कच्चा माल से लेकर सस्ता श्रम उपलब्ध है। इससे भी देश को सबक लेना होगा। बजट से पहले आयकर में छूट के साथ कंपनी के फार्म तनख्वाह में पांच लाख छूट मिले। देश में ईमानदारी से टैक्स देने वाले लोग मात्र 4 प्रतिशत हैं। वैसे में सिर्फ इन चार प्रतिशत लोगों से लिए जाने वाले टैक्स में छूट के बाद अर्थव्यवस्था में तेजी आएगी इसकी उम्मीद काफी कम है। एनपीए सबसे बड़ी चुनौती
सरकार के सामने बैंकों का एनपीए सबसे बड़ी चुनौती है। एनपीए कम होने के बजाए लगातार बढ़ रहा है। सार्वजनिक क्षेत्र के बैकों की हालात खराब है। बैंकों को चार मोर्चे पर चुनौती मिल रही है। टेलीकॉम सेक्टर और एनर्जी सेक्टर के एनपीए ने बैंकों को पहले ही बदहाल कर दिया था। अब नई चुनौती बैकों के सामने रियल एस्टेट सेक्टर और नॉन बैंकिंग फाइनेंसियल सेक्टर है। इन दो सेक्टरों को दिए गए कर्ज बैंकों को शायद ही आए। वैसे में बैकों की हालत कैसे सुधरेगी इसको लेकर बजट में फोकस होना चाहिए।
अतिथि का कार्यालय में गर्मजोशी से वरिष्ठ संपादकीय प्रभारी गोपाल ओझा ने स्वागत किया और कार्यालय आने के लिए आभार व्यक्त किया। चर्चा में राघवेंद्र शुक्ला, अशोक झा, विपिन राय, छायाकार राजेश प्रसाद व ब्रांड के अवधेश दीक्षित आदि मौजूद थे।