झरनों के सुमधुर संगीत से गूंज रही है गंगा घाटी, पर्यटकों के लिए बना आकर्षण का केंद्र
उत्तरकाशी को प्राकृतिक धरोहरों का जिला यूं ही नहीं कहा जाता। गंगा घाटी में सघन देवदार जंगलों के बीच से बहती भागीरथी नदी में मिलती झरनों की धाराएं अद्भ ...और पढ़ें

उत्तरकाशी, [शैलेंद्र गोदियाल]: उत्तरकाशी से लेकर गंगोत्री तक गर्म और ठंडे पानी के छोटे-बड़े झरने इन दिनों पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र बने हुए हैं। एक ओर गंगा घाटी के बीचोंबीच बह रही भागीरथी की शांत अविरल धारा आनंदित कर रही है तो दूसरी ओर पूरी घाटी में झरनों, प्रपातों की छटा देखते ही बनती है।
गगन चूमते हिम शिखर, गंगा-यमुना का उद्गम और ताल एवं बुग्याल की सुरम्य वादियों से गुलजार उत्तरकाशी को प्राकृतिक धरोहरों का जिला यूं ही नहीं कहा जाता।

गंगा घाटी में सघन देवदार जंगलों के बीच से बहती भागीरथी नदी में मिलती झरनों की धाराएं अद्भुत सम्मोहन बिखेरती हैं। प्रकृति प्रेमी एवं ट्रैकर प्रदीप सुमन रावत कहते हैं कि उत्तरकाशी से लेकर गंगोत्री तक छोटे-बड़े 35 से अधिक झरने हैं। गंगनानी और डबराणी के बीच दो झरने गंधक युक्त गर्म पानी के हैं। इनका सौंदर्य पान करने के लिए पर्यटक इनके निकट अवश्य ठहरते हैं।

उपजिलाधिकारी भटवाड़ी (उत्तरकाशी) देवेंद्र सिंह नेगी कहते हैं कि उत्तरकाशी से लेकर गंगोत्री तक अपनी नैसर्गिक छटा बिखरे रहे झरनों के निकट व्यू प्वाइंट बनाने के लिए पर्यटन विभाग के साथ मिलकर योजना तैयार की जा रही है। इसमें झरनों के बारे में भी जानकारी दी जाएगी ताकि पर्यटकों को यह समझने में आसानी रहे कि इन झरनों का उद्गम स्थल कहां है। साथ ही वे झरनों के धार्मिक-सांस्कृतिक महत्व से भी परिचित हो सकेंगे।
अद्भुत है मंदाकिनी झरने का सौंदर्य
गंगा घाटी में हर्षिल और धराली के बीच स्थित यह झरना अपनी खूबसूरती के लिए जाना जाता है। इस झरने की खूबसूरती को फिल्म राम तेरी गंगा मैली में भी दिखाया जा चुका है। इसी झरने के नीचे मंदाकिनी पर नहाने का दृश्य फिल्माया गया था। तब से इस झरने का नाम मंदाकिनी झरना पड़ गया।

हिमालय दर्शन के साथ विदेशियों को दे रहे गोसेवा का संदेश
पंडित रामदयाल नौटियाल पिछले 12 वर्षों से पूरे मनोयोग से गोसेवा की मुहिम में जुटे हैं। खास बात यह कि नौटियाल की इस मुहिम को सार्थक बनाने में विदेशी पर्यटक भी उनकी हरसंभव मदद कर रहे हैं। जिला मुख्यालय उत्तरकाशी से करीब 15 किमी दूर विकासखंड मुख्यालय डुंडा पड़ता है। यहां से करीब 50 किमी दूर भंडास्यूं पट्टी के ग्राम जोग्याणा में गाइड पंडित रामदयाल नौटियाल की एक गोशाला है। जहां वर्तमान में 35 निराश्रित मवेशी रह रहे हैं। नौटियाल स्वयं पूजा पाठ, च्योतिष और पर्यटक गाइड बनकर अपनी आजीविका चलाते हैं। उनके संपर्क में आने वाला हर विदेशी पर्यटक गोसेवा के गुर भी अवश्य सीखता है। गोसेवा से अभिभूत विदेशी पर्यटकों के संपर्क में वह सोशल मीडिया पर भी हैं।

स्थानीय लहजे में हिंदी सीख रहे विदेशी
विदेशी पर्यटक यहां आकर हिंदी भी सीख रहे हैं। उनसे बातचीत करने में स्थानीय ग्रामीणों को परेशानी न हो, इसके लिए असी गंगा घाटी में स्थानीय लहजे की हिंदी सीख दिनचर्या में शामिल कर रहे हैं। लगातार आने वाले कई विदेशी तो पूरी तरह पहाड़ के रंग में रंग गए हैं। उत्तरकाशी के अगोड़ा गांव में तो वर्षभर विदेशी पर्यटकों की चहलकदमी बनी रहती है। यहां ग्रामीण विदेशी पर्यटकों को होम स्टे के माध्यम से रात्रि विश्राम कराते हैं। इसी से उनकी आजीविका भी चलती है। अगोड़ा निवासी सुमन सिंह पंवार व संजय सिंह पंवार बताते हैं कि अब आलम यह है कि एक-दूसरे का पूरक होने के बावजूद जहां ग्रामीण फर्राटेदार अंग्रेजी का प्रयोग करते हैं, वहीं विदेशी मिठासभरी हिंदी और गढ़वाली का। अगोड़ा से डोडीताल के लिए ट्रैकिंग रूट जाता है इसलिए बड़ी संख्या में विदेशी पर्यटक यहां होम स्टे करते हैं। संजय बताते हैं, ये लोग हमारे साथ रोजमर्रा के काम भी करते हैं और खाने में ठेठ पहाड़ी व्यजंन ही लेते हैं।

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