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    पुलवामा शहीद बीरेंद्र की बरसी पर बच्‍चों ने पूछा, क्‍या पिता आए हैं, सुनकर छलक पड़े मां के आंसू nainital news

    By Skand ShuklaEdited By:
    Updated: Sat, 15 Feb 2020 02:52 PM (IST)

    खटीमा में इस बार का वैलेंटाइन डे खास रहा। गांव के लोगों ने पुलवामा हमले में देश पर प्राणों की बाजी लगाने वाले वीर शहीद बीरेंद्र सिंह राणा की पहली बरसी को यादगार तरीके से मनाया।

    पुलवामा शहीद बीरेंद्र की बरसी पर बच्‍चों ने पूछा, क्‍या पिता आए हैं, सुनकर छलक पड़े मां के आंसू nainital news

    खटीमा, राजू मिताड़ी : कुमाऊं के तराई में बसे खटीमा में इस बार का वैलेंटाइन डे खास रहा। गांव के लोगों ने पुलवामा हमले में देश पर प्राणों की बाजी लगाने वाले वीर शहीद बीरेंद्र सिंह राणा को याद किया। भावुक कर देने वाले इस मौके पर सभी की आंखें नम थी तो जुबां पर देशभक्ति के स्वर गूंज रहे थे। शहीद बीरेंद्र की शहादत की पहली बरसी को लोगों ने यादगार बनाया। माहौल को देख बच्‍चों को लगा जैसे पिता के लौट आने की खुशी में यह सब तामझाम किया गया हो।

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    गौरवांवित करने वाला क्षण

    खटीमा से 15 किमी दूर जर्जर और ऊबड़-खाबड़ सड़क। सुविधा विहीन मोहम्मदपुर भडिय़ा गांव। साधन न संसाधन। फिर भी यह गांव वैलेंटाइन-डे के दिन प्यार से गुलजार दिखा। यह प्यार कोई पाश्चात्य सभ्यता का नहीं बल्कि देशभक्ति का था। पुलवामा कांड में जिस बीरेंद्र सिंह राणा ने भारत मां की रक्षा में वैलेंटाइन डे के दिन अपने प्राणों की आहूति दी थी, उसी वीरांगना को सम्मान देने के लिए वहां सैलाब उमड़ रहा था। अजीब सा माहौल था। पूरे गांव में असहज जैसी स्थित थी। शहीद के न रहने के गम के बीच खुशी का इजहार भी था और गम गौरवांवित भी कर रहा था। आंखों से देशभक्ति की धारा बह रही थी। उसके पीछे बीरेंद्र राणा के न होने का गम भी था। देशभक्ति के आगे वह गम छोटा दिख रहा था।

    बच्चों को लगा, जैसे पिता लौट आए हों

    वीरांगना रेनू की आंखों से बह रही धारा शहीद होने के गम की भी याद दिला रही थी। इसी बीच सामने मौजूद लोगों ने जब तक सूरज चांद रहेगा, तब तक तेरा नाम रहेगा जैसे नारे लगाने शुरू कर दिए। मानो वहां देशभक्ति का ज्वार आ गया हो। सबका सीना चौड़ा हो रहा था। ये क्रम सुबह से शाम तक चलता रहा। मासूम बच्चों के चेहरे कभी मां का चेहरा देखते तो कभी सामने मौजूद लोगों को देखकर समझ नहीं पा रहे थे कि सम्मान के लिए उमड़ा सैलाब आखिर किसके लिए है। उनको लग रहा था कि पापा आए होंगे। बीच-बीच में बच्चे मम्मी से पूछ रहे थे... क्या पापा आ गए हैं। इतना सुनकर वीरांगना की आंखों की कोर से आंसू छलक जा रहे थे। वहां मौजूद लोग भावुक हो उठे।

     

    पिता ने कहा, बेटे पर मुझे फक्र

    81 साल के पिता दीवान सिंह भी गांव वालों के साथ बैठे थे। श्रद्धांजलि देने आ रहे लोग पिता को प्रणाम कर शहीद के चित्र पर फूल अर्पित कर रहे थे। बरसी पर पिता मायूस तो थे, लेकिन हर कोई उनका हाल लेने के लिए हिम्मत बांधते हुए उनके साथ हमेशा खड़े रहने की बात पर गर्व कर रहा था। पिता बोले, मेरा बेटा देश के लिए कुर्बान हुआ है, मुझे फर्क है मेरा बेटा देश के काम आया। शहीद के बड़े भाई जयराम सिंह व राजेश भी भाई की बरसी पर गम में थे, लेकिन वह शहादत पर गौरवांवित भी महसूस कर रहे थे।

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