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उम्र के आखिरी पड़ाव में भी लड़ रहे महिलाओं के हक की लड़ाई, पढ़िए पूरी खबर

रुद्रप्रयाग की जीवंती देवी 74 वर्ष की उम्र में भी वह गांव-गांव जाकर महिलाओं को नशा विरोधी अभियान व स्वच्छता के प्रति जागरूक करने में जुटी हैं।

By Sunil NegiEdited By: Published: Thu, 03 Oct 2019 02:35 PM (IST)Updated: Thu, 03 Oct 2019 08:39 PM (IST)
उम्र के आखिरी पड़ाव में भी लड़ रहे महिलाओं के हक की लड़ाई, पढ़िए पूरी खबर
उम्र के आखिरी पड़ाव में भी लड़ रहे महिलाओं के हक की लड़ाई, पढ़िए पूरी खबर

रुद्रप्रयाग, बृजेश भट्ट। जीवंती देवी भले ही जीवन के आखिरी पड़ाव पर खड़ी हों, लेकिन उनमें मध्यमेश्वर घाटी के दूरस्थ ग्रामीण क्षेत्रों की महिलाओं को जागरूक करने का जज्बा आज भी जवानी के दिनों वाला है। 74 वर्ष की उम्र में भी वह गांव-गांव जाकर महिलाओं को नशा विरोधी अभियान व स्वच्छता के प्रति जागरूक करने में जुटी हैं। इसी का नतीजा है कि आज इस क्षेत्र की कई महिलाएं स्वरोजगार के जरिये अपनी आर्थिकी संवार रही हैं। यही नहीं,  नशा विरोधी अभियान का भी इस पूरे क्षेत्र पर असर साफ देखा जा सकता है। जीवंती देवी के कार्यो के लिए उन्हें समय-समय पर विभिन्न मंचों की ओर से सम्मानित भी किया जाता रहा है।

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रुद्रप्रयाग जिले की ऊखीमठ तहसील के सीमांत गांव रांसी की 74-वर्षीय जीवंती देवी बीते चार दशक से मध्यमेश्वर घाटी के दो दर्जन से अधिक गांवों में महिलाओं को स्वास्थ्य, शिक्षा व स्वच्छता के प्रति जागरूक कर रही हैं। जिससे इस पूरे क्षेत्र की शराब विरोधी आंदोलन में अग्रणी भूमिका रही। उत्तराखंड राज्य आंदोलन में भी अहम भूमिका निभाने वाली जीवंती देवी दो बार क्षेत्र पंचायत सदस्य भी चुनी गईं। इस दौरान उन्होंने विभिन्न मंचों पर महिलाओं को जल, जंगल और जमीन से जोड़ने की जोरदार पैरवी की।

अपने दौर की सबसे शिक्षित महिला

हाईस्कूल तक शिक्षा ग्रहण करने वाली जीवंती देवी अपने दौर में मध्यमेश्वर घाटी की सबसे शिक्षित महिला रही हैं। जीवंती देवी एक कवि भी हैं। गढ़वाली भाषा में उनका एक कविता संग्रह भी प्रकाशित हो चुका है।

महिलाओं के साथ मिलकर करती हैं समस्याओं का समाधान

जीवंती देवी मध्यमेश्वर घाटी के सीमांत गांवों का लगातार भ्रमण कर वहां महिलाओं से जुड़ी समस्याओं को समझती हैं और फिर उन्हीं के साथ मिलकर इनके समाधान को भी कार्य करती हैं। उन्होंने मध्यमेश्वर घाटी के गांवों में महिलाओं को सांस्कृतिक एवं धार्मिक गतिविधियों से जोड़ने में भी अहम भूमिका निभाई है।

आपदा प्रभावितों के पुनर्वास के लिए लड़ी लड़ाई

जीवंती देवी वर्ष 1996 में पहली बार क्षेत्र पंचायत सदस्य चुनी गईं। तब वे ऊखीमठ ब्लॉक की कनिष्ठ उप प्रमुख भी रहीं। वर्ष 1997 में अंतरराष्ट्रीय स्तर की संस्था 'हिमवंती' ने उन्हेंअपना सदस्य बनाया। वर्ष 1998 में मध्यमेश्वर घाटी में आई आपदा के दौरान उन्होंने प्रभावित परिवारों के पुनर्वास के लिए पूरे मनोयोग से लड़ाई लड़ी। इसी कर्मठता को देखते हुए वर्ष 2001 में उन्हें दोबारा क्षेत्र पंचायत सदस्य चुना गया। वर्ष 2002 में उन्हें ऊखीमठ में प्रेरणा बहुद्देश्यीय समिति का अध्यक्ष चुना गया। इससे क्षेत्र की महिलाओं के सामाजिक, आर्थिक और शैक्षिक विकास के कार्यों में और तेजी आई। रांसी निवासी सुशीला देवी कहती हैं कि जीवंती देवी सिर्फ गांव ही नहीं, पूरे ऊखीमठ विकासखंड की प्रेरणास्रोत हैं। अपने दुख-दर्द भूलकर उन्होंने दूसरों के लिए जीवन समर्पित कर दिया है।

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जीवंती देवी को मिले सम्मान

  • वर्ष 2008 में महिला महासभा देहरादून की ओर से ङ्क्षटचरी माई स्मृति सम्मान।
  • वर्ष 2010 में प्रदेश सरकार की ओर से तीलू रौतेली सम्मान।
  • वर्ष 2011 में ज्योतिष पीठ के शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती महाराज ने की ओर से सामाजिक कार्यों में सक्रियता के लिए ब्रिटिश चैतन्य रत्न सम्मान।
  • वर्ष 2017 में मध्यमेश्वर घाटी विकास मंच की ओर से वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता सम्मान। 

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