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फिरंगी कानूनों में फंसी यहां की सात हजार की आबादी, छटपटा रही आजाद होने को

देश आजाद हुआ पर लैंसडौन नगरी में आज भी 1924 में बना वही कैंट कानून चल रहा है जिसे फिरंगी देकर गए थे। लैंसडौन की सात हजार से अधिक आबादी फिरंगी कानूनों से आजाद होने को छटपटा रही

By Sunil NegiEdited By: Published: Thu, 28 Mar 2019 12:18 PM (IST)Updated: Thu, 28 Mar 2019 12:18 PM (IST)
फिरंगी कानूनों में फंसी यहां की सात हजार की आबादी, छटपटा रही आजाद होने को
फिरंगी कानूनों में फंसी यहां की सात हजार की आबादी, छटपटा रही आजाद होने को

लैंसडौन, अनुज खंडेलवाल। पांच मई 1887 को लेफ्टिनेंट कर्नल ईपी मेनवारिंग के नेतृत्व में कुमाऊं क्षेत्र के अल्मोड़ा में गढ़वाल राइफल्स की पहली बटालियन का गठन हुआ, जिसमें छह कंपनियां गढ़वाली जवानों की व दो कंपनियां गोरखा राइफल्स की थी। चार नवंबर 1887 को यह बटालियन गढ़वाल क्षेत्र में कालोंडांडा पहुंची और कालोंडांडा में डेरा डाल दिया। वक्त बीता और कालोंडांडा का नाम तत्कालीन वॉयसराय के नाम पर लैंसडाउन कर दिया। 1892 में आधिकारिक रूप से गढ़वाल राइफल्स को पहचान मिली व लैंसडौन गढ़वाल राइफल्स रेजीमेंटल का मुख्यालय बन गया। देश आजाद हुआ, लेकिन लैंसडौन नगरी में आज भी 1924 में बना वही कैंट कानून चल रहा है, जिसे फिरंगी देकर गए थे। कैंट एक्ट के रूप में आज भी पर्यटन नगरी लैंसडौन की सात हजार से अधिक आबादी फिरंगी कानूनों से आजाद होने को छटपटा रही है। 

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देश को आजादी हुए 72 वर्ष हो गए हैं, लेकिन कैंट क्षेत्र लैंसडौन की जनता आज भी फिरंगी शासनकाल में बनाए कैंट एक्ट की गुलामी के ताले में बंद होकर रह गई है। नतीजा, पर्यटन नगरी में जहां बेहतर पर्यटक सुविधाएं नहीं जुट पा रही हैं, वहीं क्षेत्र की जनता को सरकारी योजनाओं का लाभ नहीं मिल पा रहा। बताना जरूरी है कि आजादी के बाद पहली बार 2006 में एक्ट में कुछ संशोधन तो किए गए, उन संशोधनों में कैंट के मुख्य अधिशासी अधिकारी के अधिकार ही बढ़ाए और जनता को कोई राहत नहीं मिली। हालांकि, रक्षा मंत्रालय की ओर से सात सदस्यीय कमेटी का गठन किया गया है, जो कि कैंट क्षेत्रों में कैंटवासियों की समस्याओं और कैंट बोर्ड की धरातलीय स्थिति के बारे में शासन को अपनी रिपोर्ट देगा। क्षेत्र की जनता को उम्मीद है कि समिति की रिपोर्ट के बाद उन्हें कैंट कानून से आजादी मिल जाएगी।

क्या है कैंट बोर्ड

कैंट बोर्ड अर्थात छावनी परिषद। गुलामी के दौर में ब्रिटिश सरकार ने सैनिक छावनियों से संबद्ध सिविल क्षेत्र को छावनी क्षेत्र में शामिल कर छावनी प्राधिकरण का गठन किया। उस दौर में कैंट मजिस्ट्रेट कैंट से संबंधित विवादों पर अदालत लगाकर मामलों को निपटाते थे। 1924 में छावनी प्राधिकरण का नाम बदलकर छावनी परिषद रखा गया। हालांकि लैंसडौन छावनी की स्थापना 1887 में हो गई थी, लेकिन यहां मार्च 1929 में विधिवत छावनी परिषद का गठन किया गया। छावनी परिषद सिविल क्षेत्र की जनता को मूलभूत सुविधाएं, जल, सफाई, चिकित्सा, शिक्षा, पथ प्रकाश, के अलावा भूमि प्रबंधन एवं प्रशासनिक व्यवस्थाओं का काम करता है।

यह हैं लैंसडौनवासियों की समस्याएं 

कैंट बोर्ड में जन समस्याओं की प्रभावी ढंग से पैरवी न होना, नोटिफिकेशन से लेकर भवन मानचित्र मंजूर करवाना, राज्य सरकार की होम स्टे योजना का कैंट क्षेत्र में लागू न होना, पार्किंग, शौचालय, पेट्रोल पंप, संचार व पेयजल जैसी मूलभूत सुविधाओं का अभाव, विदेशी पर्यटकों का छावनी क्षेत्र में रात्रि विश्राम न कर पाने सहित कई अन्य समस्याएं हैं। साथ ही कैंट क्षेत्र के बीपीएल व एपीएल परिवार सरकार की योजनाओं के लाभ से वंचित रहते हैं। कैंट कानूनों के कारण नगर का विस्तार भी नहीं हो पा रहा।

कैंट कानून हटे तो होंगे फायदे

यदि छावनी क्षेत्र को सिविल क्षेत्र घोषित कर दिया जाता है तो कैंट क्षेत्र की जनता को गुलामी के कैंट एक्ट से छुटकारा मिल जाएगा। राज्य सरकार की योजनाओं का सीधे रूप से लाभ मिलने के साथ ही यहां मूलभूत सुविधाओं का भी विस्तार हो सकेगा। विधायक व सांसद निधि नगर के विकास में उपयोग में लाए जाने के साथ ही नगर में आवासीय सुविधाएं बढऩे से पलायन की समस्या पर भी रोक लगेगी। कई दशकों से चले आ रहे नामांतरण, नोटिफिकेशन, लीज रिन्यू के मुद्दे भी आसानी से निस्तारित होंगे, जिससे पर्यटन के क्षेत्र में नगर का चहुंमुखी विकास होगा।

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