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    जगमगाते मिट्टी के दीयों से बढ़ रही घर की शोभा, चल निकला कुम्हारों का पेशा

    Updated: Sun, 19 Oct 2025 03:45 PM (IST)

    लोहाघाट में पहली बार दीये बेचने आए कुम्हारों का यह खानदानी पेशा है। उनके रिश्तेदार पीलीभीत में दीये बनाते हैं और पूरा परिवार इसी काम में लगा रहता है। दीपावली के मौसम में दीये बेचते हैं और बाकी समय पूर्णागिरी मेले में होटल में काम करते हैं। इस बार वे दस हजार दीये लाए हैं, जिनकी अच्छी बिक्री हो रही है। पहले वे पिथौरागढ़ जाकर दीये बेचते थे।

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    पिछले चार सालों से लगातार बढ़ रही मिट्टी के दीयों की मांग। प्रतीकात्‍मक तस्‍वीर

    संवाद सहयोगी, जागरण, लोहाघाट । दीपावली पर्व में इलेक्ट्रानिक दीप मालिकाओं के साथ मिट्टी के दीयों की भी मांग तेजी से बढ़ रही है। पिछले चार साल से दीयों की खरीदारी बढ़ने से कुम्हारों का काम भी बढ़ चला है। मेहनत का मोल मिलने से उनके घर की दीवापली भी रोशन हो रही है। चंपावत व लोहाघाट बाजार में मिट्टी के दीयों की अच्छी खासी मांग को देखते हुए स्थानीय दुकानदार मैदानी इलाकों से मिट्टी के दीये मंगाकर बिक्री कर रहे हैं। वहीं टनकपुर व पीलीभीत से मिट्टी के दीये तैयार करने वाले कुम्हार भी खुद यहां आकर अपनी दुकानें लगा रहे हैं।

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    लोहाघाट के व्यापारी दिनेश चंद्र ने बताया कि उन्होंने दो दिन में 500 दिए बेच दिए है। लोग इलेक्ट्रानिक दीप मालिकाओं के साथ मिट्टी के दीये जरूर खरीद रहे हैं। रमेश चंद्र व मनोज कुमार ने बताया कि पिछले चार वर्षों से मिट्टी के दीयों की मांग बढ़ी है, जिसे देखते हुए वे अब दीपावली में बेचने के लिए कम से कम एक हजार दीये मंगा रहे हैं, जो आसानी से बिक जाते हैं।

    दुकान लगाकर मिट्टी के दिए बेच रहे श्यामा कुमार ने बताया कि वह इस वर्ष दूुसरी बार मिट्टी के दिए लेकर पहुंचे हैं। बताया कि वह छह हजार दीये पीलीभीत अपने रिश्तेदारों के यहां खरीदकर लाए है। रविवार को पहले दिन 30 रुपये दर्जन के हिसाब से 400 से अधिक दीये बिक चुके हैं। टनकपुर से आए व्यापारी दिनेश प्रजापति ने बताया कि धनतेरस से पहले ही एक हजार से अधिक दीये बिक चुके थे। दीपावली के दिन बिक्री और अधिक बढ़ने की संभावना है। उन्हांने बताया कि डिजाइन और आकार के अनुसार मिट्टी के दीये 30 रुपये से लेकर 120 रुपये दर्जन बिक रहे हैं।

    चंपावत में भी पीलीभीत से मिट्टी के दीये लेकर पहुंचे हरि प्रसाद, सुनील कुमार, कालीचरण ने बताया कि मिट्टी के दीयों की मांग बढ़ने से कुम्हारों का उत्साह काफी अधिक बढ़ा है। अपने पुस्तैनी धंधे को छोड़ चुके कई लोग फिर से मिट्टी के दीये और बर्तन बनाने के काम में जुट गए हैं। दीयों के प्रति लोगों की दिलचस्पी बढ़ने से न केवल कुम्हार व फुटपाथों पर दुकान लगाने वाले छोटे व्यापाारी भी काफी खुश हैं। उन्होंने स्थानीय उत्पादों के प्रति लोगों का रुझान बढ़ाने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का आभार भी जताया।

    दीये बनाने के काम में उनका पूरा परिवार हाथ बंटाता है। वह पिछले पांच सालों से लोहाघाट में मिट्टी के दीये बेच रहे है। पहले दीये काफी कम बिकते थे। अब बिक्री बढ़ गइ्र है। पिछली दीपावली में 10 हजार दीये लाए थे। इस बार 20 हजार दीये लाए हैं। तीन दिन में आठ हजार दीये बिक चुके है। दीपावली के चार पांच दिन के सीजन में वह 20 से 25 हजार रुपये तक कमा लेते हैं।

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    - अमित प्रजापति, टनकपुर

    लोहाघाट में इस बार पहली बार दीये बेचने आए हैं। यह हमारा पैतृक पेशा है। पीलीभीत में रिश्तेदार दीये तैयार करते हैं। पूरा परिवार इसी कार्य में लगा रहता है दीपावली सीजन में दीये बेचते हैं तथा शेष समय पूर्णागिरी मेले में होटल में काम करते हैं। इस बार दस हजार दीये लाए हैं, जिनकी अच्छी बिक्री हो रही है। इससे पहले तक पिथौरागढ़ जाकर दीये बेचते थे।

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    - होरी लाल, पीलीभीत