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बारह वर्ष बाद पहाड़ में नीलकुरेंजी के फूलों ने बिखेरी रंगत, ये फूल है औषधीय गुणों से भरपूर

उत्तरकाशी और टिहरी जिले के जंगल इन दिनों नीलकुरेंजी के फूलों से गुलजार हैं। ठीक 12 साल बाद गढ़वाल क्षेत्र के जंगलों में नीलकुरेंजी के फूलों ने अपनी रंगत बिखेरी है।

By Sunil NegiEdited By: Published: Fri, 18 Oct 2019 07:36 AM (IST)Updated: Fri, 18 Oct 2019 08:22 PM (IST)
बारह वर्ष बाद पहाड़ में नीलकुरेंजी के फूलों ने बिखेरी रंगत,  ये फूल है औषधीय गुणों से भरपूर
बारह वर्ष बाद पहाड़ में नीलकुरेंजी के फूलों ने बिखेरी रंगत, ये फूल है औषधीय गुणों से भरपूर

उत्‍तरकाशी, शैलेंद्र गोदियाल। सीमांत उत्तरकाशी और टिहरी जिले के जंगल इन दिनों नीलकुरेंजी के फूलों से गुलजार हैं। ठीक 12 साल बाद गढ़वाल क्षेत्र के जंगलों में नीलकुरेंजी  के फूलों ने अपनी रंगत बिखेरी है। कुछ कमी है तो कुदरत के इस खूबसूरत नजारे का दीदार करने वालों की। सरकारी तंत्र की उपेक्षा के कारण नीलकुरेंजी केरल की तरह उत्तराखंड में प्रसिद्धि नहीं पा सका है। जबकि, पहाड़ में इस फूल को बेहद शुभ माना जाता है। जिस वर्ष यह फूल खिलता है उस वर्ष को नीलकुरेंजी वर्ष भी कहते हैं। औषधीय गुणों से भरपूर नीलकुरेंजी को उत्तरकाशी में अडगल कहा जाता है।

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नीलकुरेंजी के नीले-बैंगनी रंग के फूलों ने इन दिनों धरती का शृंगार किया हुआ है। उत्तरकाशी वन प्रभाग, अपर यमुना वन प्रभाग व टौंस वन प्रभाग के अलावा टिहरी वन प्रभाग के जंगलों में सड़कों के किनारे से लेकर दूर जंगलों तक नीलकुरेंजी अपनी आभा बिखेर रहा है। राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय उत्तरकाशी के वनस्पति विज्ञान विभाग के प्रोफेसर महेंद्र पाल परमार बताते हैं कि नीलकुरेंजी स्ट्रॉबिलेंथस की एक किस्म है। भारत में इसकी काफी प्रजातियां मौजूद हैं।

यह फूल बारह साल के अंतराल में खिलता है, इसलिए इसे इसे दुर्लभ फूलों में शुमार किया गया है। प्रो. परमार के अनुसार उत्तराखंड के पहाड़ों में समुद्रतल से 1100 से 1500 मीटर तक की ऊंचाई पर पाए जाने वाले  नीलकुरेंजी के खिलने का समय अगस्त से नवंबर की बीच है। इसके फूल से लेकर पत्तों तक में कई औषधीय गुण हैं। मई-जून में जब जंगलों चारा-पत्ती खत्म हो जाती है, तब यह पशुओं के लिए चारे का काम भी करता है।

गंगा विचार मंच के प्रदेश संयोजक लोकेंद्र सिंह बिष्ट बताते हैं कि वह अपने जीवन में तीन बार नीलकुरेंजी खिलने के गवाह बने हैं। पहली बार तब, जब पिता ने वर्ष 1995 में उन्हें इस फूल के बारे में जानकारी दी थी कि यह 12 सालों में एक बार खिलता है। फिर यह फूल वर्ष 2007 में खिला और अब इस साल खिला है।

वे कहते हैं कि इस फूल के खिलने का सरकार ने न तो कोई प्रचार-प्रसार किया और न सरकार के पास इसके संरक्षण की ही कोई योजना है। लोकेंद्र बताते हैं कि केरल में यह फूल वर्ष 2018 में खिला था। तब वहां की सरकार ने इसका खूब प्रचार-प्रसार किया। नतीजा, करीब आठ लाख पर्यटक इसके दीदार को केरल पहुंचे।

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पीएम ने भी किया था नीलकुरेंजी का जिक्र

वर्ष 2018 में स्वतंत्रता दिवस के मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी नीलकुरेंजी के फूल का जिक्र किया था। उन्होंने कहा था कि महाकुंभ मेला 12 साल में लगने की बात तो हम सब जानते हैं, लेकिन यह नहीं जानते कि नीलकुरेंजी का फूल भी 12 साल में एक बार ही खिलता है।

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वर्ष 2018 में केरल की पहाडिय़ों पर नीलकुरेंजी के फूल खिले थे। केरल में जिन पहाडिय़ों पर नीलकुरेंजी के फूल खिलते हैं, उन्हें नीलगिरी की पहाड़ियों के नाम से जाना जाता है। इन फूलों का संरक्षण वर्ष 2006 में बनाई गई कु‍रेंजिमाला फ्लावर सेंचुरी के तहत होता है।

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