यहां दानवीर कर्ण की होती है पूजा
शैलेन्द्र गोदियाल, उत्तरकाशी देश दुनिया में महाभारत का युद्ध और पांडवों की वीरता की कहानियां प्र
शैलेन्द्र गोदियाल, उत्तरकाशी
देश दुनिया में महाभारत का युद्ध और पांडवों की वीरता की कहानियां प्रसिद्ध हैं , लेकिन उत्तराखंड के सीमांत जनपद मोरी ब्लॉक के 24 गांव ऐसे हैं जहां लोग दानवीर कर्ण की पूजा करते हैं, वहीं भीम के पुत्र घटोत्कच की मौत पर खुशी भी मनाते हैं।
रवांईघाटी में जब भी कोई त्योहार होते हैं तो महाभारत के इस नायक की छाप लोक गीतों, लोक नृत्यों में स्पष्ट दिखायी देती है। इस क्षेत्र के लोगों की कर्ण के प्रति इतनी आस्था है कि इन गांवों में अधिकांश मंदिर कर्ण और कर्ण के सारथी, द्वारपालों व कर्ण की गुरुमाता के हैं। कर्ण मंदिर समिति देवरा के अध्यक्ष 60 वर्षीय राजमोहन ¨सह रांगड़ बताते हैं कि इस क्षेत्र के जो पूर्वज थे, उन्हें दानवीर कर्ण की वीरता व मित्रता बेहद पसंद थी।
जिला मुख्यालय से 165 किलोमीटर दूर मोरी तहसील का मुख्यालय पड़ता है। यहां से 30 किलोमीटर दूर एक छोटा सा कसब है जिसका नाम है नैटवाड़। यह कस्बा पंचगाई और ¨सगतूर पट्टी के 24 गांव का केंद्र है। इसी कस्बे से तीन किलोमीटर दूर देवरा गांव है। इस गांव में कर्ण का मंदिर है। इसके आस पास के गांवों में कर्ण के सारथी शल्य महाराज, कर्ण के गण पोखू देवता, कर्ण की गुरुमाता रेणुका देवी के मंदिर हैं। कर्ण मंदिर समिति के अध्यक्ष राजमोहन ¨सह रांगड़ बताते हैं कि पंचगाई व ¨सगतूर पट्टी के 24 गांव में केवल कर्ण महाराज की पूजा होती है। यहां के ग्रामीणों के कुलदेवता और इष्ट देवता कर्ण ही हैं। महाभारत में घटोत्कच की मौत की खुशी में यहां ग्रामीण हर साल ¨हडोड़ा मेले का आयोजन करते हैं। यह मेला मकर संक्रांति के अगले दिन होता है। मंदिर के पुजारी कमलेश्वर प्रसाद नौटियाल ने बताया कि कर्ण महाराज की हर सुबह व शाम आरती और पूजा होती है।
इन गांवों में होती है पूजा
देवरा, पोखरी, गुराड़ी, गैंच्वाण गांव, दणमाण गांव, सुस्यांण गांव, हल्टवाड़, पासा, कुंदरा, लुदराला, नानाई, रामाल गांव, डोभाल गांव, ¨वगसारी, लिवाड़ी, फिताड़ी, जखोल, पर्वत, कोटगांव, नैटवाड़ सहित 24 गांव के ग्रामीण इष्ट देवता कर्ण की पूजा करते हैं।
¨हडोड़ा मेला 15 को
मोरी के देवरा गांव में 15 जनवरी को ¨हडोड़ा मेले का आयोजन होगा। मान्यता है कि महाभारत में कर्ण महाराज ने भीम के पुत्र घटोत्कच को मारा था। इसी खुशी में 24 गांव के ग्रामीण इस दिन एकत्र होते हैं और चमड़े की एक गेंद बनाकर घटोतत्कच के पुतले के सिर पर मारते हैं। इस गेंद को पांव से मारा जाता है । यह खेल खेलने के लिए साटी और पांसाई नाम से दो टीमें बनाई जाती हैं और इन दोनों टीमों के बीच यह खेल करीब पांच घंटे तक चलता है। हार जीत का निर्णय कर्ण मंदिर के पुजारी करते हैं।
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