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International Womens Day 2020: हिम शिखरों पर चंद्रप्रभा की आभा, दुनिया की 32 चोटी को किया फतह

प्रसिद्ध पर्वतारोही चंद्रप्रभा ऐतवाल ने तिब्बत और नेपाल की सीमा से लगे पिथौरागढ़ जिले के छांगरू गांव की विकटता से निकलकर दुनिया की 32 चोटी को फतह किया।

By Sunil NegiEdited By: Published: Sun, 08 Mar 2020 09:16 AM (IST)Updated: Sun, 08 Mar 2020 08:32 PM (IST)
International Womens Day 2020: हिम शिखरों पर चंद्रप्रभा की आभा, दुनिया की 32 चोटी को किया फतह
International Womens Day 2020: हिम शिखरों पर चंद्रप्रभा की आभा, दुनिया की 32 चोटी को किया फतह

उत्‍तरकाशी, शैलेंद्र गोदियाल। अर्जुन पुरस्कार विजेता देश की प्रसिद्ध पर्वतारोही चंद्रप्रभा ऐतवाल का जीवन हिमालय जैसा ही विराट है। तिब्बत और नेपाल की सीमा से लगे पिथौरागढ़ जिले के छांगरू गांव की विकटता से निकलकर चंद्रप्रभा ने दुनिया की 32 चोटी को फतह किया। हजारों लोगों को पर्वतारोण के लिए प्रेरित किया। नेहरू इंस्टीट्यूट ऑफ माउंटेनियरिंग उत्तरकाशी (निम) आज भी चद्रप्रभा की राय और अनुभवों का अनुसरण करता है। हाल ही में उत्तरकाशी में हुई माउंटेनियरिंग समिट में चंद्रप्रभा को विशेष तौर पर आमंत्रित किया गया था। जिसमें उन्होंने पर्वतारोहियों को कई गुर भी सिखाए।

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छांगरू गांव में दर्जी सिंह ऐतवाल और पदीदेवी ऐतवाल के घर चंद्रप्रभा का जन्म 24 दिसंबर 1941 में हुआ। पहाड़ की विकटता में पली-बढ़ी चंद्रप्रभा के लिए जीवन में हर दिन पर्वतारोहण का रहा। जब चंद्रप्रभा नौ वर्ष की थीं तो बड़ी दीदी की जिद पर पहली बार स्कूल देखा। उस दौर में लोग बेटियों की शिक्षा के प्रति जागरूक नहीं थे और स्कूल भी गांव से दूर होते थे। बावजूद इसके पढ़ने और खेलने में अव्वल रही चंद्रप्रभा वर्ष 1966 में राजकीय बालिका इंटर कॉलेज पिथौरागढ़ में व्यायाम शिक्षक के पद पर तैनात हुई।

वर्ष 1972 में चंद्रप्रभा ने निम से पर्वतारोहण का बेसिक और वर्ष 1975 में एडवांस कोर्स किया। इसी बीच चंद्रप्रभा का स्थानांतरण राजकीय बालिका इंटर कॉलेज उत्तरकाशी में हो गया। इसके बाद चंद्रप्रभा ने उत्तरकाशी को ही अपनी कर्मस्थली बना लिया और पर्वतारोहण, ट्रैकिंग व रिवर राफ्टिंग में आगे बढ़ती चली गईं। वर्ष 1982 में चंद्रप्रभा को एडवेंचर की विशेष कार्याधिकारी बनाया गया। इस पद पर रहते हुए उन्होंने वर्ष 1982 से लेकर 1999 तक हजारों बालक बालिकाओं को न सिर्फ पर्वतारोण के लिए प्रेरित किया, बल्कि गढ़वाल और कुमाऊं में सैकड़ों प्रशिक्षण कैंप भी लगाए। चंद्रप्रभा ने अगस्त 2009 में 69 वर्ष की उम्र में इंडियन माउंटेन फाउंडेशन के साथ टीम लीडर के रूप में श्रीकंठ चोटी का सफल आरोहण किया। जीवन के तमाम संघर्षों को चंद्रप्रभा ने अपनी पुस्तक ‘पहाड़ की पुकार’ में उद्धृत किया है।

चंद्रप्रभा को मिले सम्मान

चंद्रप्रभा ऐतवाल को अर्जुन पुरस्कार, पद्मश्री, नेशनल एडवेंचर अवार्ड, नैन सिंह किशन सिंह लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड, तेनजिंग नोर्गे एडवेंचर लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड सहित दर्जनों सम्मान।

मौसम ने रोकी माउंट एवरेस्ट की राह

वर्ष 1984 में पर्वतारोही चंद्रप्रभा ऐतवाल माउंट एवरेस्ट पर चढ़ाई के अभियान में शामिल हुई। 11 मई 1984 को चंद्रप्रभा 28750 फीट की ऊंचाई पर पहुंची, लेकिन उन्हें खराब मौसम के कारण वापस बुला लिया गया। इसकेबाद वर्ष 1991 और वर्ष 1993 में भी पर्वतारोही चंद्रप्रभा ऐतवाल एवरेस्ट आरोहण अभियान में शामिल हुईं, लेकिन मौसम ने साथ नहीं दिया।

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कर्नल अमित बिष्ट (प्रधानाचार्य, नेहरू पर्वतारोहण संस्थान, उत्तरकाशी) का कहना है कि वरिष्ठ पर्वतारोही चंद्रप्रभा दीदी पर्वतारोहण के लिए प्रेरणा का स्नोत हैं। पर्वतारोहण के क्षेत्र में निम जो भी कार्य करता है, दीदी से राय और उनके दिशा-निर्देश लिए जाते हैं। आज भी उनमें साहस और धैर्य की कमी नहीं है। चंद्रप्रभा दीदी के जज्बे को मेरा सलाम।

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