रूठे मौसम ने बढ़ाई चिंता, काली पड़ने लगी हिमालय की चोटियां; 12 हजार फीट की ऊंचाई पर पहले जैसी ठंड नहीं
Uttarakhand Weather Update हिमालय में बर्फबारी में कमी चिंता का विषय है। उच्च हिमालयी गांवों में दिसंबर तक चहल-पहल रहती थी लेकिन अब 12 हजार फीट की ऊंचाई पर भी ग्रामीण नहीं लौट रहे हैं । पंचाचूली जैसी चोटियों का निचला हिस्सा काला पड़ चुका है और ग्लेशियर सिकुड़ रहे हैं। विकास के साथ पर्यावरण संरक्षण भी आवश्यक है।
जाटी, धारचूला/मुनस्यारी (पिथौरागढ़) । Uttarakhand Weather Update: लगभग एक दशक पूर्व उच्च हिमालय में दिसंबर माह तक चहल-पहल होना एक कपोल कल्पना ही मानी जा सकती थी। दिसंबर तक मानव तो दूर, पशु, पक्षी तक मध्य हिमालयी भू भाग तक पहुंच जाते थे।
हिमालय की सभी चोटियां ताजे बर्फ से लकदक रहती थीं। निचले क्षेत्रों में तक ठिठुरन से दिनचर्या बदल जाती थी। एक दशक के भीतर कुछ ऐसा हुआ है कि 12 हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित गांवों के ग्रामीणों ने पूरा माइग्रेशन नहीं किया है।
30 से 40 प्रतिशत ग्रामीण ही निचली घाटियों को लौटे
धारचूला के उच्च हिमालयी व्यास और दारमा घाटी से 30 से 40 प्रतिशत ग्रामीण ही माइग्रेशन में निचली घाटियों को लौटे हैं। एक तरफ जहां शीतकाल में चीन सीमा पर स्थित गांवों में ग्रामीणों का रहना सामरिक दृष्टि से अच्छा माना जा सकता है, परंतु पर्यावरणीय दृष्टि से यह किसी गंभीर खतरे की चेतावनी है।
इस वर्ष मानसून काल में बीते वर्षों की अपेक्षा वर्षा अधिक होने से समय पर अच्छे हिमपात की संभावना जताई जा रही थी, परंतु अभी तक ऊंची चोटियों पर बीते नवंबर माह में हल्का हिमपात भर हुआ है। पंचाचूली जैसी चोटियों का निचला हिस्सा काला पड़ चुका है, मात्र चोटियां ही सफेद नजर आ रही हैं।
ग्लेशियर तक सिकुड़ रहे हैं। हिमपात, वर्षा नहीं होने से सड़कें खुली है, ग्रामीण अपने गांवों में मकान निर्माण और होमस्टे बनाने में जुटे हैं। धारचूला से निर्माण सामग्री उच्च हिमालय तक लगातार पहुंच रही है।
हिमपात तो दूर अभी जैकल तक नहीं गिरा
धारचूला : उच्च हिमालय में भारी हिमपात से पूर्व जैकल (रुई जैसी नजर आने वाली बर्फ) गिरती है। जैकल गिरने के साथ पिघलना आरंभ हो जाता है। जिससे तापमान तेजी से गिरता है और फिर आरंभ होता है भारी हिमपात और उच्च हिमालयी भू भाग मोटी बर्फ की चादर से ढक जाता है। नदियां, सरोवर, जलस्रोत ग्लेशियर में तब्दील हो जाते हैं। इस वर्ष अभी तक जैकल तक नहीं गिरा है।
चार वर्ष पूर्व भारी हिमपात से दारमा से ग्रामीणों को हेलीकाप्टर से निकालना पड़ा
धारचूला : विगत एक डेढ़ दशक के बीच मौसम में आए बदलाव से हिमपात और वर्षा का चक्र बदल चुका है। चार वर्ष पूर्व मध्य अक्टूबर से पूर्व दारमा घाटी में भारी हिमपात हुआ था। माइग्रेशन करने वाले ग्रामीण फंस गए थे। दारमा सड़क बंद हो गई थी।
13 गांवों के ग्रामीणों को हेलीकाप्टर से धारचूला लाना पड़ा कई दिनों तक रेस्क्यू चला। जानवर गांवों में ही रह गए थे। बीते वर्ष दिसंबर माह के दूसरे पखवाड़े में बर्फबारी हुई थी। बीते एक दशक के मध्य एक दो अपवादों को छोड़ दे तो मार्च से मध्य मई तक हिमपात हो रहा है।
दिसंबर तक हिमपात नहीं होना गंभीर है। व्यास घाटी से गुंजी, गर्ब्यांग, बूंदी के ग्रामीण सबसे अंत में हर हाल में 15 नवंबर तक धारचूला पहुंच जाते थे। अब तो पहले जैसी बर्फबारी नहीं होती है। धारचूला से 50 किमी दूर नजंग से आगे बढ़ने की स्थिति नहीं रहती थी। अब तो मार्च, अप्रैल, मई में हिमपात हो रहा है, जो जल्दी पिघल जाती है। पहले पांच से छह माह तक सभी गांव बर्फ से ढके रहते थे। ग्लेशियर बनते थे। अब तो ग्लेशियर तक नहीं बन रहे हैं। मेरी नजरों के सामने कई ग्लेशियर समाप्त हो चुके हैं। ग्लेशियर नहीं बनेंगे तो जल संकट होगा। - 95 वर्षीय मंगल सिंह गुंज्याल, निवासी गुंजी
विकास के साथ पर्यावरण संरक्षण भी आवश्यक है। देश के लिए हिमालय का महत्व सभी को पता है। मौसम का असंतुलन, पर्यावरणीय असंतुलन का द्योतक है। मौसम की इस चेतावनी को समझते हुए सजग रहना ही श्रेयस्कर है। समय पर वर्षा, बर्फबारी नहीं होने से हिमनदों से निकलने वाली नदी, नाले और झरने प्रभावित होंगे। - धीरेंद्र जोशी, पर्यावरणविद्, पिथौरागढ़
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