Uttarkashi Tunnel Rescue: हौसला मजदूर का, टूटना न मंजूर था... पलभर में भुला बैठे 17 दिनों की पीड़ा, रैट माइनर्स फरिश्ते जैसे लगे
उत्तरकाशी के सिलक्यारा सुरंग की जंग को अंजाम तक पहुंचाने वाले रैट माइनर्स की भूमिका का अंदाजा भीतर फंसे श्रमिकों को नहीं था लेकिन उनकी पहली झलक ही उन्हें यह बताने के लिए काफी थी कि ये किसी फरिश्ते से कम नहीं हैं। उन्होंने श्रमिकों ने उन्हें अपने सीने से लगा लिया। श्रमिक अपनी 17 दिनों की पीड़ा को पलभर में भुला बैठे।

सुमन सेमवाल, उत्तरकाशी। हौसला मजदूर का था, टूटना मंजूर न था। मशीनें टूटती रहीं, पर रुकना मंजूर न था। कुछ इसी तरह सुरंग में पसरे भारी मलबे और लोहे के अवरोधों को चीरकर जब रैट माइनर्स श्रमिकों तक पहुंचे तो उनकी आस को जैसे सांस मिल गई। 17 दिन से जिंदगी की जंग लड़ रहे श्रमिकों को एहसास होने लगा था कि उन्हें बाहर निकालने के लिए किस तरह एक के बाद एक चुनौती खड़ी हो रही हैं, लेकिन उम्मीद और नाउम्मीदी की जंग के बीच जब एस्केप टनल से रैट माइनर्स दाखिल हुए तो उन्हें देख श्रमिकों के पहले बोल में ही उनकी पूरी भावना बाहर निकल आई। श्रमिकों ने कहा कि 'आपको हम अपनी जान दे दें या भगवान बना दें'।
सुरंग में पहुंचे रैट माइनर्स फरिश्ते जैसे लगे
सिलक्यारा की जंग को अंजाम तक पहुंचाने वाले रैट माइनर्स की भूमिका का अंदाजा भी भीतर फंसे श्रमिकों को नहीं था, लेकिन उनकी पहली झलक ही उन्हें यह बताने के लिए काफी थी कि ये किसी फरिश्ते से कम नहीं हैं। सुरंग में एक-एक कर वकील हसन, नसीम, मो. इरशाद, मुन्ना कुरेशी, मोनू और फिरोज दाखिल हुए थे और श्रमिकों ने उन्हें अपने सीने से लगा लिया। श्रमिक अपनी 17 दिनों की पीड़ा को पलभर में भुला बैठे।
श्रमिकों ने तारणहार बने रैट माइनर्स को चाकलेट भेंट की और उनके साथ फोटो खिंचवाई। सुरंग में दाखिल 800 एमएम का एस्केप टनल का पाइप श्रमिकों को नए जीवन का द्वार नजर आ रहा था। खुशी से झूमते हुए श्रमिक इस पाइप के ऊपर भी बैठ गए और फोटो खिंचवाते हुए जश्न मनाने लगे।
लीडर ने रात 11 बजे किया टीम को तैयार
रैट माइनर्स की यह टीम नई दिल्ली की रौकवेल इंटरप्राइजेज कंपनी के लिए काम करती है। टीम को सिलक्यारा पहुंचाने में कंपनी के टीम लीडर वकील हसन ने अथक मेहनत की। टीम के अन्य सदस्य नासिर और मोनू ने कहा कि उन्हें 25 नवंबर की रात 11 बजे वकील हसन का फोन आया था। तब सिर्फ यही बताया गया कि कुछ बड़ा काम करना है और कार भेज रहा हूं। बाकी सदस्यों से भी यही कहा गया। वकील हसन समेत सभी 12 सदस्य रात को ही दिल्ली से रवाना हुए और 26 नवंबर को दोपहर बाद सिलक्यारा पहुंच गए।
पैसे के लिए नहीं, देश सेवा के लिए आए : हसन
वकील हसन के अनुसार, तमाम लोग सवाल कर रहे हैं कि इतने बड़े अभियान को अंजाम तक पहुंचाने के लिए पूरी टीम को अच्छा-खासा पैसा मिलेगा। लेकिन, पैसा नहीं भी मिलेगा, तब भी कोई मलाल नहीं। खुशी इस बात की है कि वे श्रमिकों को बचाने के इतने बड़े अभियान का हिस्सा रहे हैं।
रैट माइनर्स के परिवार की हालत दयनीय
उत्तरकाशी के सुरंग हादसे से चर्चा में आए छह रैट माइनर्स राजधानी के उत्तर पूर्वी दिल्ली के श्रीराम कालोनी में रहते हैं और सीवर व पानी की पाइपलाइन डालने का काम करते रहे हैं। इनके परिवार की हालत बहुत दयनीय है। सुरंग से श्रमिकों को निकालने के बाद श्रीराम कालोनी में खुशी की लहर है। वकील हसन की पत्नी शबाना ने बताया कि उनके ससुर फौजी थे और जेठ भी भारतीय सेना में हैं। जिस कारण उनके पति के अंदर भी बचपन से ही देशभक्ति का जज्बा है।
परिवार किराए के घर में रहता है
उन्होंने बताया कि उनके पति के पास गत शुक्रवार दोपहर में इस काम को करने के लिए फोन आया तो उन्होंने बिना कुछ सोचे जाने के लिए हां कर दी थी। उन्होंने घर पर ही डेढ़ घंटे में एक ट्राली भी तैयार की। जिस पर रस्सी बांधकर उन्होंने सभी श्रमिकों को बाहर निकाला है। मोहम्मद इरशाद के परिवार में पत्नी शबाना, एक बुजुर्ग बहन और तीन बच्चे हैं। उनका परिवार किराए के घर में रहता है।
नसीम के पिता वलैद्दीन सब्जी बेचते हैं। वलैद्दीन ने बताया कि गुरुवार को उनकी बेटी की शादी थी। अगले दिन सुबह उसे विदा करते ही नसीम उत्तरकाशी के लिए निकल गए थे। परिवार में पिता, मां, भाई व चार बहनों के साथ पत्नी समीना और तीन बच्चे भी हैं।
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