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भक्तों की मनोकामना पूर्ण करती है सिद्धपीठ मां धारी देवी

आद्य शक्ति के रूप में मां धारी देवी को श्रद्धालुओं की मनोकामना पूर्ण करने वाली माना जाता है। आदि शंकराचार्य ने भी यहां पर पूजा अर्चना की थी।

By BhanuEdited By: Published: Tue, 04 Apr 2017 10:11 AM (IST)Updated: Wed, 05 Apr 2017 06:00 AM (IST)
भक्तों की मनोकामना पूर्ण करती है सिद्धपीठ मां धारी देवी
भक्तों की मनोकामना पूर्ण करती है सिद्धपीठ मां धारी देवी

श्रीनगर गढ़वाल, [जेएनएन]: आद्य शक्ति के रूप में मां धारी देवी की पूजा की जाती है। धारी देवी को श्रद्धालुओं की मनोकामना पूर्ण करने वाली माना जाता है। यहां वर्षभर विशेषकर नवरात्रों के अवसर पर बड़ी संख्या में श्रद्धालु अपनी मनोकामनाओं को लेकर सिद्धपीठ मां धारी देवी मंदिर में पूजा अर्चना करते हैं।

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इतिहास 

श्रीनगर से लगभग 14 किमी दूर बदरीनाथ राष्ट्रीय राजमार्ग पर कलियासौड़ के समीप सिद्धपीठ मां धारी देवी को पौराणिक कथानकों के अनुसार द्वापर युग से ही माना जाता है। ईष्ट देवी और कुल देवी के रूप में श्रद्धालु मां धारी देवी की पूजा करते हैं। धर्मशास्त्रों के अनुसार यहीं पर मां काली शांत हुई थी और तभी से यहां पर कल्याणी स्वरूप में मां की पूजा की जाती है। 

आदि शंकराचार्य ने भी यहां पर पूजा अर्चना की थी। पैदल मार्ग से जब चारधाम यात्रा हुआ करती थी तब श्रद्धालु अपनी यात्रा के सकुशल संपन्न होने को लेकर मां धारी देवी की विशेष पूजा अर्चना के बाद ही आगे बढ़ते थे।  

सिद्धपीठ धारी देवी में जो श्रद्धालु सच्चे मन से मन्नत मांगते हैं मां धारी देवी उसे पूर्ण करती है। मनोकामना पूर्ण होने पर श्रद्धालु पुन: यहां आकर घंटी और श्रीफल श्रद्धा से चढ़ाते हैं। पूर्व में यहां मनोकामना पूर्ण होने पर यहां पशुबलि प्रथा थी। उस समय गोपालदास गिरनारी, स्व. पंडित कुशलानंद और पंडित लक्ष्मी प्रसाद पांडे सहित अन्य पुजारियों की पहल पर 1986 में ही सिद्धपीठ मां धारी देवी मंदिर में पशुबलि प्रथा बंद हुई। जिसके बाद यहां पर प्रसाद स्वरूप श्रीफल चढ़ाया जाता है। 

महात्म्य

नवरात्र के अवसर पर सिद्धपीठ मां धारी देवी मंदिर में पूजा अर्चना के लिए बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं। नवरात्र पर विशेष पूजा पाठ भी होती है। श्रद्धालुओं की ओर से रोट हलवे का भोग देवी को चढ़ाया जाता है। 

पहले नवरात्र और कालरात्रि (सप्तमी) को देवी को रोट हलवे का विशेष भोग लगाने के साथ ही देवी की 64 जोगनियों को खिचड़ा (चावल, उड़द दाल) और टिकड़ा (कोदे का आटा) का भोग पुजारियों की ओर से लगाया जाता है। 

ऐसे पहुंचे 

ऋषिकेश और कोटद्वार से सीधी बस सेवाओं से यह स्थल जुड़ा हुआ है। ऋषिकेश से 118 किमी और श्रीनगर से 14 किमी आगे बदरीनाथ नेशनल हाईवे पर कलियासौड़ के समीप सिद्धपीठ धारी देवी मंदिर स्थित है। नेशनल हाईवे से लगभग 300 मीटर की पैदल दूरी पर मंदिर है। 

सुबह चार बजे शुरू होती है पूजा 

मंदिर के प्रबंधक एवं मुख्य पुजारी पंडित लक्ष्मी प्रसाद पांडे के अनुसार सिद्धपीठ मां धारी देवी श्रद्धालुओं की मनोकामना पूर्ण करती है। नवरात्र पर विशेष पूजा अर्चना होती है। प्रात: चार बजे से ही पूजा शुरू हो जाती है। अष्टमी और नवमी को श्रद्धालुओं और मंदिर समिति की ओर से भी भंडारे का आयोजन होता है। 

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