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    टुसू पर्व को लेकर मस्त पुरुलिया के लोग

    By JagranEdited By:
    Updated: Thu, 13 Jan 2022 11:29 PM (IST)

    संवाद सहयोगी सांकतोड़िया पौष संक्रांति का अर्थ है पुरुलिया की महान लोक संस्कृति में से एक

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    टुसू पर्व को लेकर मस्त पुरुलिया के लोग

    संवाद सहयोगी, सांकतोड़िया : पौष संक्रांति का अर्थ है पुरुलिया की महान लोक संस्कृति में से एक टुसू पर्व। टुसू दुर्गा पूजा के बाद पुरुलिया का बड़ा त्योहार है। नए कपड़े खरीदने से शुरू कर खाना पीना। एक शब्द में कहें तो पूरे जिले में उत्सव का माहौल है। लेकिन, यहां भी कोरोना ने रोक लगा दी है। इस बार कई जगहों पर मेला भी नहीं लग रहा है।

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    जानकारी के अनुसार कोरोना की स्थिति में टुसू पर्व बहुत फीका पड़ गया है। रांगा माटी पुरुलिया में दो वर्षों से टुसू पर्व में वह उत्साह नहीं दिख रहा है। टुसू गीत या टुसू चौडल को लेकर उत्साह दिनों दिन कम होता जा रहा है।

    उल्लेखनीय है कि टुसू के लिए बनाए गए घर को चौडल कहा जाता है। चौडल रंगीन कागज और बांस की डंडियों के टुकड़ों से बना होता है। छोटे, बड़े, मध्यम से बड़े आकर के चौडल बनाए जाते हैं। चौडल सुंदर रूप से सजाए गए मंदिर जैसा दिखता है।

    बताते चलें कि पुरुलिया में टुसू में रिवाज है कि लड़कियां विभिन्न रंग की चौडल खरीद कर लाती हैं। मकर संक्रांति से एक रात पहले फसल का पहला धान चौडल पर रखने और पूजा के माध्यम से रात भर टुसू गीत गाने की प्रथा है। गीत के माध्यम से दैनिक जीवन के सुख-दु:ख को व्यक्त किया जाता है। दूसरे दिन गांव के नदी घाट जाकर उस चौडल का विसर्जन किया जाता है टुसू को। साथ में घर से लाई गई पीठा खाने की खुशी होती है।

    एक चौदल की कीमत 50 से 1000 रुपये तक होती है। हालांकि, इस साल चौडल की कीमत मेल नहीं खा रही है। क्योंकि इसकी ज्यादा डिमांड नहीं है। इस बीच, पुरुलिया के सीमांत गांव के चौडल कलाकार मुश्किल में हैं। क्योंकि पूरी तरह से बनाया गया चौडल बिक्री नहीं हो रहा है।

    इस दिन पुरुलिया में मानभूम खेल संघ के सामने चौडल की दुकान सजाए बैठे कलाकारों ने कहा कि पिछले कुछ वर्षों की तुलना में बिक्री काफी कम है। हालांकि चौडल खरीदने आने वाले खरीददारों का कहना है कि कोरोना की वजह से मेला न भी लगे तो भी हर साल की तरह टुसू पहनकर वे लोग मस्ती करेंगे।

    कोरोना से जान को खतरा होने पर भी लोगों में पागलपन भी कम नहीं है। इसलिए लोग टुसू त्योहार के मौके पर खरीदारी में व्यस्त हैं। पूरे शहर में अफरातफरी का माहौल है। राढ़ बंग के लोग अपनी बेटी टुसू की देखभाल की व्यवस्था करने में किसी भी तरह की कमी से कतराते हैं।