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सहारे और संघर्ष की दास्तान है एमबीए नेहा की चाय की दुकान, जानिए इनकी कहानी

एमबीए करने के बाद भी नेहा ने अपनी चाय की दुकान का साथ नहीं छोड़ा क्योंकि यही दुकान उसकी विपरीत परिस्थितियों में सहारा बनी।

By Raksha PanthariEdited By: Published: Sun, 30 Dec 2018 01:55 PM (IST)Updated: Sun, 30 Dec 2018 08:37 PM (IST)
सहारे और संघर्ष की दास्तान है एमबीए नेहा की चाय की दुकान, जानिए इनकी कहानी
सहारे और संघर्ष की दास्तान है एमबीए नेहा की चाय की दुकान, जानिए इनकी कहानी

रुद्रपुर, ज्ञानेंद्र कुमार शुक्ल। यूं ही नहीं कहा जाता है कि बेटियां बेटों से कम नहीं। हर खुशी और दुख की घड़ी में परिवार का संबल होती हैं बेटियां। उत्तराखंड के रुद्रपुर की नेहा मखीजा भी ऐसा ही एक नाम है। 18 वर्ष पूर्व जब पिता का साया सिर से उठा, तब सात साल की ही थी। मां ने परिवार का पालन-पोषण करने के लिए कपड़ों की सिलाई का काम शुरू किया। 

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नेहा बड़ी हुई तो उसने खुद पैरों पर खड़े होने और मां का सहारा बनने के लिए कदम बढ़ाए। एमबीए की पढ़ाई के साथ-साथ रुद्रपुर रेलवे स्टेशन के समीप छोटी की चाय की दुकान चलाई। यही नहीं एमबीए पास करने के बाद कई जगह नौकरी भी की। आखिर में अहमियत अपनी ही चाय की दुकान को दी। नेहा कहती हैं, यह भी तो अपने पैरों पर खड़ा होना ही है। 

रुद्रपुर रेलवे स्टेशन के सामने छोटी सी चाय की दुकान चला रही एमबीए पास नेहा मखीजा युवाओं के लिए प्रेरणास्रोत बन गई है। बकौल नेहा, पिता राजेंद्र कुमार की साल 2000 में सड़क दुर्घटना में मौत हो गई थी। परिवार पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा। मां सरोज पर तीन बेटियों की परवरिश का जिम्मा आ गया। बड़ी बहन सारिका व सबसे छोटी गार्गी भी मां को सहारा देने लायक नहीं थी। इसी बीच मां ने घर के सामने ही बाउंड्री से सटाकर चाय की दुकान खोल ली। यहां वह कपड़ों की सिलाई का काम भी ले लेती थी। फिर मैंने स्कूल की पढ़ाई के दौरान कुछ समय दुकान में बैठकर मां का हाथ बंटाना शुरू किया। 

धीरे-धीरे परिवार परिवार की गाड़ी चलती रही। बाद में कुमांऊ विश्वविद्यालय से एमबीए करने लगी, लेकिन दुकान का साथ नहीं छूटा। चूंकि मां को भी आराम देना था, इसलिए खुद ही दुकान को ज्यादा वक्त दिया। आखिर यह दुकान ही तो थी जिसने परिवार को मुश्किल वक्त में सहारा दिया। कॉलेज की फीस से लेकर घर का खर्च यहीं से निकाला। 2017 में एमबीए भी पूरा हो गया। फिर रुद्रपुर में ही वोल्टास, इमामी और सनराइज कंपनियों के एचआर विभाग में नौकरी की, लेकिन वहां मन नहीं लगा। 

नेहा ने बताया कि पिता की मौत के बाद मां ने दूसरा विवाह किया। परिवार की हालत फिर भी नहीं बदली। क्योंकि सौतेले पिता 24 घंटे सत्संग में ही मगन रहते थे। उनको परिवार के भरण-पोषण से कोई ज्यादा सरोकार नहीं था। वह तो आज भी परिवार के प्रति अपनी जिम्मेदारी नहीं समझ रहे। ऐसे में परिवार की जिम्मेदारी तो लेनी ही थी। बड़ी बहन सारिका की शादी हो चुकी है। छोटी बहन अभी पढ़ाई कर रही है। 

खुद का बिजनेस देता है आत्मसंतुष्टि

नेहा कहती हैं कि बिजनेस छोटा हो या बड़ा, यह खुद का हो तो एक अलग ही संतोष मिलता है। एमबीए करने के बाद भी चाय की दुकान चलाने की बात पर बोलीं, मुझे कोई मलाल या अफसोस नहीं है। काम वही करना चाहिए, जिसमें आत्मसंतुष्टि हो। हां, उस काम को आपको और बेहतर तरीके से करने की ललक होनी चाहिए। मेरा लक्ष्य है चाय की दुकान से बड़े व्यवसाय की ओर बढ़ना। 

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