ट्राउट मछली के जेहन से नहीं उतर रहा है आपदा का खौफ
उत्तरकाशी जिले में 2012 व 2013 की आपदा से इंसान तो उबर गए, लेकिन ट्राउट मछली अभी तक नहीं उबर पाई। इन मछलियों के जेहन में अभी तक आपदा का खौफ है। उनके व्यवहार से ऐसा दावा किया गया।
उत्तरकाशी, [शैलेंद्र गोदियाल]: सीमांत उत्तरकाशी जिले में 2012 व 2013 की आपदा ने इंसान ही नहीं, जलीय जीव-जंतुओं को गहरे तक प्रभावित किया। हालांकि, इंसान तो धीरे-धीरे आपदा के सदमे से उबर गए, लेकिन असी गंगा में रहने वाली ट्राउट मछली पर अब भी आपदा का खौफ तारी है।
मत्स्य विभाग के सहायक निदेशक प्रमोद कुमार शुक्ल बताते हैं कि असी गंगा में ट्राउट मछली को फिर से लाने के प्रयास किए गए, लेकिन इसमें सफलता नहीं मिली। आपदा के बाद से ट्राउट मछली असी गंगा में रहने को तैयार नहीं है। यहां तक डोडीताल से प्रजनन के लिए भी असी गंगा में नहीं आ रही।
असी गंगा के उद्गम स्थल डोडीताल में नार्वे के नेल्सन ने 120 साल पहले ट्राउट मछली के अंडे डाले थे। डोडीताल से यह मछली गंगोरी तक पहुंची। 2012 से पहले तो असी गंगा में ट्राउट की इतनी अधिक संख्या थी कि इस नदी को लोग ट्राउट नदी भी कहते थे।
तब असी गंगा में 50 से अधिक स्थानीय लोग ट्राउट मछली पकड़कर अपनी आजीविका चलाते थे। साथ ही पर्यटक भी यहां एंगलिंग करते थे, लेकिन अगस्त 2012 और फिर जून 2013 में आई बाढ़ में असी गंगा की सब मछलियां बह गईं। ट्राउट को वापस लाने के लिए मत्स्य विभाग की ओर से चार बार असी गंगा में ट्राउट मछली के बीज डाले जा चुके हैं।
2014 में तो तत्कालीन मत्स्य मंत्री प्रीतम सिंह पंवार भी असी गंगा पहुंचे थे और उसमें ट्राउट मछली के बीज डाले थे। बावजूद इसके नदी में ट्राउट नहीं पनप पा रही। स्वास्थ्य के लिए उपयोगी है ट्राउट ग्लेशियरों के स्वच्छ एवं मीठे पानी के कारण ट्राउट का स्वाद बाकी मछलियों से अलग होता है।
ट्राउट में सिर्फ एक कांटा होता है, जिसे निकालने के बाद इसे चिकन व मटन की तरह पकाया जा सकता है। बताया जाता है कि ट्राउट मछली मोटापा, हाई ब्लड प्रेशर और कोलस्ट्रॉल को नियंत्रित करने में भी मददगार होती है। असी गंगा में ट्राउट वापस लाने के लिए शासन स्तर पर अमेरिका से एक जलीय जीव विशेषज्ञ भी बुलाया गया था। उसने असी गंगा का सर्वे किया, लेकिन ट्राउट कहीं नजर नहीं आई।
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