मोटर मैकेनिक का अनूठा पर्यावरण प्रबंधन, बंजर जमीन पर उगाए छह जंगल
पर्यावरण के प्रति पिता की प्रेरणा से एक मोटर मैकेनिक पर्यावरण प्रबंधक बन गया। हथौड़े के साथ कुदाल चलाई तो 83 हेक्टेयर से अधिक बंजर भूमि पर छह मिश्रित जंगल खड़े हो गए।
उत्तरकाशी, शैलेंद्र गोदियाल। पर्यावरण के प्रति पिता की प्रेरणा से एक मोटर मैकेनिक पर्यावरण प्रबंधक बन गया। हथौड़े के साथ कुदाल चलाई तो 83 हेक्टेयर से अधिक बंजर भूमि पर छह मिश्रित जंगल खड़े हो गए।
इन छह वनों में से चार वन उत्तरकाशी के डुंडा ब्लॉक के भैंत गांव में, एक वन गंगोत्री में और एक वन जिला मुख्यालय उत्तरकाशी के पास वरुणावत की तलहटी में 'श्याम स्मृति वन' के नाम से गुलजार है। इस वन में 200 प्रजातियों के एक लाख से अधिक पेड़-पौधे हैं।
जिला मुख्यालय उत्तरकाशी से 55 किमी दूर वर्ष 1958 में भैंत गांव निवासी श्याम पोखरियाल के घर प्रताप पोखरियाल का जन्म हुआ। इस मौके पर श्याम पोखरियाल ने 11 पौधों का रोपण किया। प्रताप को पर्यावरण प्रेम की शिक्षा बचपन में पिता के साथ गांव के जंगलों की चौकीदारी करने के दौरान मिली। चौकीदारी के साथ-साथ वे गांव व जंगल में पौधारोपण भी करते थे।
आठवीं की पढ़ाई के बाद 18 वर्ष की उम्र में प्रताप घर से ऋषिकेश चले गए। यहां उन्होंने चार वर्षो तक मोटर मैकेनिक का कार्य सीखा और टाटा मोटर्स में भी मैकेनिक का कार्य किया। वर्ष 1980 में पिता के निधन के बाद जब वह वापस लौटे तो उत्तरकाशी को अपना नया ठिकाना बनाया। उन्होंने मोटर मैकेनिक के साथ बसों का भी संचालन किया, लेकिन, बचपन में पिता के साथ मिली जंगल संरक्षण की सीख मन को उद्वेलित करती रही।
इस पर उन्होंने पहले भैंत गांव में वन पंचायत की भूमि पर दो वन तैयार किए। फिर एक वन भैंत के अपने बंजर खेतों में और एक वन विभाग की भूमि पर तैयार किया।
उत्तरकाशी में 51 पौधों से की शुरुआत
वर्ष 1990 में उन्होंने नगर पालिका उत्तरकाशी के तत्कालीन अध्यक्ष कमलाराम नौटियाल से वरुणावत की तलहटी में एक छोर पर पौधे लगाने की अनुमति ली। यहां 51 पौधे रोपकर पौधरोपण की शुरुआत की गई। वर्ष 2003 में वरुणावत के दरकने से संपूर्ण तलहटी पर खौफनाक मंजर बन गया। इसके बाद प्रताप ने वरुणावत की तलहटी को हरा-भरा करने की ठानी और वर्ष 2004 में मकर संक्रांति के दिन से पौधा रोपण करना शुरू किया। इस वन को तैयार करने में प्रताप दिन-रात जुटे रहे। आज यह जंगल करीब 15 हेक्टेअर में फैलकर अपनी हरियाली बिखेर रहा है।
वरुणावत की शान बना 'श्याम स्मृति वन'
प्रताप पोखरियाल कहते हैं कि मिश्रित वन ही हिमालय को बचाने में सार्थक हैं। वरुणावत की तलहटी में उनके पिता के नाम से तैयार 'श्याम स्मृति वन' में बांज के 1000 से अधिक पौधे अब पेड़ बन चुके हैं। इसके अलावा वहां हिंसर, किनगोड़, बिच्छू घास, जड़ी-बूटी, चारा पत्ती और फलदार पेड़ भी हैं। उन्होंने गंगोत्री धाम में भी वन तैयार किया है। जबकि, भैंत गांव में भी एक शहीद वन समेत चार वन लहलहा रहे हैं।
श्याम समृति मिश्रित वन में लगाए गए पौधे
औषधीय: हरड़, बहेड़ा, आंवला, रीठा, कपूर, अश्वगंधा, सर्पगंधा, इस्टीबिया, गिलोय, ऐलोबेरा, पाषणवेद, सतावर, नीलकंठ, तेजपत्ता, टिमरू, किनगोड़, इलायची, आजवाइन, सात प्रकार की तुलसी आदि।
चारापत्ती: बांज, भीमल, गुरियाल, कचनार, ¨रगाल, बांस, डैंकन, नेपियर, सांदण, साल आदि।
फलदार: आंवला, आम, अमरूद, सेब, आड़ू, पुलम, खुबानी, नाशपाती, संतरा, माल्टा, नींबू, जामुन, काफल, शहतूत आदि। सजावटी: मोरपंखी, सुरई, बोतल पाम, मछली पाम, एरिका पाम, धमादौड़ी, रबड़ प्लांट आदि। फूलदार: रात की रानी, चंपा, सेमल, बुरांश आदि।
शोधार्थियों के लिए सुविधा
महाविद्यालय व इंटर कॉलेजों के शोधार्थियों समेत बाल विज्ञानी समय-समय पर वरुणावत की तलहटी में लहलहा रहे मिश्रित वन में शोध करने पहुंच रहे हैं। यहां उन्हें शोध के लिए हर प्रजाति की पौध मिल जाती है। पर्वतारोही भी इस वन में विभिन्न जानकारियां जुटाने पहुंचते हैं।
ये हस्तियां कर चुकीं श्याम स्मृति वन का दीदार
योग गुरु बाबा रामदेव, आचार्य बालकृष्ण, स्वामी चिदानंद मुनि, रमेश भाई ओझा, प्रसिद्ध पर्यावरणविद् चंडीप्रसाद भट्ट, पर्यावरणविद् डॉ. अनिल प्रकाश जोशी आदि। प्रताप पोखरियाल को मिले सम्मान
'ग्रीन इनोवेटर' अवार्ड। 2004 में एक हफ्ते में गंगा तट से दो क्विंटल पॉलीथिन एकत्र करने पर सरकार की ओर से सम्मान, तीन बार वन पंचायत सम्मान, 'वनविद्' सम्मान, नेहरू केंद्र की ओर से सम्मान, संतों की ओर से ऋषिकेश में 'वृक्ष मुनि' सम्मान आदि।
कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।