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इस गांव ने पेश की मिसाल, बंजर भूमि पर उगा दिया जंगल

उत्तरकाशी के डख्यियाट गांव में लोगों ने मिसाल पेश की है। ग्रामीणों ने बंजर धरती पर जंगल उगा दिया।

By Raksha PanthariEdited By: Published: Sun, 03 Feb 2019 09:52 AM (IST)Updated: Sun, 03 Feb 2019 09:52 AM (IST)
इस गांव ने पेश की मिसाल, बंजर भूमि पर उगा दिया जंगल
इस गांव ने पेश की मिसाल, बंजर भूमि पर उगा दिया जंगल

उत्तरकाशी, शैलेंद्र गोदियाल। उत्तरकाशी के डख्यियाट गांव में लोगों के लिए विलासिता की वस्तुएं शान-ओ-शौकत का प्रतीक नहीं मानी जाती हैं। इनके लिए तो इनका जंगल ही इनकी शान है। 55.54 हेक्टेयर क्षेत्र में फैला यह जंगल वन विभाग का नहीं, बल्कि ग्रामीणों की मेहनत का नतीजा है। इसे गांव के आस-पास पड़ी राजस्व भूमि पर उन्होंने खड़ा किया है। अब यह उनकी विरासत का हिस्सा बन चुका है। 

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डख्यियाट गांव उत्तरकाशी जिले की बड़कोट तहसील में पड़ता है। जिला मुख्यालय से सौ किमी दूर स्थित यह गांव सड़क से जुड़ा हुआ है। पूर्व सैनिक और पूर्व प्रधान जयवीर सिंह जयाड़ा बताते हैं कि गांव के निकट बंजर भूमि पर पौधे रोपने की शुरुआत पूर्वजों ने की थी, जिसे पीढिय़ों ने जारी रखा। जंगल लगातार बढ़ता चला गया। जयवीर बताते हैं कि वर्ष 1980 से वन पंचायत के जरिये जंगल का संरक्षण किया जा रहा है। अब भी गांव के पास राजस्व विभाग की दस हेक्टेयर बंजर भूमि है। इस पर भी जंगल तैयार करने के लिए जिला प्रशासन को प्रस्ताव भेजा गया है। 

डख्यियाट गांव के ऊपर बांज के जंगल के कारण गांव में सात स्थानों पर प्राकृतिक जल स्रोत समृद्ध बने हुए हैं। इनमें वर्षभर पानी रहता है। डख्यियाट गांव के प्रधान धनवीर जयाड़ा बताते हैं कि गांव में लगभग 200 परिवार हैं, जिन्हें इन प्राकृतिक स्रोतों से पर्याप्त पानी मिल जाता है।

 

प्रदूषण से जंग को हथियार बना जंगल 

सोनभद्र, सजीत शुक्ल। बात 1994-95 की है, सोनभद्र, उप्र के पिपरहवा गांव में लोगों को एक ऐसी बीमारी पकड़ रही थी, जिससे बच्चे भी बुजुर्ग सरीखे नजर आने लगे थे। जवान लोगों की हड्डियां कमजोर होने से वे भी लाठी के सहारे चलने लगे थे। इसी बीच किसी ने बताया कि यह तो फ्लोरोसिस के लक्षण हैं। जब विभिन्न एजेंसियों के माध्यम से जांच करायी गई तो पता चला कि हवा, पानी, मिट्टी सबकुछ प्रदूषित हो रहा है। इसी वजह से इस तरह की लाइलाज बीमारी होती जा रही है। 

गांव के अवधेश राय बताते हैं, काफी दिनों तक तो किसी को कुछ नहीं सूझा। धीरे-धीरे दस साल निकल गए। इसी बीच गांव के 25 लोगों ने बैठक कर इस प्रदूषण से दो-दो हाथ करने की योजना बनाई। आज करीब 70 बीघे का जंगल संवार लिया गया है। मिलकर इसकी देखरेख करते हैं। इस जंगल के बूते स्वच्छ वायु मिल रही है और मिïट्टी-पानी की सेहत भी सुधर रही है।

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