महंगे लिबास मत पहनो, सादगी न मर जाए कहीं
जागरण संवाददाता, श्रीनगर गढ़वाल: 'भूख से आदमी न मर जाए, बिन जिए जिंदगी न मर जाए, इतने महंगे लिबास मत
जागरण संवाददाता, श्रीनगर गढ़वाल: 'भूख से आदमी न मर जाए, बिन जिए जिंदगी न मर जाए, इतने महंगे लिबास मत पहनो, शर्म से सादगी न मर जाए' और 'जख्म दिल के नजर नहीं आते, वक्त पल में बदल भी सकता है, दिन बोलकर बुरे नहीं आते'। रुड़की के ओमप्रकाश नूर और मुंबई के कवि पंकज त्यागी ने जब अखिल भारतीय कवि सम्मेलन में कुछ इस अंदाज से कविता की शुरुआत की तो माहौल खुशनुमा हो गया।
हिमालय साहित्य एवं कला परिषद चैरिटेबल ट्रस्ट की ओर से सर्राफ धर्मशाला में मैनपुरी के कवि दीन मुहम्मद्दीन की अध्यक्षता में कवि सम्मेलन का आयोजन किया। गढ़वाल केंद्रीय विवि के कुलसचिव डॉ. अनिल कुमार झा कवि बतौर मुख्य अतिथि मौजूद रहे। वाराणसी के कवि मोहन द्विवेदी ने 'मातृ भूमि से स्नेह उन्हें था प्रेम किए थे माटी से, हंसते-हंसते झूल गए थे, नहीं डरे थे फांसी से', गाजियाबाद के कवि सुरेश नीरव ने 'आग से तो मैं घिरा हूं, जल रहा कोई और है, मंजिलें मुझको मिली पर चल रहा कोई और है' सुना कर वाहवाही लूटी। हरदोई के गीतकार सुखदेव पांडे सरल ने युवा श्रोताओं से मुखातिब होते हुए जब 'मैं आवारा दिल तुम हंसी रात हो, फिर भला कैसे तेरा मेरा साथ हो, दुर्दशाग्रस्त बदहाल यूपी हूं मैं तुम सुखीपूर्ण समृद्ध गुजरात हो' सुनाई तो युवाओं को जोश हिलोरें मारने लगा।
दिल्ली के कवि सुरेंद्र साधक और हरिद्वार के मधुसूदन की प्रस्तुतियां भी सराही गई। प्रौढ़ शिक्षा विभाग के निदेशक डॉ. संपूर्ण रावत कवि सम्मेलन के विशिष्ट अतिथि थे। इस मौके पर मोहम्मद आसिफ, हिमांशु अग्रवाल समेत अन्य कवि मौजूद रहे।
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