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मजबूत हौसलों के दम पर सावित्री ने भरी ऊंची उड़ान, बनीं जच्चा-बच्चा का सुरक्षा चक्र

सावित्री ने मजबूत हौसले के दम पर ऊंची उड़ान भरी है। आशा वर्कर बन सावित्री जच्चा-बच्चा के लिए सुरक्षा चक्र बनीं हैं।

By Raksha PanthariEdited By: Published: Sun, 06 Oct 2019 02:14 PM (IST)Updated: Sun, 06 Oct 2019 08:38 PM (IST)
मजबूत हौसलों के दम पर सावित्री ने भरी ऊंची उड़ान, बनीं जच्चा-बच्चा का सुरक्षा चक्र
मजबूत हौसलों के दम पर सावित्री ने भरी ऊंची उड़ान, बनीं जच्चा-बच्चा का सुरक्षा चक्र

उत्तरकाशी, जेएनएन। हवा के सामने जिसका चिराग जलता है, उसी के वास्ते सूरज नया निकलता है...यह पंक्तियां  उत्तरकाशी जिले के छमरोटा गांव की आशा कार्यकर्ता सावित्री सेमवाल पर सटीक बैठती हैं। महज दस साल की उम्र में सावित्री का विवाह हुआ। बचपन से ही मजबूत हौसले वाली सावित्री ने ससुराल में भी पढ़ाई नहीं छोड़ी। नतीजा यह रहा कि सावित्री छमरोटा गांव में दसवीं पास करने वाली पहली महिला बनी। कुछ समय बाद उनका चयन आशा वर्कर के लिए हुआ। यहां भी उन्होंने अपनी जागरूकता और संवेदनशीलता का लोहा मनवाया।

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अमेरिकन-इंडियन फाउंडेशन और आंचल चेरिटेबल ट्रस्ट के सहयोग से संचालित मेटर्नल एंड न्यू बोर्न सर्वाइवल इनिशिएटिव (मानसी) सावित्री के काम का जौहरी बना। फाउंडेशन ने मार्च 2019 में सावित्री को अमेरिका बुलाया। जहां चार प्रमुख शहरों में स्वास्थ्य की स्थिति को लेकर सावित्री ने सभाएं संबोधित की। 

महिला स्वास्थ्य और जच्चा-बच्चा स्वास्थ्य जागरूकता के प्रति संवेदनशील सावित्री के जीवन में वर्ष 1998 में घटित हुई एक घटना से बदलाव आया। सावित्री कहती है कि उस समय उनके सामने एक प्रसव पीड़िता की मौत हो गई। तब मैं, स्वयं भी गर्भवती थी। बस, मैंने ठान लिया कि अस्पताल में अपने स्वास्थ्य की जांच करवाऊंगी और क्षेत्र की अन्य गर्भवतियों को भी जागरूक करूंगी। 

दसवीं पास करने वाली गांव की पहली बेटी 

सावित्री का जन्म 1981 में देहरादून जिले के जनजातीय क्षेत्र जौनसार बावर के ग्राम थंता में जन्म हुआ। वर्ष 1991 में दस वर्ष की उम्र में उनका उत्तरकाशी जिले के नौगांव ब्लॉक स्थित छमरोटा गांव में रामप्रसाद सेमवाल के साथ विवाह हो गया। तब वह पांचवीं में पढ़ रही थीं।

पढ़ाई में सावित्री का हुनर देखकर उसके सुसरालियों ने उसकी पढ़ाई का पूरा ख्याल रखा। जिससे वह 10वीं पास कर सकी। संयोग से दसवीं पास करने वाली वह छमरोटा गांव की इकलौती बेटी थी। गांव में पढ़ी-लिखी और स्वास्थ्य के प्रति जागरूक होने के कारण वर्ष 2007 में सावित्री का चयन आशा कार्यकर्ता में रूप में हुआ। 

अमेरिका में सुनाई अपनी गाथा 

अमेरिकन-इंडियन फाउंडेशन की ओर से आयोजित  कार्यक्रम में बीते मार्च माह में सावित्री सेमवाल ने अमेरिका के चार शहरों बोस्टन, शिकागो, कैलिफोर्निया व न्यूयार्क में सभाओं को संबोधित किया। जिसमें सावित्री सेमवाल एक सेलिब्रिटी बनी। ठेठ गंवई अंदाज वाली सावित्री ने हिंदी में जब अपनी 10 साल से लेकर 38 साल तक के संघर्षों की गाथा सुनाई, जिसे अनुवादक की मदद से श्रोताओं ने सुना और उनके संघर्षों के विषय में जाना। 

जच्चा बच्चा की रक्षा जीवन का ध्येय 

उत्तरकाशी: सावित्री कहती है कि आज भी पहाड़ों में महिलाओं में स्वास्थ्य जागरुकता की कमी है। इसके चलते सुदूरवर्ती क्षेत्रों में प्रसव के दौरान जच्चा-बच्चा दम तोड़ देते हैं। इस तरह के विकट हालात के बीच से उभरकर वह आशा कार्यकर्ता के रूप में जच्चा-बच्चा के जीवन की रक्षा का काम कर रही हैं और यही उनके जीवन का एकमात्र ध्येय भी है। प्रसव से पहले स्वास्थ्य की जांच करना, अस्पताल में प्रसव करवाना, नवजात को कुपोषण से बचाना और परिवार नियोजन करवाना उनकी प्राथमिकता में शामिल है। 

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90 फीसद डिलीवरी अस्पताल में 

सावित्री बताती है कि क्षेत्र में वर्ष 2007 से लेकर अभी तक जन्मे 90 फीसद बच्चे पूरी तरह प्रतिरक्षित हैं। इसमें ऐसे मामले शामिल नहीं हैं, जिनमें अचानक दर्द होने के बाद डिलीवरी हो जाती है। उनके कार्यक्षेत्र में 90 फीसद डिलीवरी अस्पतालों में होती है। वह बताती है कि उन्होंने एचबीएनबीसी (होम बेस्ड न्यू बोर्न केयर) का प्रशिक्षण भी लिया है।  

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