उत्तराखंड में स्थित है ऐतिहासिक सेंट मैरी चर्च, ब्रिटिश सैन्य अधिकारी की पत्नी ने इसकी स्थापना के लिए किए थे प्रयास
लैंसडौन स्थित सेंट मैरी चर्च, गढ़वाल राइफल्स रेजिमेंटल सेंटर की वीरता का प्रतीक है और क्रिसमस के लिए सजाया जा रहा है। 18वीं सदी में स्थापित, इस चर्च क ...और पढ़ें

पर्यटन नगरी लैंसडौन स्थित सेंट मेरी चर्च, जिसकी स्थापना 1896 में हुई थी। जागरण
जागरण संवाददाता, कोटद्वार: पर्यटन नगरी लैंसडौन में गढ़वाल राइफल्स रेजिमेंटल सेंटर की वीरता के गवाह सेंट मैरी चर्च को क्रिसमस के लिए सजाया जा रहा है। 18वीं सदी में गढ़वाल राइफल्स रेजिमेंटर सेंटर की स्थापना के साथ ही सेंट मैरी चर्च की स्थापना हुई। वर्तमान में गढ़वाल राइफल्स इस चर्च को धरोहर के रूप में संरक्षित कर रही है।
ब्रिटिश सैन्य अधिकारी ईसाई धर्म के प्रोटेस्टेंट संप्रदाय को मानने वाले थे। इसे देखते हुए ब्रिटिश सैन्य अधिकारी कैप्टन एफएम रूनडाल की पत्नी ने कालोडांडा में चर्च की स्थापना को ब्रिटिश हाईकमान से आर्थिक सहायता का अनुरोध किया।
सहायता तो मिली, लेकिन वह इतनी कम थी कि इससे चर्च का निर्माण नहीं हो सकता था। इसके बाद रूनडाल ने अपने व्यक्तिगत प्रयासों से चर्च के लिए धन की व्यवस्था की और 1896 में चर्च का निर्माण पूरा हो गया।
चर्च का नाम 'सेंट मैरी' के नाम पर रखा गया। आजादी के दौरान लैंसडौन में प्रोटेस्टेंट संप्रदाय को मानने वाले सैन्य अधिकारी नहीं रहे, जिस कारण चर्च की देखरेख का पूरा जिम्मा गढ़वाल राइफल्स रेजिमेंटल सेंटर को सौंप दिया गया। आज भी गढ़वाल राइफल्स इस चर्च को धरोहर के रूप में संरक्षित कर रही है।
नए कोटद्वार के उदय का गवाह ‘मैथोडिस्ट चर्च'
कोटद्वार के मैथोडिस्ट चर्च में क्रिसमस मनाया जा रहा है। दरअसल, मैथोडिस्ट चर्च की स्थापना के साथ ही नए कोटद्वार ने भी आकार लेना शुरू किया था। ईसाई समुदाय से जुड़े मैथोडिस्ट समुदाय के लोग ग्रास्टनगंज (पुराना कोटद्वार) में प्रभु यीशू का प्रार्थना करते थे।
लेकिन, वर्ष 1923-24 में खोह नदी में आई भीषण बाढ़ ने पूरी तस्वीर ही बदल दी। ग्रास्टनगंज का एक बड़ा हिस्सा बाढ़ की भेंट चढ़ गया। साथ ही यहां स्थित चर्च की इस बाढ़ में समा गया।
बाढ़ के बाद नए कोटद्वार ने आकार लेना शुरू किया व इसी दौर में मैथोडिस्ट समुदाय को तत्कालीन खाम सुपरिंटेंडेंट ने भूमि आवंटित कर दी।
आर्थिक स्थिति मजबूत न थी तो चर्च नहीं बन पाया। आजादी के उपरांत वर्ष 1947-48 में तत्कालीन पास्टर जेएस वाल्टर ने चर्च निर्माण का फैसला लिया व नगर से चंदा एकत्र करना शुरू किया और नगर में भव्य मैथोडिस्ट चर्च की स्थापना हो गई।
पश्चिमी उत्तर प्रदेश का सबसे बड़ा चर्च है ‘महा गिरिजाघर’
सत्तर के दशक में कोटद्वार पहुंचे ईसाई धर्म के कैथोलिक समुदाय से जुड़े लोग कोटद्वार पहुंचे। क्षेत्र में कैथोलिक समुदाय ने विद्यालय व चिकित्सालय खोले। लेकिन, इनके पास कोई पूजा स्थल नहीं था। अपर कालाबड़ स्थित बिशप हाउस में ही प्रभु उपासना की जाती।
राज्य गठन के बाद कैथोलिक समुदाय ने महा गिरिजाघर का निर्माण शुरू किया व 31 अक्टूबर 2011 से गढ़वाल-बिजनौर डायसिस के इस महा गिरिजाघर में पूजा-अर्चना शुरू हुई। यह गिरिजाघर आकार में पश्चिमी उत्तर प्रदेश का सबसे बड़ा गिरिजाघर है।

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