76 की उम्र में भी शिक्षा का चिराग रोशन कर रहे सुल्तान
रिटायरमेंट के 18 साल बाद भी पौड़ी जिले में स्थित राजकीय इंटर कालेज परसुंडाखाल का यह पूर्व प्रधानाचार्य सुल्तान सिंह रावत 76 साल की उम्र में ही शिक्षा की अलख जगा रहे हैं।
पौड़ी, [मनोहर बिष्ट]: जोश और जज्बा जवानी के मोहताज नहीं हैं। रिटायरमेंट के 18 साल बाद भी 76 साल के सुल्तान सिंह रावत को स्कूल जाते देखकर यह अहसास होना लाजिमी है। पौड़ी जिले में स्थित राजकीय इंटर कालेज परसुंडाखाल का यह पूर्व प्रधानाचार्य सर्दी हो या गर्मी अथवा बरसात नियमित तौर पर स्कूल जाते हैं और कक्षाएं लेते हैं। इसके लिए विद्यालय से वह किसी तरह का पारिश्रमिक नहीं लेते।
सुर्खियों से दूर सुल्तान पर यह जुनून तब से ही है, जब से पहले पहल शिक्षक बने। वह याद करते हैं वर्ष 1964 का वह दौर। उन्हीं के शब्दों में सन 64 में मेरे कॅरियर की शुरुआत टिहरी गढ़वाल के धद्दी घंडियाल हाईस्कूल से हुई। 1965 में जूनियर हाईस्कूल जामणाखाल स्थानांतरित हो गया।
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सुल्तान कहते हैं कि तब इलाकों में स्कूल बहुत दूर होते थे। ऐसे में उन्हें बार-बार अपना गांव याद आता। यहां के बच्चों को पढ़ने के लिए 13 किलोमीटर दूर पौड़ी जाना पड़ता।
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परसुंडाखाल के पास महरगांव के सुल्तान इसके बाद वापस आए और साथियों के सहयोग से नींव डाली जूनियर हाईस्कूल परसुंडाखाल की। यह बात है वर्ष 1967 की। स्कूल खुला तो आसपास के गांवों ने हाथों हाथ लिया। फलस्वरूप धीरे-धीरे छात्र-छात्राओं की संख्या बढ़ती चली गई।
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साल 1977 में यह हाईस्कूल बना और 1988 में इंटर कॉलेज। वर्ष 1999 में रावत इसी विद्यालय से प्रधानाचार्य के रूप में सेवानिवृत्त हो गए। इसके बाद वह आसपास गांवों के बच्चों को निशुल्क पढ़ाने लगे।
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इंटर कॉलेज परसुंडाखाल के प्रधानाचार्य बीसीएस नेगी बताते हैं कि विद्यालय लंबे समय से शिक्षकों की कमी से जूझ रहा था। शिक्षकों के 10 पद रिक्त हैं। ऐसे में उन्होंने सुल्तान सिंह से कक्षाएं लेने का आग्रह किया। सुल्तान ने आग्रह तो मान लिया, लेकिन पारिश्रमिक लेने से इन्कार कर दिया।
राज्य आंदोलन में भी सक्रिय भमिका
पूर्व प्रधानाचार्य सुल्तान सिंह रावत ने उत्तराखंड राज्य आंदोलन के दौरान अहम भूमिका निभाई थी, लेकिन उन्होंने आंदोलनकारियों को मिलने वाली सुविधाएं नहीं ली।
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