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    Garhwal Rifles: अदम्‍य साहस के समक्ष दुश्‍मन नतमस्‍तक, जवानों ने हर मोर्चे पर अग्रणी भूमिका का क‍िया निर्वहन

    By Sumit KumarEdited By:
    Updated: Wed, 10 Aug 2022 08:36 AM (IST)

    गढ़वाल राइफल्स के जवानों ने सीमाओं की चौकसी करते हुए आजादी से पहले विभिन्न युद्धों में जहां अपने अदम्य साहस के दम पर रेजीमेंट को नई पहचान दी वहीं आजादी के बाद भी अपने अदम्य साहस के समक्ष दुश्मनों को नतमस्तक किया।

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    कारगिल युद्ध के दौरान मोर्चा फतह करने के गढ़वाल राइफल्स रेजीमेंटल सेंटर की 17-वीं बटालियन के जवानसाभार : गढ़वाल राइफल्स

    अनुज खंडेलवाल, लैंसडौन : ‘बढ़े चलो गढ़वालियो बढ़े चलो, सिंह की दहाड़ पर, जुल्म के पहाड़ पर, दुश्मनों के सीने पर चढ़े चलो...' गढ़वाल राइफल्स रेजीमेंटल सेंटर का यह रेजीमेंट गीत हर उस गढ़वाली को साहस से लबरेज कर देता है, जिसका रेजीमेंट से जुड़ाव है।

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    जवानों ने पर्यावरण संरक्षण मुद्दे पर भी बनाई पहचान

    बात सीमाओं की सुरक्षा की हो अथवा देश के भीतर सामाजिक सरोकारों की, गढ़वाल राइफल्स रेजीमेंट सेंटर के जवानों ने हर मोर्चे पर अग्रणी भूमिका का निर्वहन किया है। देश की आजादी से पूर्व व आजादी के बाद भी अपने अदम्य साहस के दम पर विश्व पटल पर अपनी साख जमाने वाले रेजीमेंट के जवानों ने पर्यावरण संरक्षण जैसे संवेदनशील मुद्दे पर भी अपनी पहचान बनाई है।

    अपने अदम्य साहस के दम पर दी रेजीमेंट को नई पहचान

    गढ़वाल राइफल्स के जवानों ने सीमाओं की चौकसी करते हुए आजादी से पहले विभिन्न युद्धों में जहां अपने अदम्य साहस के दम पर रेजीमेंट को नई पहचान दी, वहीं आजादी के बाद भी अपने अदम्य साहस के समक्ष दुश्मनों को नतमस्तक किया।

    दुश्मनों को भागने के लिए कर द‍िया मजबूर

    1999 में हुए कारगिल युद्ध के दौरान गढ़वाल राइफल्स की छह बटालियन कारगिल के बटालिक व द्रास सेक्टर में तैनात थी। दुश्मनों को मोहतोड़ जवाब देते हुए जवानों ने जहां दुश्मनों के कब्जे में फंसी एक-एक इंच जमीन वापस ली, वहीं दुश्मनों को भागने के लिए मजबूर कर दिया।

    रेजीमेंट के 55 जांबाजों ने द‍िया अपना सर्वोच्च बलिदान

    इस युद्ध में रेजीमेंट के 55 जांबाजों ने अपना सर्वोच्च बलिदान दिया। युद्ध में अदम्य साहस के लिए रेजीमेंट की 17 बटालियन को एक वीर चक्र, एक सेना मेडल और मुख्य सेनाध्यक्ष के दो प्रशस्ति पत्र मिले, जबकि दस बटालियन को छह वीर चक्र, एक वार टू सेवा मेडल तथा सात सेना मेडल से नवाजा गया।

    पर्यावरण के साथ अपनों को भी दी संजीवन

    रणक्षेत्र में सशक्त प्रहरी के साथ ही गढ़वाल राइफल्स रेजीमेंट ने देश के भीतर भी अपने दायित्वों का बखूबी निर्वहन कर रहा है। पर्यावरण के क्षेत्र में अनुकरणीय कार्य के लिए 2006 में रेजीमेंट को इंदिरा गांधी पर्यावरण पुरस्कार से नवाजा गया। इतना ही नहीं, आपदा के दौर में भी रेजीमेंट के जवानों ने आमजन की सुरक्षा को स्वयं ही जिंदगी खतरे में डाल दी।

    राहत कार्य में अहम भूमिका का क‍िया निर्वहन

    20 अक्टूबर 1991 में उत्तरकाशी में आए विनाशकारी भूकंप में जवानों ने 283 प्रभावितों को सुरक्षित स्थान में पहुंचाया। 30 सितंबर 1993 को महाराष्ट्र के लातूर क्षेत्र में नवीं गढ़वाल राइफल व 1999 में चमोली व रुद्रप्रयाग के भूकंप के बाद किए गए राहत कार्यों में गढ़वाल स्काउट के योगदान को याद किया जाता है। 2004 को बद्रीनाथ में बादल फटने और 2017 में आई केदारनाथ आपदा के दौरान गढ़वाल स्काउट ने राहत कार्य में अहम भूमिका का निर्वहन किया।

    साहसिक अभियानों में भी दिया योगदान

    गढ़वाल रेजीमेंट ने पर्वतारोहण अभियानों में हिस्सा लेते हुए सफलतापूर्वक चोटियों पर चढ़ाई की। 1986 में भारत की सबसे ऊंची चोटी कामेट फतह करने के बाद एवरेस्ट पर तिरंगा फहराया। वर्ष 2005 में त्रिशूल पर्वत पर पर्वतारोहण किया। 1984 में छठवीं बटालियन ने चंबल नदी के स्रोत से संगम तक चुनौतीपूर्ण राफ्टिंग व ट्रैकिंग अभियान सफलतापूर्वक संपन्न किया।

    2800 किलोमीटर की रैली में रेजीमेंट ने प्राप्‍त क‍िया तीसरा स्थान

    वर्ष 2003 में तीसरी बटालियन ने रुद्रप्रयाग से ऋषिकेश तक श्वेत जल राफ्टिंग अभियान संपन्न किया। 1987 में रेजीमेंट ने पहली बार हिमालयन कार रैली में हिस्सा लिया। 2800 किलोमीटर की इस रैली में रेजीमेंट ने तीसरा स्थान प्राप्त किया।

    आजादी के बाद विभिन्न मोर्चों में रेजीमेंट को मिले पदक

    • अशोक चक्र : 01
    • महावीर चक्र : 04
    • कीर्ति चक्र : 11
    • वीर चक्र : 52
    • शौर्य चक्र : 38
    • सेना मेडल : 194
    • मेंशन इन डिस्पैच : 107

    (इसके अलावा गढ़वाल राइफल्स रेजीमेंट ने कई अन्य पदक भी हासिल किए हैं)

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