जैविक आहार में खोजी बेजुबानों के मर्ज की दवा, डॉक्टरी छोड़ जानवरों के लिए शुरू किया स्टार्टअप
पशु चिकित्सक डॉ. बीनू भदौरिया ने नौकरी छोड़कर पशुओं के लिए जैविक आहार का स्टार्टअप शुरू किया। उन्होंने पाया कि रासायनिक आहार पशुओं में बांझपन का कारण है। डॉ. बीनू ने स्थानीय उत्पादों से पशु आहार बनाया जिससे उनकी प्रजनन क्षमता बढ़ी। ओजस एनिमल फूड नाम से शुरू हुए इस स्टार्टअप को आइआइएम ने सराहा। उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश के 50 गांवों के 10000 किसान इससे लाभान्वित हो रहे हैं।

अभय कुमार पांडेय, काशीपुर। अस्पताल में लाए जाने वाले बीमार पशुओं की पीड़ा की भाषा को वह अच्छे से समझती हैं। वह जानती हैं कि बाहरी घाव, चोट या बीमारी को तो मरहम पट्टी से ठीक किया जा सकता है, लेकिन शारीरिक रूप से मजबूती व निरोगी रहने के लिए पौष्टिक व गुणवत्तापूर्ण आहार कहीं ज्यादा जरूरी है।
इसी सेवा कर्म के भाव को लेकर आगे बढ़ रहीं डा. बीनू भदौरिया उत्तराखंड व उत्तर प्रदेश के बाद देश भर के पशुपालकों के लिए एक उम्मीद की किरण बनकर उभरी हैं।
पशु चिकित्सक डा. बीनू ने नौकरी छोड़ भारतीय प्रबंधन संस्थान (आइआइएम) काशीपुर से ट्रेनिंग व फंडिंग हासिल कर पशुओं में बांझपन की समस्या के समाधान व उन्हें सेहतमंद प्राकृतिक आहार पर शोध किया। जिसमें पाया कि असंतुलित और केमिकल युक्त आहार पशुओं में बांझपन का प्रमुख कारण है।
उन्होंने स्थानीय और जैविक सामग्रियों से विशेष पशु आहार विकसित किया। जो पशुओं की प्रजनन क्षमता बढ़ाने के साथ-साथ उनके स्वास्थ्य को बेहतर करता है। इसके बाद 'ओजस एनिमल फूड' नाम से स्टार्टअप शुरू किया। आइआइएम ने इसे देश के लिए माडल माना है। आज उत्तराखंड व उप्र के 50 गांवों के करीब 10 हजार पशुपालकों तक उनके आहार की पहुंच है।
मूल रूप से भिंड (मप्र) और वर्ष 1998 से वन विहार देहरादून निवासी पशु चिकित्सक डा. बीनू ने 2019 में सरकारी पशु चिकित्सक के पद से इस्तीफा दे दिया। पेशे में रहते हुए उन्हें पशुओं की बीमारियों, उपचार व खान-पान आदि के बारे में बेहतर ज्ञान था। यहीं से उन्होंने बाजार में उपलब्ध यूरिया व अन्य केमिकल युक्त पशु आहार से इतर पर काम करना शुरू किया। इंसान की तरह ही पशुओं के लिए भी जैविक आहार पर शोध कर प्रोजेक्ट आइआइएम काशीपुर के समक्ष रखा।
आइआइएम ने फाउंडेशन फार इनोवेशन एंड एंटरप्रेन्योरशिप डेवलपमेंट(फीड) प्रोजेक्ट के तहत इस स्टार्टअप को 20 लाख रुपये की फंडिंग दे दी। यहीं से डा. बीनू स्टार्टअप की राह में आगे बढ़ी और निरंतर प्रगति कर रही हैं। साथ ही प्लांट में कार्यरत 50 लोगों को प्रत्यक्ष व एजेंसी, वितरक आदि माध्यमों से सैकड़ों लोगों को अप्रत्यक्ष रूप से रोजगार भी मिला है।
केमिकल युक्त आहार से पशुओं की सेहत को नुकसान: डा. बीनू बताती हैं कि केमिकल युक्त विशेष रूप से उच्च यूरिया वाले आहार पशुओं की प्रजनन प्रणाली को भी नुकसान पहुंचाते हैं। इससे रक्त में अमोनिया का स्तर बढ़ता है। जो बांझपन और अंडे के उत्पादन में कमी का कारण बनता है। उन्होंने इसी समस्या पर फोकस कर जैविक आहार में इसका समाधान तलाशा।
उनकी ओर से तैयार आहार में गेहूं, मक्का, बाजरा, मडुवा, भूसी, जौ, सरसों, मूंगफली, बिनौला और सोयाबीन जैसे अनाज उचित सम्मिश्रण मानक पर तैयार होता है। यह आहार पशुओं की उम्र और स्वास्थ्य के अनुसार विभिन्न श्रेणियों में उपलब्ध है। पशुपालकों ने इस आहार के उपयोग से पशुओं के स्वास्थ्य में उल्लेखनीय सुधार स्वयं अनुभव भी किया।इसकी कीमत 1200-1500 रुपये प्रति 50 किलो रखी गई है।
37 लाख रुपये से शुरुआत, 3.85 करोड़ पहुंचा टर्नओवर
डा.बीनू ने आइआइएम से 20 लाख की फंडिंग मिलने के बाद 17 लाख रुपये बैंक से लोन लिया। वर्ष 2019 में स्टार्टअप शुरू किया और एक करोड़ का टर्नओवर रहा। 2024-25 में स्टार्टअप का वार्षिक टर्नओवर 3.85 करोड़ रहा है। लाघा रोड देहरादून में डा. बीनू ने प्लांट स्थापित किया है।
यहां से तैयार उत्पाद चमोली, हरिद्वार, पौड़ी गढ़वाल, रुद्रप्रयाग, टिहरी गढ़वाल, उत्तरकाशी और उत्तर प्रदेश के सहारनपुर व बिजनौर तक सप्लाई होता है। जिसे अब अन्य राज्यों में भी सप्लाई करने की तैयारी हो रही है। फिलहाल इससे 10 हजार से अधिक पशुपालक लाभ उठा रहे हैं। इतना ही किसान अपने गेहूं, जौ और मक्का आदि खाद्यान्न को प्लांट पर लाकर बदले में तैयार आहार प्राप्त करते हैं।
देहरादून के मालसी डियर पार्क में हिरन, सांभर और खरगोशों के लिए यही आहार उपलब्ध कराया जा रहा है। साथ ही चारधाम यात्रा मार्गों पर घोड़े-खच्चरों के लिए भी आर्डर पर आहार भेजा जाता है। कोविड काल में दुर्गम क्षेत्रों में सरकार के सहयोग से आहार पहुंचाया गया था।
अब महिला स्वयं सहायता समूहों को जोड़कर बढ़ेंगी आगे
डा. बीनू का लक्ष्य महिला स्वयं सहायता समूहों को जोड़कर उत्पादन को विकेंद्रित करना है। यह पहल न केवल पशु स्वास्थ्य और कृषि उत्पादकता को बढ़ाएगी, बल्कि उत्तराखंड के स्वयं सहायता समूहों को भी समृद्ध करेगी। पशु स्वस्थ रहेंगे तो किसानों की आमदनी में भी वृद्धि होगी। पहाड़ में खेती को बढ़ावा मिलेगा और किसानों को मार्केट।
डा. बीनू को आइआइएम काशीपुर से 20 लाख की फंडिंग भी दी गई है। उनकी यह पहल सिर्फ एक स्टार्टअप नहीं बल्कि उत्तराखंड जैसे पर्वतीय राज्य में आजीविका, पशु स्वास्थ्य और प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने वाला एक सफल माडल है। यह स्टार्टअप देशभर के किसानों के लिए प्रेरणा बन सकता है।
- सफल बत्रा, डायरेक्टर, फीड आइआइएम काशीपुर
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