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केदारपुरी को संवारने में जुटे हैं 150 योद्धा, कड़ाके की ठंड भी नहीं डिगा पाई हौसला

नेपाल के साथ ही विभिन्न प्रदेशों के 150 श्रमिक कड़ाके की ठंड में केदारपुरी को संवारने में जुटे हुए हैं। उन्हें कोरोना का भी कोई खौफ नहीं है।

By Raksha PanthariEdited By: Published: Tue, 26 May 2020 10:06 AM (IST)Updated: Tue, 26 May 2020 10:06 AM (IST)
केदारपुरी को संवारने में जुटे हैं 150 योद्धा, कड़ाके की ठंड भी नहीं डिगा पाई हौसला
केदारपुरी को संवारने में जुटे हैं 150 योद्धा, कड़ाके की ठंड भी नहीं डिगा पाई हौसला

रुद्रप्रयाग, बृजेश भट्ट। लॉकडाउन के दौरान एक ओर देशभर से लाखों प्रवासी श्रमिक अपने घर लौटने को बेताब हैं, वहीं इसके उलट केदारनाथ में पुनर्निर्माण कार्यों में जुटे नेपाल के साथ ही विभिन्न प्रदेशों के 150 श्रमिकों में न तो कोरोना का कोई खौफ है, न घरों को लौटने की जल्दी है। समुद्रतल से 11657 फीट की ऊंचाई पर कड़ाके की ठंड में ये श्रमिक कोरोना योद्धा के रूप में बेखौफ अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन कर रहे हैं। हां! इन श्रमिकों के परिजन जरूर चिंतित रहते हैं, लेकिन इनसे फोन पर बात होने के बाद उनकी यह चिंता भी दूर हो जाती है। श्रमिकों का कहना है कि बाहर से लोगों की आवाजाही न होने के कारण केदारपुरी में वो पूरी तरह सुरक्षित हैं और उनके परिवारों की आर्थिक जरूरतें भी पूरी हो रही हैं।

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केदारनाथ में फरवरी आखिर से नेपाल के अलावा उत्तर प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, पंजाब और गढ़वाल (उत्तराखंड) के 150 मजदूर पुनर्निर्माण कार्यों में जुटे हुए हैं। यहां वर्तमान में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ड्रीम प्रोजेक्ट के तहत शंकराचार्य की समाधि और घाट का निर्माण, सरस्वती व मंदाकिनी नदी पर बाढ़ सुरक्षा कार्य और तीर्थ पुरोहितों के आवासों का निर्माण हो रहा है। अब भी रात में केदारपुरी का तापमान माइनस पांच डिग्री तक पहुंच जा रहा है। दोपहर के वक्त भी यहां आठ डिग्री के आसपास तापमान रहता है। बावजूद इसके इन श्रमिकों के चेहरों पर जरा भी शिकन नहीं दिखाई देती और न उनमें कोरोना को लेकर ही कोई खौफ है।

वह कहते हैं कि यात्रा प्रतिबंधित होने के कारण केदारपुरी कोरोना संक्रमण से पूरी तरह सुरक्षित है। बहराइच (उत्तर प्रदेश) निवासी 19-वर्षीय महेश कुमार बताते हैं कि उन्हें लेकर स्वजन जरूर परेशान रहते हैं। लेकिन, जब उन्हें बताया जाता है केदारनाथ में कोरोना से कोई खतरा नहीं है तो वह बेफिक्र हो जाते हैं।

जालंधर (पंजाब) के 40-वर्षीय रंजीत कुमार पिछले तीन महीनों से केदारनाथ में कार्य कर रहे हैं। वह कहते हैं कि यहां सभी श्रमिक परिवार की तरह रहते हैं और उन्हें घर लौटने की भी कोई जल्दी नहीं है। बांके जिला (नेपाल) के 20-वर्षीय प्रदीप क्षेत्री बताते हैं कि उनकी हफ्ते में एक दिन स्वजनों से बात होती है। इससे उनकी चिंता दूर हो जाती है।

केदारपुरी में काम कर रहे श्रमिक

राज्य/प्रदेश, कुल श्रमिक

नेपाल, 32

उत्तर प्रदेश, 55

हिमाचल प्रदेश, 20

पंजाब, 22

गढ़वाल (उत्तराखंड), 21

वुड स्टोन कंस्ट्रक्शन कंपनी के केदारनाथ प्रभारी मनोज सेमवाल बताते हैं कि फरवरी से कोई भी श्रमिक अपने घर नहीं गया और न किसी ने इस अवधि में घर जाने की बात ही कही। हमें श्रमिकों की चिंता है, इसलिए स्वजनों से फोन पर नियमित रूप से उनकी बातचीत करवाई जाती है।

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रुद्रप्रयाग के तत्कालीन जिलाधिकारी मंगेश घिल्डियाल ने बताया कि केदारनाथ में दर्शनों पर पूर्ण प्रतिबंध है और बाहरी व्यक्ति को वहां जाने की अनुमति भी नहीं है। ऐसे में यहां कोरोना संक्रमण का कोई खतरा नहीं। निर्माण कार्यों में जुटे श्रमिक खुश हैं, क्योंकि इस संकटकाल में भी उन्हें रोजगार मिल रहा है।

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