ग्रामीणों के हौसले को सलाम, मिलकर बदल दी जर्जर स्कूल की सूरत
आर्थिक मदद के लिए सरकार के सामने झोली फैलाने के बजाय ग्रामीणों ने अपने मजबूत इरादों से स्कूल की जर्जर इमारत की तस्वीर बदल दी।
हल्द्वानी, जेएनएन : आर्थिक मदद के लिए सरकार के सामने झोली फैलाने के बजाय ग्रामीणों ने अपने मजबूत इरादों से स्कूल की जर्जर इमारत की तस्वीर बदल दी। गौलापार के कुंवरपुर में सन 1957 में निर्मित अशासकीय विद्यालय श्री पूरन सिंह मोहन सिंह इंटर कॉलेज का भवन इतना बदहाल हो चुका था कि इसमें छात्र-छात्राओं ने आना ही छोड़ दिया था। गांव के कुछ युवाओं ने स्कूल की जर्जर हालत बदलने की ठानी। वर्ष 2017 से नवनिर्माण शुरू किया गया, जो 2018 में पूरा हुआ। मेहनत रंग लाई और आज स्कूल में फिर से विद्यार्थियों की संख्या में बढ़ोतरी हुई है। 12 सदस्यीय प्रबंध कमेटी आज स्कूल का बखूबी संचालन कर रही है।
स्कूल को नया रूप देने में 70 लाख खर्च
जर्जर स्कूल भवन को पुनर्निर्माण आसान नहीं था। इसके लिए बड़ी धनराशि की आवश्यकता थी। सरकारी मदद की उम्मीद छोड़ चुके प्रबंध कमेटी के लोगों ने गौलापार के सक्षम लोगों से मदद लेने की ठानी। स्वयं के संसाधनों से धनराशि एकत्र की और स्कूल में नवनिर्माण शुरू किया। बाउंड्रीवाल से लेकर रंगरोगन और क्लास रूम को नया रूप देने में 70 लाख की धनराशि खर्च हो गई।
मैदान में लगाई इटैलियन दूब
स्कूल प्रांगण के चारों तरफ फूल के पौधे लगाए गए और चारों तरफ पक्का रास्ता बनाया गया। स्कूल प्रांगण को खूबसूरत बनाने के लिए इटैलियन दूब (घास) लगवाई गई। शिक्षा के लिए अच्छा माहौल बने क्लास रूम में सीसीटीवी कैमरे और प्रोजेक्टर भी लगाए गए। स्कूल में गंदगी न हो, इसके लिए प्रत्येक क्लास रूम में डस्टबिन रखे गए। स्कूल की बाउंड्रीवाल पर जागरूकता संदेश लिखे गए, जिससे बच्चे प्रोत्साहित हों।
छह से आठवीं तक के विद्यार्थियों से नहीं लेते फीस
शिक्षा के प्रति छात्रों को प्रोत्साहित करने के लिए स्कूल में कक्षा छह, सात और आठवीं के विद्यार्थियों से स्कूल प्रबंधन फीस नहीं लेता। इन्हें निश्शुल्क शिक्षा दी जाती है। शिक्षा के साथ ही प्रबंध कमेटी सभी बच्चों को पुस्तकें, यूनिफार्म सहित अन्य सामग्री उपलब्ध कराती है। समय-समय पर शिक्षा विशेषज्ञों को बुलाकर छात्रों की काउंसलिंग भी की जाती है।
अब आरओ का पानी पीते हैं बच्चे
स्कूल की पुरानी टंकी का पानी पीकर अक्सर बच्चे बीमार होते थे। स्कूल की हालत सुधरी तो दो नए वाटर टैंक बनाकर आरओ लगाए गए। पेयजल में सुधार के बाद पिछले एक साल में स्कूल का कोई भी बच्चा बीमार नहीं पड़ा।
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