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    गढ़वाल रेजिमेंट के शक्तिपुंज हैं भगवान बदरी विशाल, युद्ध में जवानों के खून में उबाल लाता इनका जयघोष

    Updated: Sat, 22 Nov 2025 11:30 PM (IST)

    भगवान बदरी विशाल गढ़वाल राइफल्स रेजिमेंट के आराध्य देव हैं। यह परंपरा 138 वर्षों से चल रही है। रेजिमेंट का हर कार्य उनके जयघोष से शुरू होता है। बदरीनाथ धाम के कपाट खुलने और बंद होने पर रेजिमेंट का बैंड अगुआई करता है। युद्ध के दौरान 'बदरी विशाल लाल' का जयघोष जवानों में जोश भर देता है। गढ़वाल स्काउट के जवान भी धाम से भावनात्मक रूप से जुड़े हैं।

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    बदरीनाथ धाम में सेना के मिलेट्री बैंड की प्रस्तुति के दौरान मौजूद गढ़वाल रेजिमेंट के सैनिक : आकाईवा  

    अनुज खंडेलवाल, जागरण लैंसडौन: भगवान बदरी विशाल गढ़वाल राइफल्स रेजिमेंट के आराध्य देव हैं, इसलिए रेजिमेंट का कोई भी कार्य भगवान बदरी विशाल लाल के जयघोष के बिना पूर्ण नहीं माना जाता।

    यह परंपरा 138 वर्ष पूर्व रेजिमेंट के स्थापना काल से अनवरत चली आ रही है। उसी कालखंड से बदरीनाथ धाम के कपाट खुलने और बंद होने के मौके पर गढ़वाल रेजिमेंट का बैंड विग्रह डोलियों की अगुआई करता आ रहा है।

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    गढ़वाल राइफल्स, सेना में एक ऐसी रेजिमेंट है, जिसमें सिर्फ गढ़वाली युवाओं को भर्ती किया जाता है। रेजिमेंट के तीन भावनात्मक प्रतीकों में विशिष्ट रायल रस्सी, रजिमेंटल युद्ध स्मारक और भगवान बदरी विशाल मुख्य रूप से शामिल है।

    युद्ध के दौरान ‘बदरी विशाल लाल’ का जयघोष जवानों में नये जोश व ऊर्जा के साथ खून में उबाल पैदा करता है। प्रथम विश्वयुद्ध से लेकर कारगिल युद्ध तक में गढ़वाली सैनिकों ने इसी जयघोष के साथ अदम्य साहस का परिचय देते हुए दुश्मन को लोहे के चने चबाने के लिए मजबूर कर दिया।

    गढ़वाल राइफल्स रेजिमेंट सेंटर का वर्तमान में 21 बटालियन, तीन राष्ट्रीय राइफल्स, दो प्रादेशिक सेना व एक गढ़वाल स्काउट समेत 27 बटालियनों का परिवार है। इसमें से गढ़वाल स्काउट जोशीमठ में तैनात है।

    भगवान बदरी विशाल गढ़वाल रेजिमेंट के आराध्य देव हैं, इसलिए गढ़वाल स्काउट के जवान गढ़वाल का लाल होने के नाते बदरीनाथ धाम के साथ निरंतर भावनात्मक और आध्यात्मिक जुड़ाव बनाए रखते हैं।

    ब्रिटिशकाल से अटूट रिश्ता

    भगवान बदरी विशाल के साथ गढ़वाल रेजिमेंट का रिश्ता ब्रिटिशकाल से चला आ रहा है। पांच मई 1887 को गढ़वाल राइफल्स रेजिमेंट सेंटर की स्थापना अल्मोड़ा में की गई थी।

    चार नवंबर 1887 को बटालियन कालौंडांडा पहुंची और तब तत्कालीन वायसराय के नाम पर कालौंडांडा का नाम बदलकर लैंसडौन कर दिया गया।

    तब गढ़वाल रेजिमेंट में अधिकांश सैनिक गढ़वाली थे, जो चमोली क्षेत्र से जुड़े हुए थे। ये सैनिक रेजिमेंट में अपने आराध्य देव के रूप में भगवान बदरी विशाल की पूजा-अर्चना करते थे और धीरे-धीरे वह पूरी रेजीमेंट के आराध्य हो गये।

    भगवान बदरी विशाल गढ़वाल रेजिमेंट के ईष्ट देव हैं। ‘बोल बदरी विशाल लाल की जय’- इस शक्तिशाली उद्घोष का भावार्थ है, "भगवान बदरी विशाल के पुत्रों और शिष्यों की विजय हो, जो बदरीनाथ धाम में विराजमान शक्ति और दिव्य आशीर्वाद के प्रतीक पूजनीय पीठासीन देवता से प्रेरणा लेते हैं।’ कपाट खुलने व बंद होने के मौके पर रेजिमेंट के उच्चाधिकारी भी अपने ईष्ट से रेजिमेंट की खुशहाली व समृद्धि की कामना करने बदरीनाथ धाम पहुंचते हैं।

    - विनोद सिंह नेगी, कमांडेंट, ब्रिगेडियर गढ़वाल राइफल्स रेजिमेंट सेंटर, लैंसडौन

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