धौरा व नानक सागर बने चरागाह, बैगुल डैम भी गया निचुड़
राहुल पांडेय, किच्छा नदी और नहरों वाले उत्तराखंड राज्य में नदियां ही नहीं बल्कि डैम भी अस्तित्व
राहुल पांडेय, किच्छा
नदी और नहरों वाले उत्तराखंड राज्य में नदियां ही नहीं बल्कि डैम भी अस्तित्व के लिए जूझते दिख रहे हैं। ये हालात बीते मानसून सत्र और सर्दी में बारिश की बेरुखी ने पैदा कर दिए हैं। यह हालात उत्तराखंड ही नहीं, उप्र के काश्तकारों को बेहाल करेंगे। बारिश की कमी से तराई के प्रमुख जलाशयों में धौरा व नानक सागर सूख कर चरागाह बन गए हैं, वहीं बैगुल में भी नाममात्र का पानी है। सिंचाई विभाग ने चेतावनी दे रखी है कि जल्द ही बारिश न हुई तो तीनों डैमों से ¨सचाई की नहरों में पानी छोड़ना मुश्किल होगा।
जनपद के तीन बड़े जलाशयों में शुमार धौरा, बेगुल व नानक सागर में पर्वतीय क्षेत्र से नदी व नालों के साथ बरसात का पानी भी बड़ी तादाद में एकत्र होता है, इसी पानी से उप्र के पीलीभीत व बरेली के साथ ऊधम¨सहनगर के खटीमा, सितारगंज व किच्छा क्षेत्र के काश्तकार अपनी फसलों की ¨सचाई करते हैं। इन जलाशयों के सहारे ही तराई के काश्तकारों की रवी की फसल लहलहाती है, वहीं यह काश्तकार इसी पानी के बूते तराई के एक बड़े भाग में खरीफ की दो-दो फसलें उगाते रहे हैं। लेकिन इस बार यही पानी काश्तकारों की हालत पतली कर रहा है। बीते मानसून सत्र में कुमाऊं के पर्वतीय जनपदों के साथ ही मैदानी क्षेत्रों में भी नाममात्र की बारिश हुई, सर्दियों में तो लोग बारिश देखने को तरस गए। सितंबर से मई तक भी यही हाल रहा। नतीजन यह तीनों डैम लगभग सूख चुके हैं। किच्छा का धौरा व नानकमत्ता का नानक सागर सूख कर चरागाह बन गए हैं। वहीं सितारगंज के बैगुल जलाशय में न्यूनतम स्तर से पांच फिट ही पानी बचा है, जिससे अगले पंद्रह दिन बाद वर्षा न होने की हालत में पानी की एक बूंद भी सिंचाई को दे पाना संभव नहीं होगा, वर्तमान में नानक सागर व धौरा जलाशय से जहां ¨सचाई के लिए पानी पूरी तरह बंद कर दिया गया है, वही बैगुल से पीलीभीत की भी आपूर्ति बंद है, यहां से ऊधम¨सहनगर व बहेड़ी के कुछ क्षेत्रों को ही आपूर्ति की जा रही है। इंद्र देव की बेरुखी को देख किसान खरीफ की फसल के लिए निजी संसाधनों पर आश्रित हो रहे हैं।
वन्य जीव भी बेहाल
किच्छा : धौरा,बेगुल व नानकसागर के आसपास घने वन क्षेत्र है, इनमें बड़ी तादाद में हिरण,हाथी व बाघ भी विचरण करते है, इन जलाशयों से निकलने वाला पानी ही इनका बड़ा सहारा होता है, वर्तमान में धौरा व नानक सागर के सूखने से वन्य जीव भी बेहाल है। वह पानी की तलाश में अब आबादी की ओर रुख कर रहे है।
15जून से पहले नहीं मिलने वाली राहत
किच्छा: विवि पंतनगर के मौसम वैज्ञानिक डा. आर के ¨सह की माने तो उन्हें जो पूर्वानुमान मिला है, में अगले एक माह यानि 15 जून से पहले मानसून आने की कोई संभावना नहीं है, हां 18 से 21 मई को ऊधम¨सहनगर में बादल छाए रहने व कहीं कही हल्की बूंदा बांदी की ही संभावना है। इससे काश्तकारों को कोई बडी राहत नही मिलने वाली।
तीन डिग्री गिरा पारा
किच्छा : रविवार को सूर्यदेव का ताप 41 डिग्री पाहुंचने के बाद त्राहि माम कर जनपद वासियों को सोमवार को क्षेत्र में कई बार हल्की बदली छाने व हवा चलने से राहत मिली, मौसम विभाग ने सोमवर को अधिकतम तापमान 38 डिग्री सेल्सियय दर्ज किया है। जो रविवार की तुलना में तीन डिग्री कम है।
वर्जन
धौरा व नानक सागर की तरह बैगुल अभी पूरी तरह सूखा नहीं है, पर इसमें अब न्यून्तम स्तर से महज पांच फिट तक ही पानी शेष है, इससे अब अगले पंद्रह दिन बाद ¨सचाई को पानी दे पाना संभव नहीं होगा।
दीपक कुमार, अवर अभियंता, ¨सचाई विभाग रुहेलखंड डिवीजन
राहुल पांडेय
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