यहां देवी काली ने शुम्भ-निशुम्भ राक्षस का किया था वध, पढ़ें खबर
जब शुम्भ-निशुम्भ राक्षस के आतंक से लोग त्राही-त्राही करने लगे तो मां काली ने चंडिका का रूप धारण कर उनका वध किया। कालांतर में यही जगह कालीमठ मंदिर नाम से प्रसिद्ध हुई।
रुद्रप्रयाग। जब शुम्भ-निशुम्भ राक्षस के आतंक से लोग त्राही-त्राही करने लगे तो मां काली ने चंडिका का रूप धारण कर उनका वध किया। कालांतर में यही जगह कालीमठ मंदिर नाम से प्रसिद्ध हुई।
उच्च हिमालय क्षेत्र में केदारनाथ हाईवे से के पास प्रसिद्ध सिद्धस्थल काली माँ का कालीमठ मंदिर स्थित हैं। देवी भागवत कथा में लिखा है कि इसी क्षेत्र के मनसूना स्थान में दो बड़े बलशाली राक्षस शुम्भ एवं निशुम्भ रहते थे। इनके जब लोगों पर जुल्म बढ़ गई, तब सभी देवताओं ने कालीशिला नामक स्थान पर देवी की अराधना की। देवी कालीशिला में 14 वर्ष की कन्या के रूप में प्रकट हुई।
इस कन्या ने राक्षसों का वध करना शुरू कर दिया। सबसे पहले चंड व मुंड राक्षसों का वध कर कालीमठ में दोनों के सिर एक कुंडी में गाड़ दिया, जो कुंडी आज भी कालीमठ में मुख्य मंदिर के अंदर देखी जा सकी है। शुम्भ-निशुम्भ राक्षस भी कालीमठ में चंडिका से युद्ध करने गए तो चंडिका ने दोनों राक्षसों का वध कर उन्हें मार डाला। कालीमठ मंदिर के पुजारी सुरेशानंद गौड ने बताया कि सिद्धपीठ कालीमठ मंदिर और कालीशिला में नवरात्रों में स्थानीय भक्तों के साथ ही देश-विदेश के भक्त बड़ी संख्या में पहुंचते हैं।
सिद्धपीठ में शामिल है यह मंदिर
कालीमठ में काली मां का मंदिर सिद्धपीठों में शामिल है। काली मां के दर्शन कर भक्तों की मनोकामना पूरी होती है। चैत्र व शारदीय नवरात्रों में यहां विशेष पूजा होती है। कालीरात्रि को पूरी राज जागरण होता है। पूर्व में यहां पर पशु बली प्रथा का प्रचलन था, जो अब बंद हो चुकी है। भक्त श्रीफल लेकर माता के दरबार में आते हैं।
कैसे पहुंचे मंदिर
सबसे पहले ऋषिकेश से ऋषिकेश-बद्रीनाथ हाईवे से 130 किमी दूरी तय कर रुद्रप्रयाग पहुंचे। इसके बाद रुद्रप्रयाग-गौरीकुंड हाईवे से 42 किमी की दूरी तय कर गुप्तकाशी पहुंचें। गुप्तकाशी से 10 किमी की दूरी तय कर कालीमठ तक पहुंचे। यहां काली नदी के दूसरे छोर पर मंदिर है। यहां से मंदिर के लिए सौ मीटर की पैदल दूरी तय करनी पड़ेगी।
रेलवे स्टेशन :- ऋषिकेश
एयरपोर्ट:- जौलीग्रांट
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